क्या हो सकता है मोदी सरकार का अगला कदम ?

नोट बंदी की समय सीमा  समाप्त होने मे अब कुछ ही दिन बाकी रह गये है. 30 दिसंबर 2016 को नोट बंदी का यह अभूतपूर्व जन आन्दोलन समाप्त होने वाला है. लेकिन जैसा कि खुद पी एम मोदी यह बात कई बार कह चुके हैं कि काले धन, भ्रष्टाचार और सामाजिक अन्याय के प्रति जो कुछ भी किया जाना बाकी है, नोट बंदी उसकी एक शुरुआत भर है. दूसरे शब्दों मे कहा जाये तो नोट बंदी या विमुद्रीकरण उस प्रक्रिया की पहली किश्त है, जिसके जरिये पिछले 70 सालों की गंदगी को साफ किया जाना बाकी है. नोट बंदी के साथ साथ मोदी सरकार ने चुप चाप बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को भी 1 नवंबर 2016 से लागू कर दिया है, जिसे कांग्रेस सरकार के समय 1988 मे लाया गया था लेकिन कांग्रेस क्या, मोदी सरकार से पहले किसी भी सरकार की इतनी हिम्मत नही हुई कि वह इस कानून को लागू कर पाती. बेनामी प्रॉपर्टी से सम्बंधित कानून लागू करने का विरोध विपक्षी दलों ने दो कारणो से नही किया. पहला तो यह कि विपक्षी दल नोट बंदी से ही इतने अधिक सदमे मे थे कि उन्हे कुछ और सूझ नही रहा था. दूसरे, बेनामी प्रॉपर्टी के कानून को कांग्रेस के शासनकाल मे  ही पास किया गया था-मोदी सरकार ने उसे सिर्फ लागू करने का काम किया है.

काले धन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के रास्ते पर चलते हुये, मोदी सरकार निकट भविष्य मे कुछ और कड़े कदम उठा सकती है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है :

(1) आयकर कानून की धारा 13A के अंतर्गत सभी राजनीतिक पार्टियों की सभी तरह की आय और मिलने वाले चंदे पर बिना किसी रोकटोक और बिना किसी सीमा के आयकर की पूरी छूट मिली हुई है. गौर करने वाली बात यह है कि राजनीतिक दलों की ना सिर्फ सभी तरह् की आय पर कोई आयकर नही है, उन्हे मिलने वाले चन्दों पर भी कोई आयकर नही है. 20000 रुपये से ऊपर मिलने वाले चन्दों का तो राजनीतिक पार्टियों को हिसाब किताब रखने की भी जरूरत नही है. आयकर अधिनियम की यह धारा देश की जनता के साथ धोखा है- जहाँ देश की जनता को सरकार अपना आयकर समय पर और सही तरीके के भरने का उपदेश देती रहती है, वहीं, सभी राजनीतिक पार्टियों को सभी तरह की आय और चन्दों से होने वाली आय को आयकर के दायरे से बाहर रखना, काले धन और भ्रष्टाचार को बढाने जैसा ही है. मोदी सरकार इस धारा को पूरी तरह समाप्त करके देश की जनता को एक और "सरप्राइज" दे सकती है.

(2) नोट बंदी के बाद डाले गये सभी छापों मे भरी मात्रा मे नये नोट और सोना बरामद हुआ है. अपराधियों को पकड़कर पूछताछ भी की जा रही है. लेकिन जो मौजूदा कानून हैं, उनके तहत इस तरह के अपराधियों को रोक पाना संभव नही है. आज यह बात आम तौर पर कही जाती है कि -"रिश्वत लेते हुये पकड़े जाओ और रिश्वत देकर छूट जाओ." देश भर मे जितने भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हैं, चाहे वे राज्य सरकार के अंतर्गत आते हों या केन्द्र सरकार के, उनमे से ज्यादातर, तभी तक ईमानदार है, जब तक उन्हे भ्रष्ट होने का मौका ना मिले. पिछले दिनो नोट बंदी के दौरान बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों की काली करतूतें इसका जीता जागता उदाहरण है. अभी हाल ही मे जो नये नोट और सोना पकड़ा गया है, अगर उसकी ईमानदारी से जांच की जाये, तो यही सामने आयेगा कि बरामद किये गये नये नोटों और सोने मे से ज्यादातर हिस्सा किसी ना किसी सरकारी अधिकारी की रिश्वत के लिये ही था. भारत सरकार का एक ऐसा विभाग जिसकी छवि रिश्वत लेने के मामले मे सबसे ज्यादा खराब है, वहां बड़ी संख्या मे मामले हर साल निपटाये जाते हैं और उन्हे निपटाने की आखिरी तारीख हर साल 31 दिसंबर होती है. 8 नवंबर को नोट बंदी का फैसला हुआ तो इस विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी रिश्वत की मांग नये नोटो और सोने के रूप मे ही की होगी. इतने बड़े पैमाने पर नये नोटों और सोने की बरामदगी कम से कम इसी बात की ओर संकेत करती है. मजे की बात यह है कि जिस तरह से मोदी सरकार को बैंक अधिकारियों पर बहुत भरोसा था, उसी तरह मोदी सरकार को इस विभाग के अधिकारियों पर भी आने वाले समय मे भरोसा करना है. यह लोग मोदी सरकार के भरोसे पर खरे उतरें, इसे सुनिश्चित करने के लिये, सरकार कुछ ऐसे सख्त कदम उठा सकती है, जिससे इन लोगों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगे. किसी भी व्यक्ति के पास रखे जाने वाले अधिकतम सोने और नक़दी की सीमा तय करना और 100 रुपये से ऊपर के नये नोटों पर 3 से लेकर 5 वर्षों तक की "एक्सपाइरी डेट" लिखा जाना, जैसे कुछ फैसले भी निकट भविष्य मे लिये जा सकते हैं. सरल शब्दों मे कहें तो जब तक रिश्वत लेना और देना बंद पूरी तरह से बंद नही होगा, काले धन और भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त नही किया जा सकता और सभी सरकारी विभागों मे रिश्वत के इस लेन-देन पर लगाम लगाने के लिये मोदी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है.
( लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मांमलों के एक्सपर्ट है.)

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