पटाखे सिर्फ दिवाली पर ही प्रदूषण क्यों फैलाते हैं ?

"दिव्य देश" के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपना एक "ऐतिहासिक" फैसला सुनाते हुए "सिर्फ" दीपावली के अवसर पर पटाखे जलाने पर रोक लगा दी है. पटाखों पर लगी यह रोक सिर्फ नवम्बर तक के लिए ही है. इस तारीख के बाद पटाखे बेचे भी जा सकते हैं और जलाये भी जा सकते हैं. एक खोजी टी वी चैनल को यह बात कुछ हज़म नहीं हुयी सो उसने अपने एक होनहार रिपोर्टर को देश के पर्यावरण  मंत्री के पास  इंटरव्यू  लेने के लिए भेज दिया.

टी वी रिपोर्टर ने पर्यावरण मंत्री से मिलने का समय माँगा. मंत्री जी तो साक्षात्कार देने के लिए खुद ही उतावले हुए जा रहे थे. लिहाज़ा  तय समय पर रिपोर्टर मंत्री जी के निवास पर पहुँच गया.

बिना किसी औपचारिकता के रिपोर्टर ने मंत्री जी से अपना पहला सवाल दागा -" सर, अपने "दिव्य देश" में  पर्यावरण को लेकर लोग काफी जागरूक हो रहे हैं. अभी हाल ही में अपने सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मामले की गंभीरता समझते हुए दीपावली के मौके पर पटाखों की बिक्री और उन्हें जलाने पर रोक लगा दी हैअदालत के इस "ऐतिहासिक" फैसले पर आपका क्या कहना है ? "

मंत्री जी ने अपने गुस्से को किसी तरह दबाते हुए  जबाब दिया -" हमें क्या कहना है ? अरे हमारी सुन कौन रहा है ? पर्यावरण की चिंता हमसे ज्यादा अदालतों को हो रही है. अब इस देश को सरकारें और उनके मंत्री नहीं, अदालतें ही चला लेंगी. देखते हैं, यह सब कब तक चलता है."

रिपोर्टर : लेकिन मंत्री महोदय, जिस तरह से देश प्रदूषण की समस्या की चपेट में  चुका है, उसे देखते हुए अगर सरकार कोई कदम नहीं उठाएगी तो अदालतों को तो दखल देना ही पड़ेगा ना ? उस पर आप इतना आग बबूला क्यों हुए जा रहे हैं ?

मंत्री जी : पत्रकार महोदय, सिर्फ दीवाली के मौके पर पटाखों की बिक्री और जलाने पर रोक लगाने से इस देश से प्रदूषण की समस्या का समाधान हो जाता तो सरकार यह कदम कब का उठा चुकी होती और इस देश से प्रदूषण भी कब का खत्म हो गया होता.

रिपोर्टर : चलिए , अदालत ने तो सही गलत जो कुछ करना था सो कर दिया, अब आपकी सरकार और खुद आप इस मामले में क्या कार्यवाही करेंगे ?

मंत्री जी : हमारी कैबिनेट कमेटी की मीटिंग आज रात ही होने वाली है. उस मीटिंग में हम सबसे पहले तो इस रहस्य्मय गुत्थी को सुलझाने का प्रयास करेंगे कि आखिर यह पटाखे सिर्फ दीपावली जैसे त्योहारों पर ही प्रदूषण क्यों फैलाते हैंक्रिसमस या अंग्रेजी नए साल के मौके पर जो पटाखे बेचे जाते हैं और जलाये जाते हैं, अगर वे पटाखे किसी और तकनीक से बनाये जाते हैं तो बेहतर यही होगा कि उसी तकनीक से बनाये गए पटाखे दिवाली पर भी इस्तेमाल कर लिए जाएँ.

इस बार रिपोर्टर चकरा गया. मंत्री जी ने भी पहली बार एक समझदारी भरी बात कर डाली थी . खैर अपने को सँभालते हुए रिपोर्टर ने फिर सवाल कर दिया -" मंत्री महोदय आप यह कह रहे हैं कि दिवाली के अलावा अन्य सभी अवसरों और त्योहारों पर बेचे जाने वाले और जलाये जाने वाले पटाखों से प्रदूषण नहीं फैलता है- यह अनोखी बात आपको किसने बताई ?

मंत्री जी : बुरा मत मानना, आप पत्रकार हो या घसियारे हो ? अदालत के फैसले से तुम्हे यह बात समझ में नहीं आयी क्या ? अदालती फैसले के हिसाब से पटाखों की बिक्री और जलाये जाने पर सिर्फ नवम्बर तक की ही रोक है. कोई भी समझदार आदमी इसका जो मतलब निकलेगा, वही आप भी निकाल लो और अपने चैनल की टी आर पी बढ़ाने पर ध्यान दो.

रिपोर्टर अब मंत्री जी के बढ़ते गुस्से को भांप गया था और उसने अपना बोरिया बिस्तर वहां से समेटने में ही अपनी भलाई समझी. मंत्री जी को समय देने के लिए शुक्रिया करता हुआ वह फटाफट वहां से खिसक लिया

( इस व्यंग्य रचना के सभी पात्र एवं घटनाएं  काल्पनिक हैं )



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