मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है बढ़ती आबादी
जिस समय देश आज़ाद
हुआ था, देश की आबादी लगभग ३३ करोड़ के आसपास थी, जो अब बढ़कर लगभग चार गुनी होकर सवा
सौ करोड़ के आसपास पहुँच गयी है. आबादी किस रफ़्तार से बढी है, वह अपने आप में चिंता
का एक विषय है. लेकिन उससे भी अधिक चिंता वर्तमान सरकार को इस बात की होनी चाहिए कि
आज़ादी के बाद से ही लगातार बढ़ रही इस आबादी में विभिन्न समुदायों में आबादी किस अनुपात
में बढी है. पिछली सरकारों की बेहद गलत और भेदभावपूर्ण जनसँख्या नीतियों का ही यह नतीजा
है कि देश में जहां एक तरफ तो आबादी में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है,वहीं दूसरी तरफ बहुसंख्यकों
की आबादी में कमी आयी है. २०११ की जनगणना के आंकड़े यह बताते हैं कि जहां १९५१ से लेकर
२०११ तक बहुसंख्यकों की आबादी का प्रतिशत ८४.४८ से घटकर ८३.८० रह गया, वहीं मुस्लिम
आबादी का अनुपात ९.८ प्रतिशत से बढ़कर १४.२३ प्रतिशत हो गया.
मुसलमान
शासकों
और
अंग्रेजों
के
काल
में
भारत
में
जनगणना
का
आधार
बिल्कुल
भिन्न
था.
वस्तुत:
उस
समय
इसका
आधार
होता
था
किसी
भी
प्रकार
से
अपने
शासन
को
मजबूत
बनाए
रखना.
मुसलमान
आक्रमणकारियों,
पठानों
तथा
मुगलों
ने
भारत
का
इस्लामीकरण
या
गुलामीकरण
करने
के
भरसक
प्रयास
किए
थे.
क्रूर
मुसलमान
शासकों
ने
मजहबी
उन्माद
के
आधार
पर
हिन्दुओं
पर
क्रूर
अत्याचार,
भीषण
नरसंहार
तथा
जबरदस्ती
धर्मान्तरण
किया था. यह अंग्रेजों की नीति 'विभाजित करो एवं राज करो' का आधार था. इसी क्रम में उन्होंने जातीय संरचना की विसंगतियों को उभारा और उसी के अनुकूल जनगणना की प्रश्नावलियां भी तैयार कीं. अंग्रेज सदैव हिन्दुओं की जनसंख्या को 'बड़ा खतरा' कहते रहे. इसी नीति के अन्तर्गत वे मुस्लिम संरक्षण तथा तुष्टीकरण का सहारा लेते रहे. अंग्रेजों
की इन्ही नीतियों को आज़ादी के बाद से ही विभिन्न कांग्रेसी सरकारें सफलतापूर्वक अपनाती
रहीं और जाति-पाति और मुस्लिम तुष्टिकरण के जरिये वह आबादी को एक ख़ास तरीके से बढ़ाने
का षड्यंत्र करती रहीं.
यदि १८८१ से १९४१ तक की जनगणना के आंकड़े देखें तो ज्ञात होता है कि हिन्दुओं की जनसंख्या बिना किसी अपवाद के निरंतर घटती रही और इसके विपरीत मुसलमानों की जनसंख्या सदैव बढ़ती रही. सरकारी आंकड़ों के अनुसार १८८१ ई. में हिन्दुओं की जनसंख्या ७९.९ प्रतिशत थी, जो क्रमश: १८९१ ई. में ७४.२४ प्रतिशत, १९०१ ई. में ७२.८७ प्रतिशत, १९११ ई. में ७१.६८ प्रतिशत, १९२१ ई. में ७०.७३ , १९३१ में ७०.६७ तथा १९४१ में ६९.४८ प्रतिशत रही. अर्थात् इन साठ वर्षों में विश्व के एकमात्र हिन्दू बहुसंख्यक देश भारत में हिन्दुओं की लगभग ६ प्रतिशत जनसंख्या घट गई थी. विश्व में शायद किसी भी देश में ऐसा घटता हुआ अनुपात रहा हो. इसके विपरीत मुसलमानों की जनसंख्या १८८१ ई.
में कुल १९.९७ प्रतिशत थी, जो क्रमश: १८९१ ई. में २०.४१ प्रतिशत, १९०१ ई. में २१.८८ प्रतिशत, १९११ ई. में २२.३९ प्रतिशत, १९२१ में २३.३३ प्रतिशत, १९३१ में २३.४९ प्रतिशत तथा १९४१ में २४.२८ प्रतिशत हो गई थी. अर्थात् इस कालखण्ड में मुसलमानों की जनसंख्या ५ प्रतिशत बढ़ी. हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि का यह असन्तुलन अनोखा था. इसमें अनेक कारण थे. जैसे अंग्रेजों द्वारा मुस्लिम संरक्षण, तुष्टीकरण तथा उनका पक्षपातपूर्ण रवैया आदि. यह सर्वविदित है कि अंग्रेजी सरकार ने १९४१ ई. की जनगणना में जानबूझकर मुसलमानों के साथ पक्षपातपूर्ण नीति अपनाई थी. इसी भांति अंग्रेजों ने भारत में जातीय भेद बढ़ाकर समाज में अलगाव, टकराव तथा बिखराव किया था.
यह सर्वज्ञात है कि भारत का विभाजन अथवा पाकिस्तान का निर्माण कांग्रेस, जो उस समय देश के ७० प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधि होने का दावा करती थी, ने मजहब के आधार पर स्वीकार किया था. भारत के ९६.५ प्रतिशत मुसलमानों ने पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन किया था. केवल ३.५ प्रतिशत मुसलमानों ने इसका विरोध किया था. परन्तु १९५१ ई. की दसवर्षीय जनगणना के आंकड़ों से ज्ञात होता है भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् हुई पहली जनगणना में हिन्दुओं की जनसंख्या ८४.४८ प्रतिशत थी तथा मुसलमानों की जनसंख्या अचानक बढ़कर ९.९१ प्रतिशत हो गई थी.
देश आज़ाद होने
के बाद यह आशा थी कि भारतीय गणतंत्र में देश के सभी राजनीतिक दल भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुरूप राष्ट्र को मजबूत बनाएंगे तथा एकता के सूत्र में बांधेंगे. परन्तु इसकी सर्वप्रथम अवहेलना तथा दुरुपयोग देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने किया. कांग्रेस ने अपने घटते हुए जनाधार के कारण ब्रिटिश शासकों की नीति 'बांटो और राज करो' अपनाई तथा मुस्लिम तुष्टीकरण और मुस्लिम अलगाव भाव जगाकर उन्हें भारत की राष्ट्रीय मुख्यधारा से दूर रखा. उन्होंने मुस्लिम अल्पसंख्यक तथा हिन्दू साम्प्रदायिकता का राग अलापा तथा आपातकाल के दौरान संविधान में 'समाजवाद' तथा 'सेकुलरवाद' को जोड़कर राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग किया. कांग्रेस की देखा-देखी अन्य छद्म सेकुलरवादी दलों ने भी जातिवाद का उन्माद बढ़ाया तथा मुसलमानों की मजहबी भावना को भड़काया. स्वाभाविक है इसने जनसंख्या वृद्धि के सन्तुलन को भी बिगाड़ा.
२०११ की भारतीय जनगणना में मुस्लिम जनसंख्या के आंकड़े चौकाने वाले हैं. इसमें मुसलमानों की जनसंख्या १४ प्रतिशत बताई गई है. इसमें गैर-कानूनी रूप से आए बंगलादेशी मुसलमान शामिल नहीं हैं. यदि उन्हें भी मिला दें तो यह जनसंख्या १६ से १८ प्रतिशत तक हो सकती है.
कांग्रेस के साथ-साथ अन्य गैर भाजपाई राजनीतिक दलों ने जिस तरह से जनसख्या
नीति को एकतरफा तरीके से देश में लागू करके देश में पिछले लगभग ७ दशकों से जिस तरह
से माहौल ख़राब किया हुआ है, उसे सुधारना वर्तमान सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है.
(सामग्री/ आंकड़ों
के लिए आभार : के.एस. लाल की पुस्तक 'ग्रोथ ऑफ मुस्लिम पॉपुलेशन इन इंडिया', नई दिल्ली 1973, प्रो. राकेश सिन्हा की पुस्तक भारत नीति प्रतिष्ठान, जनगणना, 2011 'बाधित दृष्टि : विखंडित
विचार', नई दिल्ली, 2010. सतीश चन्द्र मित्तल की पुस्तक 'आधुनिक भारतीय इतिहास की प्रमुख भ्रांतियां )
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