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Showing posts from November, 2016

विपक्ष पर लागू नहीं होगी नोटबंदी

नोट बंदी के अचानक आये फैसले से जिन राजनेताओं के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी थी और जिनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया था, उनके लिये एक राहत की खबर आ रही है. संसद के शीतकालीन सत्र मे चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिये, सरकार ने यह फैसला लिया है कि पी एम मोदी ने जिस नोट बंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की थी, उससे देश के सभी विपक्षी राजनेताओं को मुक्त रखा जायेगा. यह सभी नेता अपनी गतिविधियों को पहले की तरह उसी तरह से जारी रखने के लिये आज़ाद होंगे, जिस तरह से यह लोग पिछले 70 सालों से थे.दुश्मन देश पाकिस्तान से जितने नकली नोट 8 नवंबर 2016 तक देश मे आ चुके है, उनके इस्तेमाल की भी पूरी छूट 30 दिसंबर तक रहेगी, ताकि हमारे माननीय नेताओं को उन्हे चलाने मे किसी तरह की तकलीफ ना हो. सरकार के इस कदम से जहाँ विपक्षी नेताओं की चाँदी हो जायेगी, वहीं जनता के लिये भी इस फैसले से जबरदस्त राहत मिलने की संभावना है, क्योंकि अब जब विपक्षी नेताओं को अपने पुराने नोट बदलवाने या जमा करवाने के लिये अपने कार्यकर्ताओं को या भाड़े पर लिये गये दिहाड़ी के मजदूरों को बैंक की लाइनो मे खड़ा नही करना पड़ेगा. ज

नोटबंदी पर सुप्रीमकोर्ट की दंगों की भविष्यवाणी

नोट बंदी के खिलाफ डाली गयी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट खुद ही रद्द कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के मद्दे नज़र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि देश की अन्य अदालतों मे इस तरह् की याचिकाएं अभी भी डाली जा रही हैं और उन पर भी रोक लगाई जानी चाहिये. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की यह याचिका यह कहते हुये खारिज़ कर दी कि लोगों को नोट बंदी के चलते भारी परेशानी हो रही है और उन्हे अदालतों मे अपनी याचिका डालने के अधिकार से वंचित नही किया जा सकता है. यहाँ तक तो बात हज़म होने लायक लग रही थी. लेकिन अपनी इस दलील मे सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी भी जोड़ दी जिसके अनुसार बैंकों के बाहर लगी लम्बी लम्बी लाइनों की वजह से देश मे दंगे भी हो सकते हैं. बैंकों मे लगी लम्बी लाइनो की वजह से दंगे होने की भविष्यवाणी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर की, इसके बारे मे तो मीडिया मे कोई खबर नही आई है, लेकिन सोशल मीडिया मे सुप्रीम कोर्ट की इस अनावश्यक भविष्यवाणी को लेकर काफी चर्चा हो रही है. लोगों का यह मानना है कि सर्वोच्च अदालत का काम फैसला करना है और भविष्यवाणी करने का काम हमे भविष्यवक्ताओं और ज्योत

देश आपका है- फैसला आपको करना है !

देश मे एक के बाद एक, लगातार दो अलग अलग "सर्जिकल स्ट्राइक" हुई है. दोनो बार की कार्यवाही मे समानता यही है कि दोनो ही बार इनकी घोषणा अचानक की गयी और दोनो ही बार देश के विपक्षी नेता या कहिये कि गैर-भाजपाई नेताओं की समझ मे यह नही आया कि तत्कालिक रूप से इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" पर क्या प्रतिक्रिया दी जाये. जब जब इन "सर्जिकल स्ट्राइक्स" की सूचना सेना या सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी, देश के सम्पूर्ण विपक्ष की हालत ऐसी हो गयी जैसे काटो तो खून नही. लकवा मारा हुआ विपक्ष जब कुछ सोचने समझने लायक होता है तो फिर कुछ काल्पनिक कहानी गढनी शुरु करता है ताकि वर्तमान सरकार को उसके ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले का श्रेय ना मिल पाये. विपक्ष इस गलतफ़हमी मे आज तक है कि देश मे सोशल मीडिया का कोई वजूद नही है और जो कुछ भी "दुष्प्रचार" यह विपक्षी नेता सरकार के खिलाफ करेंगे, उसे जनता सच मान लेगी और यह अपने दुष्प्रचार मे उसी तरह कामयाब होते रहेंगे जैसे कि पिछले 60-70 सालों से हो रहे थे. पहली सर्जिकल स्ट्राइक तो विपक्ष के नेताओं से हज़म ही नही हुई और उन्होने उसे फर्ज़ी

लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे

काले धन पर पड़ी चोट तो भ्रष्ट दरिंदे चिल्लाये जनता  का  ये करें बहाना, चोट को अपनी सहलाएं जनता का कर रहे बहाना, परअपनी पीड़ा भारी है जनता को तो खूब ठग चुके,अब खुद इनकी बारी है लूट रहे थे 60 साल से, देश को दोनो हाथों से मोदी ने औकात दिखा दी, इनको अपनी बातों से. नकली नोटों के सौदागर करते इनकी रखवाली उनका धंधा बंद हुआ तो ये देते मोदी को गाली "अन्ना का चेला" बन बैठा, काले धन का सौदागर इसकी काली करतूतों पर मोदी की है कडी नज़र धनकुबेर लगते थे जिनके घर पर आकर लाइन मे लगा दिया मोदी ने उनको आज बैंक की लाइन मे -राजीव गुप्ता (C) सर्वाधिकार सुरक्षित

4000 के नोट बदलने पर तुरंत रोक लगाये सरकार

8 नवंबर की रात को मोदी सरकार ने काले धन को समाप्त करने का जो ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसला लिया है, उसके तहत कोई भी सड़क चलता व्यक्ति, जिसके पास बैंक खाता नही है, अपना कोई भी पहचान पत्र दिखाकर देश के किसी भी बैंक की किसी भी शाखा से जाकर 4000 रुपये तक के पुराने नोटों के बदले नये नोट ले सकता है. सरकार ने यह नियम इसलिये बनाया था ताकि जिन लोगों ने अभी तक बैंक मे खाते नही खुलवाये हैं, उन्हे इस योजना के चलते किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े, लेकिन बड़े बड़े राजनेताओं, व्यापारियों और उद्योगपतियों ने आम आदमी को राहत पहुंचाने वाली इस योजना का भी जमकर दुरुपयोग करना शुरु कर दिया है और इसी दुरुपयोग के चलते बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी लाइने लगी हुई हैं. दरअसल इस योजना का दुरुपयोग करते हुये भ्रष्ट नेता अपने कार्यकर्ताओं को रुपये बदलने का फॉर्म और पहचान पत्र की फोटोकॉपी के सैंकड़ों सेट देकर अलग अलग बैंकों की अलग अलग शाखाओं मे भेज रहे हैं. उदाहरण के लिये, अगर कोई भी व्यक्ति एक दिन मे दस बैंक शाखाओं से भी रुपये बदलने मे कामयाब हो जाता है, तो वह दिन भर मे 40000 रुपये आसानी से बदलवा सकता है. हर राज

काले धन पर पी एम मोदी की "सर्जिकल स्ट्राइक"

500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण करते हुये पी एम मोदी ने अपनी सरकार का अब तक का सबसे अधिक साहसी कदम उठाते हुये  काले धन के खिलाफ एक ऐसा प्रहार किया है, जिसके वार से जहाँ एक ओर ईमानदारी से पैसा कमाने वाली जनता खुशी से फूली नही समा रही है,वहीं उन लोगों के चेहरे पर मातम छाया हुआ है, जिन्होने जनता को लूट लूट कर काले धन को अपनी तिजोरियों मे इकट्ठा किया हुआ था. काले धन के खिलाफ छेड़े गये इस युद्ध की मार किस पर सबसे ज्यादा पड़ी है, आइए उन लोगों के बारे मे विचार करते हैं : 1. पाकिस्तान की सरकार खुद 500 रुपये और 1000 रुपये के नकली नोट छाप-छापकर उन्हे आतंकवादियों के मार्फत हमारे देश मे भेज रही थी और पाकिस्तान का सारा का सारा आतंकवादी तामझाम इन्ही नकली नोटों के गोरखधंदे पर चल रहा था. पाकिस्तान सरकार को और उसकी आतंकवादी गतिविधियों को इससे बहुत बड़ा झटका लगा है. 2. जिन राजनेताओं ने पिछले 70 सालों मे जनता को लूट लूटकर प्रचुर मात्रा मे काला धन इकट्ठा किया हुआ था, उनकी हालत सिर्फ देखने लायक है- जिन लोगों ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की "सर्जिकल स्ट्राइक" पर भी सवाल उठा दिये थे, फिल

क्या मोदी टिक पायेंगे केजरीवाल के सामने ?

भ्रष्टाचार को खत्म करने की नीयत से राजनीति मे आये और दुनिया के सबसे भ्रष्ट राजनीतिक दल के साथ दिल्ली मे गठबंधन सरकार चला रहे केजरीवाल जी को लोकसभा चुनावों मे जाने की इस कदर हड़बड़ी मची हुई है कि वह सही और गलत का फर्क ही नही कर पा रहे हैं. अब तो उनकी चौकड़ी इतनी शातिर हो चुकी है कि उन्होने जनता से एस एम एस करके राय लेना भी बंद कर दिया है. आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वाश केजरीवाल जी को प्रधान मंत्री बनाने को लेकर किस हद तक बढ़ा हुआ है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि यह पार्टी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अपने आपको कई मायनों मे अलग दिखाने की नाकाम कोशिश कर रही है. दिल्ली विधान सभा के चुनाव नतीजे 8 दिसंबर को घोषित हुये थे जिसमे 28 विधायक आम आदमी पार्टी के भी चुने गये थे-दल बदल कानून के हिसाब से अगर 28 के एक तिहाई विधायक यानी कि 10 विधायक अपने आप को अलग करके किसी दूसरी पार्टी को समर्थन दे देते है तो उनकी विधान सभा की सदस्यता भी बनी रहेगी और आम आदमी पार्टी का कानूनी तरीके से विभाजन भी हो जायेगा. आम आदमी पार्टी के नेताओं के पस कुछ ऐसी दिव्य शक्ति भी मौजूद है जो उन्हे 8 दिसं

बहुत मंहगी पड़ेगी ये "मोदी ब्रांड" चाय !

जी हाँ यहाँ किसी पांच सितारा होटल मे 100-200 रुपये मे एक कप मिलने वाली घटिया चाय की बात नही हो रही है. यहाँ उस चाय की बात हो रही है जिसके सपा नेता नरेश अगरवाल से लेकर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर तक दीवाने हैं और उस चाय का एक घूँट पीने के लिये ये दोनो नेता और इनकी पार्टियाँ युगों युगों से तरस रही हैं. कांग्रेस के प्रमुख सहयोगी राजनीतिक दल और उत्तर प्रदेश मे गुंडा राज की स्थापना करने वाली पार्टी सपा के नेता जब यह बोले कि मोदी तो चiय बेचने वाले हैं और वह क्या खाकर पी एम बनेंगे, तो किसी को बहुत ज्यादा हैरानी नही हुई- दरअसल उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से जंगल राज मे तब्दील कर चुके सपा के नेताजी की योजना यह थी कि धीरे धीरे इस गुंडा राज और जंगल राज की स्थापना  प़ूरे   भारत मे की जाये क्योंकि सभी देशवासियों का यह पूरा अधिकार है कि उन्हे भी इस अभूतपूर्व गुन्डाराज और जंगलराज का आनन्द मिले-यह आनन्द सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोगों की बपौती थोड़े ही है-लेकिन सपा के मनसूबों पर तब पानी फिरने लगा जब सब तरफ से यह चुनाव सर्वे आने लगे कि मोदी जी उत्तर प्रदेश मे भी जंगल और गुंडा राज को समाप्त करने का मन बना

तीसरे मोर्चे की अंतिम यात्रा निकलेगी इस बार ?

हिन्दी मे एक बड़ी ही मशहूर कहावत है-धोबी का कुत्ता, न घर का ना घाट का ! हमारे बड़े बुजुर्गों ने पता नही क्या सोचकर यह कहावत बनाई होगी लेकिन उन्हे क्या मालूम था कि उनकी बनाई हुई यह कहावत आज की तथाकथित राजनीति मे समय समय पर बनने वाले "थर्ड फ्रंट " यानि कि तीसरे मोर्चे पर बखूबी लागू हो जायेगी ! पहले तो यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह तीसरा मोर्चा है किस चिड़िया का नाम ? दरअसल कुछ ऐसे नेता और राजनीतिक दल हमारी व्यवस्था मे अपने आप पैदा हो गये हैं जिनका मुख्य कार्य ही देश, समाज और सरकार के अंदर "अव्यवस्था" पैदा करना है ! यह वे लोग हैं जो गलती से किसी तरह जीत कर विधान सभा या संसद मे पहुंच तो जाते हैं लेकिन उसके बाद क्या करें, उसका पता ना तो इन्हे होता है और ना ही उस जनता को जो इनको चुनकर भेजती है. ये वह राजनीतिक दल या नेता होते हैं जो चुनावों से पहले तो जनता से यही कहते रहते हैं कि हम किसी भी दूसरे दल के साथ किसी भी तरह का कोई गठबंधन नही करेंगे और सभी 545 सीटों पर चुनाव लडकर किसी ना किसी तरह प्रधान मंत्री बन जायेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनावों का समय नज़दीक आता है औ

केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता !

दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के  अभूतपूर्व  नेता अरविन्द केजरीवाल जी को पिछले कुछ दिनो से इस बात का खूब शौक चर्राया हुआ है कि वह बिना मांगे ही लोगों को ईमानदारी और बेईमानी का प्रमाण पत्र दे देकर खुद को धन्य समझ रहे हैं-मीडिया ने भी एकता कपूर के सास बहू के धारावाहिकों को छोड़कर इस चटपटी नौटंकी पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करने मे ही अपनी भलाई समझ ली है. खबर तो यह भी आ रही है की खुद एकता कपूर ने अपनी बदहाली से परेशान होकर यह फैसला किया है कि अब वह सिर्फ एक ही सीरियल पर अपना ध्यान केन्द्रित करके मनचाहा पैसा कमाएँगी. सीरियल का नाम होगा-"केजरीवाल को पी एम बनने से कोई नही रोक सकता." यह धारावाहिक लोगों को तब तक झेलना पड़ेगा जब तक केजरीवाल जी का पी एम के रूप मे राज्याभिषेक नही हो जाता. इशारा सॉफ है कि या तो केजरीवाल को पी एम बनाओ या फिर 24 घंटे हर चैनल पर यह सीरियल देखो-इस सीरियल को बनाने मे कलाकारों का खर्चा कोई नही आयेगा-यह भी एक बहुत बड़ी बचत होगी,क्योंकि कलाकारों की तो केजरीवाल साहब के पास कोई कमी नही है. सर्वगुण संपन्न और अनोखी प्रतिभा से युक्त ये कलाकार

चंदा वसूलने के लिये किये जा रहे हैं अंबानी पर हमले ?

मुकेश अंबानी ने देश को लूट लिया-अनिल अंबानी ने भी देश को लूट लिया ! अब हम लुटे पिटे मरे कुचले लोग जाएं तो जाएं कहाँ ? यह लोग सभी राजनीतिक दलों को दिल खोलकर चंदा देते हैं क्योंकि इस चंदे से सभी राजनीतिक दल अपना चुनाव प्रचार करते हैं-लेकिन यह लुटेरे इतने अजीब है कि अभी तक इन लोगों ने राजनीति मे हमारी उपस्थिति का संज्ञान ही नही लिया ! अगर बाकी के राजनीतिक दल राजनीति कर रहे हैं तो हम राजनीति मे क्या जनसेवा करने के लिये आये है जो चंदा बाकी के राजनीतिक दलों को मिलता है-एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल होने के नाते उस चंदे पर हमारा भी तो उतना ही हक है- देखा जाये तो हमारा हक कुछ ज्यादा ही है क्योंकि हम राजनीति मे नये नये आये हैं और हमारी जरूरतें भी कुछ ज्यादा ही है क्योंकि चुनाव प्रचार के अलावा हमे एक और भारी खर्चे का सामना भी करना पड सकता है दरअसल हम लोगों ने अपनी राजनीति चमकाने के लिये लोगों पर भ्रष्टाचार के अनाप शनाप मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगा तो दिये है-सब लोगों के पास तो मानहानि का दावा ठोंकने के लिये समय नही है लेकिन अगर कुछ लोगों ने भी हमारे ऊपर मानहानि का दावा ठोंक दिया तो हमारी बची

इस तरह बनेंगे केजरीवाल पी एम !

अन्ना हज़ारे यकायक भारत की राजनीति  मे पूरी तरह से सक्रिय होकर कूद पड़े है और राजनीति मे एक एक कर करके जितने भी खोटे सिक्के हैं, उनको आज़माकर उन पर अपना दाव खेलने के चक्कर मे हैं ! इस सारी कवायद मे यह भी सॉफ हो गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किये गये अपने तथाकथित आन्दोलन से उन्होने जनता की जितनी भी सहानुभूति और सम्मान पाया था, उसकी भी उन्होने लगभग बलि चढ़ाने का फैसला कर लिया है ! आजकल अन्ना हज़ारे महाराज पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की वकालत करते घूम रहे हैं ! पश्चिम बंगाल मे सरकार किस तरह चल रही है यह सभी को    मालूम है- पश्चिम बंगाल के जंगल राज को देखकर लल्लू द्वारा किसी जमाने बिहार मे फैलाये गये गुन्डाराज और जंगल राज की याद ताज़ा हो जाती है- शायद पश्चिम बंगाल के कुशासन की सही तुलना उत्तर प्रदेश मे बसपा और सपा के गुन्डाराज और जंगल राज से ही की जा सकती है-ऐसे मे सवाल यह पैदा होता है कि अपने पुराने चेले केजरीवाल तो अराजकता मे धकेलने के बाद क्या अन्ना हज़ारे अब ऐसे नेताओ के समर्थन का बीड़ा उठाने चले है, जो अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुके हैं ?  लल्लू जिस

"मोदी का रास्ता रोको" अभियान !

भ्रष्ट कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली मे 49 दिनों तक गठबंधन सरकार चलाने मे पूरी तरह से नाकाम होने के बाद   केजरीवाल जी आजकल मीडिया पर बुरी तरह बरस रहे है ! जिस मीडिया ने उन्हे एक सड़कछाप आन्दोलनकारी से उठाकर मुख्य मंत्री की कुर्सी तक पहुँचाया, वही मीडिया आज उन्हे बिका हुआ लगने लगा है ! उनकी इस अपराधिक सोच का समर्थन उनके आका यानि कि हमारे गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे भी करते नज़र आ रहे है जो मीडिया को धमकाते हुये उसकी आई बी से जांच कराकर उसे कुचलने की बात कहते है ! दरअसल 1975 मे एमर्जेन्सी की आग मे देश को झोंकने वाली कांग्रेस अपनी बौखलाहट के जुनून मे किसी भी हद तक जा सकती है ! अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने के लिये कांग्रेस कुछ भी कर सकती है यह तो शिन्दे के बयान से साफ हो ही चुका है- पहले भी कांग्रेस के इशारे पर एक तथाकथित पत्रिका "तहलका" के संपादक तरुण तेजपाल के जरिये  भाजपा पर हमला साधने की नाकाम कोशिस की गयी थी ! तरुण तेजपाल महोदय कांग्रेस पार्टी के इशारों पर नाच नाचकर लगातार दुष्कर्म करते रहे और अपने सभी दुष्कर्मों को उन्होने "तहलका" का नाम दे दिया !

मोदी से 7 तीखे सवाल !

मोदी से लोग पहले भी बहुत सवाल कर चुके हैं- आजकल आम आदमी पार्टी को भी मोदी से सवाल करने का चस्का लग गया है ! ठीक भी है, अब दिल्ली का काम काज़ तो देखना नही है, वक़्त गुजारने के लिये सबके पास कुछ ना कुछ काम तो होना ही चाहिये- सो मोदी से सवाल पूछ पूछकर ही अपना वक़्त काटते रहो ! सवाल पूछने की इसलिये भी जल्दी रहती है कि पिछले 65 सालों से जुबां पर ताले पड़े हुये थे- इसलिये जो सवाल पिछले 65 सालों मे नही  पूछ पाये वह फटाफट मोदी से  पूछ लिये जाएं- कहीं ऐसा ना हो कि कल को हमारे ना चाहते हुये भी मोदी जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएं और फिर मामला उल्टा पड जाये और मोदी जी हम लोगों से ही सवाल पूछने शुरु कर दे और 65 सालों मे हम लोगों ने जो भयंकर दुष्कर्म किये है, उनका हिसाब किताब ना चाहते हुये भी देना पड जाये ! क्योंकि सवाल पूछने का मौसम चल रहा है इसलिये हमने सोचा कि हम भी एक दो सवाल मोदी जी से कर ही डालें ! हमारे मोदी जी से यह सवाल हैं : 1. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन लोगों के लिये किस प्रकार के दंड का प्रावधान किया जायेगा जो लोग "देशद्रोह" नामक वस्तु को "सेकुलरिज्म"

किन मुददों पर लड़े जायेंगे 2014 के चुनाव ?

आम आदमी पार्टी के समर्थकों को इस बात  से कुछ निराशा हो सकती है और कांग्रेस के समर्थकों को इस बात से कुछ राहत मिल सकती है कि पहले की तरह ही 2014 के लोकसभा चुनावों मे भी भ्रष्टाचार कोई बहुत बड़ा मुद्दा नही बन सकेगा ! इस आकलन के पीछे मुख्य कारण यही है कि भ्रष्टाचार एक राजनीतिक समस्या नही है जैसा कि इसे प्रचारित किया जा रहा है, बल्कि यह एक सामाजिक समस्या है और जिस देश मे संतरी से लेकर मंत्री तक सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हों, वहां सिर्फ यह मान लेना कि सिर्फ हमारे राजनेता ही भ्रष्ट है,बिल्कुल गलत होगा ! हम लोग वही नेता चुनकर संसद या विधान सभा मे भेजते है, जो हमे पसंद होते है और हम उन्ही को चुनकर भेजते है जो हमारी विचारधारा से मेल खाते है ! पिछले 65 सालों के शासन मे भी अगर हम देखें कि जब जब किसी राजनीतिक दल ने भ्रष्टाचार से लड़ने की कोशिश की, उसे वहा की जनता ने चुनावी शिकस्त देकर भ्रष्ट या फिर ज्यादा भ्रष्ट लोगों के हाथ मे सत्ता सौंप दी ! कर्नाटक, उत्तराखंड और हिमाचल मे विधान सभा चुनावों मे हुई भाजपा की हार को इसी संदर्भ मे लेकर देखा जाना चाहिये ! कर्नाटक मे भाजपा ने भ्रष्ट येदु

नरेन्द्र मोदी के नाम खुला खत !

आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी, इस समय पूरे देश मे भाजपा की और खुद आपकी जबरदस्त लहर चल रही है- इसमे कोई दो राय नही है ! आपका प्रधानमंत्री बनना भी पूरी तरह तय है. लल्लू,नीतीश,ममता,माया,मुलायम, राहुल,सोनिया और केजरीवाल जैसे लोगों के बस की यह बात नही है कि आपको प्रधानमंत्री बनने से रोक सके ! लेकिन आपकी अपनी ही पार्टी द्वारा किये गये कुछ बेहद गलत फैसले आपके इस प्रधानमंत्री बनने की हकीकत को कभी ना पूरा होने वाले सपने मे तब्दील कर सकते है. अभी हाल ही मे बिहार मे पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ किया गया गठबंधन और तमिलनाडु मे डी एम के के करुणानिधि से बढ़ती नज़दीकियाँ निश्चित रूप से ऐसे गलत कदम हैं, जो भाजपा के अच्छे खासे चलते हुये विजय रथ को रोकने के लिये पर्याप्त हैं. ऐसी नरपिशाची शक्तियाँ जिनका भाजपा को हर हाल मे विरोध करना चाहिये, उन्ही के साथ गठबंधन करने का मतलब यही होगा कि जितनी सीटों पर इन पार्टियों के लोग खड़े होंगे, उतनी सीटे तो सीधे सीधे अपने 273 की संख्या मे से घटाकर चलना ही ठीक होगा ,क्योंकि जहां जहां भी इन लोगों के गुंडे,डाकू,बलात्कारी,हत्यारे,देशद्रोही और भ्रष्ट उम्मीदवार खड

देशद्रोहियों को बचाने मे जुटे अब्दुल्ला,अखिलेश और केजरीवाल !

बुधवार 5 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही आदर्श चुनाव संहिता जम्मू-कश्मीर समेत प़ूरे देश मे लागू हो गयी है, यह सभी को मालूम है ! सेकुलरिज्म का पाखंड कर के वोट बैंक की घटिया राजनीति करने वालों को लगता है, उन पर यह संहिता लागू नही होती है और वे देशद्रोहियों का समर्थन "सेकुलरिज्म" के नाम पर सिर्फ इसलिये किये जा रहे हैं, ताकि आने वाले लोकसभा चुनावों मे उनकी वोट बैंक की राजनीति चमकती रहे ! चुनाव आचार संहिता लागू होने के अगले ही दिन यानी 6 मार्च को जम्मू कश्मीर के माननीय मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जी का बयान आता है कि मेरठ की एक यूनिवर्सिटी मे 67 छात्रों पर देशद्रोह के लगाये गये आरोप दुर्भाग्यपूर्ण हैं और वापस लिये जाने चाहिये- वे इतने पर ही नही रुके-अपने नापाक इरादों को आगे अंज़ाम देने के लिये उन्होने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बात भी कर ली और उनसे उन्होने देशद्रोह के मामले वापस लेने के लिये औपचारिक रूप से अनुरोध भी कर डाला !  खास आदमियों के लिये बनी " आम आदमी पार्टी " भी भला कहा पीछे रहने वाली थी सो वह भी खुलकर इन देशद्रोह

केजरीलाल की "मीडिया सैटिंग"

खुल गया पाखंड मेरा-हाँ मैं केजरीलाल हूँ ! लुट गया घमंड मेरा-हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!   हवाई यात्राएं करता -मीडिया के खर्चे पर !  रंगे हाथों पकड़ा गया मीडिया से "सेटिंग" पर !! खुद किसी सवाल का जबाब नही बन पड़ता, औरों से सवाल करूँ, हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!  देशद्रोही- आतंकी, सब तो मेरे साथी हैं,  बन गया हूँ में दूल्हा,ये तो बस बाराती हैं !! मोदी ना बने पी एम, यह मुझे आदेश है- दंड का मैं अधिकारी, हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!  भूल  गया  भ्रष्टाचार, यह  मेरी  मजबूरी  है!  मीडिया से "सेटिंग" करना बहुत जरूरी है !! सी एम की तर्ज़ पर ही, पी एम बनवा दो मुझे बिक गया ईमान मेरा, हाँ मैं केजरीलाल हूँ !!  "सेकुलरिज्म का पाखंड" मेरा आखिरी सहारा है !  "मोदी लहर" ने मुझे भिगो- भिगो मारा है !! फंस  चुका  हूँ , अपने  ही  किये  दुष्कर्मों में, आखिर कितना झूठ बोलूँ- हाँ मैं केजरीलाल हूँ !! बीस सवालों की  यह लिस्ट मेरी दुश्मन है कैसे दूंगा जबाब इनके,भारी यह उलझन है दुष्कर्मों को अंज़ाम देना सिर्फ मुझे आता है ! खुल

मीडिया अटेंशन पाने के लिये किये ज़ा रहे हैं मोदी पर हमले ?

कुछ समय पहले मैने एक ब्लॉग लिखा था कि- "क्या मोदी टिक पायेंगे केजरीवाल के सामने ?"   केजरीवाल जी ने लगता है मेरे उस लेख को काफी गंभीरता से ले लिया है और उस दिन के बाद से वह लगातार कुछ ना कुछ ऐसा कारनामा अंज़ाम देने की फ़िराक़ मे रहते है कि जो भी हो, मुझे जैसे तैसे करके एक बार प्रधान मंत्री जरूर बनना है-उसके बाद वह सरकार 49 दिनो तक चले , 49 घंटों तक  चले या फिर 49 मिनट चलकर ही अपना दम तोड दे-इससे मेरा कोई सरोकार नही है क्योंकि देश मे चुनाव आयोग खाली बैठा हुआ है सो दुबारा चुनाव हो जायेंगे और दुबारा चुनाव होने पर जो खर्चा होगा वह कौन सा मेरी जेब से जा रहा है- जिन लोगों को बरगला बरगलाकर मैं वोट बटोरने की नाकाम कोशिश मे लगा हूँ, इन्ही के दिये गये टॅक्स के पैसे से मध्यावधि चुनाव भी लड लिये जायेंगे- हमारा तो शुरु से ही यही कहना रहा है कि हम सब "मरे पिटे कुचले हुये आम-आदमी" हैं और हमारे पास खोने के लिये कुछ भी नही है- अगर कोई खोयेगा तो जनता खोयेगी-हम लोग दरअसल उसूलों के बहुत ज्यादा पक्के हैं और एक ही उसूल पर चल रहे है -"अपना काम बनता -भाड मे जाये जनता !" जनता

मोदी के हाथों बिका हुआ है सारा मीडिया ?

जब से मीडिया ने केजरीवाल जी और उनकी ईमानदार पार्टी की 24 घंटे की जाने वाली आरती का प्रकाशन -प्रसारण कुछ कम किया है,केजरीवाल जी  मीडिया से खासे नाराज़ चल रहे हैं ! उनका यह भी कहना कि सारा का सारा मीडिया मोदी और भाजपा के हाथों बिका हुआ है ! केजरीवाल जी सिर्फ यही पर नही रुके और मीडिया को बाकायदा धमकाते हुये उन्होने यह भी कह दिया कि अगर मीडिया इसी तरह मोदी और भाजपा के हाथों बिकता रहा तो उसको जेल भेज दिया जायेगा ! केजरीवाल जी की बात मे कुछ ना कुछ तो दम है क्योंकि उसका सुबूत तो केजरीवाल जी के यू ट्यूब पर लीक हुये वीडियो से ही मिल जाता है जहां पर पूरी दुनिया यह देख सकती है कि दरअसल मीडिया को कौन खरीद रहा है और कौन बेच रहा है ! इस यू ट्यूब के वीडियो मे दरअसल केजरीवाल जी अपने इंटरव्यू की सैटिंग थोड़े ही कर रहे थे-वे बेचारे तो नरेन्द्र मोदी और भाजपा के किसी इंटरव्यू की सैटिंग करते हुये रंगे हाथों पकड़े गये थे-इसलिये उनका यह कहना बिल्कुल सही है कि सारा मीडिया मोदी और भाजपा के हाथों बिका हुआ है और केजरीवाल जी प्रधानमंत्री बने या ना बने, उसे जेल तो भेज ही देंगे-आखिर शीला दीक्षित को भी तो उन्हो

केजरीवाल :"महानायक" से "खलनायक" बनने तक का सफर !

आम तौर पर किसी भी नेता को महानायक से खलनायक  बनने की जरूरत इसलिये नही पड़ती है कि उनमे से ज्यादातर तो महानायक कहलाने के काबिल ही नही होते हैं और जो लोग होते हैं, उनमे से कुछ का सफर नायक पर और कुछ का खलनायक पर खत्म तो होता है,लेकिन उसमे खासा वक्त लगता है ! अपनी हड़बड़ी के लिये मशहूर केजरीवाल जी यहाँ इसका अपवाद ही कहे जायेंगे-इनका सफर अन्ना आन्दोलन के समय एक ठीक ठाक "महानायक" की तरह ही हुआ था और इनकी सादगी,विनम्रता, साफगोई और जनसाधारण से जुड़ने की इनकी जो प्रबल इच्छा शक्ति थी, उसीके चलते लोगों ने इन्हे सिर् आँखों पर बिठाया जिसका परिणाम हमने रामलीला मैदान, जन्‍तर मन्‍तर और इंडिया गेट पर इकट्ठा हुये अपार जनसमूह के रूप मे भी देखा ! केजरीवाल चाहते तो महानायक बने रह सकते थे ! लेकिन महानायक भी गलतियाँ करते हैं- जब ऐसा लग रहा था कि लोहा लगभग पूरी तरह गर्म होने वाला है और सरकार जैसे तैसे करके अन्ना के मन मुताबिक जनलोकपाल बिल लाने ही वाली थी, उसी समय इन लोगों के सब्र का पैमाना टूट गया और इन्होने अपनी राजनीतिक पार्टी बना डाली ! पार्टी बनने का मतलब था कि यह सीधे महानायक की पदवी से लु