वित्तीय घोटालों और अनियमितताओं में घिरी हुई है उत्तर प्रदेश सरकार की इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी
गौतम बुद्ध नगर में वैसे तो कुल चार प्राधिकरण हैं लेकिन ज्यादातर लोगों को सिर्फ नॉएडा अथॉरिटी ,ग्रेटर नॉएडा अथॉरिटी और यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी के बारे में ही जानकारी है- चौथी अथॉरिटी जिसका नाम DMIC IITGNL है ,उसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है. दरअसल इस अथॉरिटी का ऑफिस भी ग्रेटर नॉएडा अथॉरिटी के ऑफिस के अंदर ही है और ग्रेटर नॉएडा अथॉरिटी के मैनेजमेंट ने इस पर पूरी तरह कब्ज़ा किया हुआ है जिसकी वजह से इस अथॉरिटी के कारनामे जनता के सामने नहीं आ रहे हैं और प्रदेश सरकार भी इस अथॉरिटी के अजीबोगरीब कारनामों से पूरी तरह अनजान और बेखबर बनी हुई है. अथॉरिटी अपने कारनामों को छुपाने के लिए सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत पूछे गए सवालों का भी जबाब देने में आनाकानी करती है -आर टी आई के जरिये पूछे गए सवालों का या तो अथॉरिटी द्वारा कोई संतोषजनक जबाब दिया ही नहीं जाता है और अगर दिया भी जाता है तो वह आधा अधूरा और असंतोषजनक होता है .
गौरतलब
बात
यह
है
कि DMIC IITGNL की
स्थापना
कंपनी
कानून
के
तहत
की
गयी
है
और
इस
पर
कंपनी
अधिनियम,2013
के
सभी
कायदे
कानून
लागू
होते
हैं.
लेकिन
ज्यादातर
कंपनी
कानूनों
का
इस
अथॉरिटी
में
पालन
ही
नहीं
किया
जा
रहा
है
-कंपनी
कानून
की
धारा
203(1) के अनुसार इस
कंपनी(अथॉरिटी)
में
फुल
टाइम
सी
ई
ओ
और
फुल
टाइम
सी
एफ
ओ
की
नियुक्ति
अनिवार्य
है
लेकिन
सन
2016 से
जब
से
यह
कंपनी
बनी
है,
इसमें
फुल
टाइम
सी
ई
ओ
नियुक्त
नहीं
किया
गया
है
और
ग्रेटर
नॉएडा
अथॉरिटी
के
सी
ई
ओ
ही इस अथॉरिटी
के
सी
ई
ओ
का
काम
खुद
देख
रहे
हैं.
इसी
तरह
इस
कंपनी
में
फुल
टाइम
सी
एफ
ओ
भी
नहीं
है
और
ग्रेटर
नॉएडा
अथॉरिटी
के
डी
जी
एम
फाइनेंस
को
ही
गैर
कानूनी
तरीके
से
इस
अथॉरिटी
का
सी
एफ
ओ
बना
दिया
गया
है.लगभग
तीन
हज़ार
करोड़
की
पूँजी
वाली
यह
अथॉरिटी
बिना
फुल
टाइम
सी
ई
ओ
और
बिना
फुल
टाइम
सी
एफ
ओ
के
एकदम
भगवान
भरोसे
चल
रही
है-कंपनी
में
औपचारिकता
के
लिए
जो
5-6 कर्मचारी
रखे
भी
हुए
हैं,
वे
सभी
कॉन्ट्रैक्ट
पर
रखे
हुए
हैं-कंपनी
ने
एक
दो
बार
कुछ
समय
के
लिए
फुल
टाइम
सी
एफ
ओ
भी
रखे
थे
लेकिन
क्योंकि
वह
सभी
सी
एफ
ओ
नियम
कानून
और
कायदे
से
काम
करने
की
हिदायत
कंपनी
मैनेजमेंट
को
दे
रहे
थे
और
कम्पनी
मैनेजमेंट
के
लिए
रोड़ा
बन
रहे
थे,
इसलिए
उन्हें
किसी
न
किसी
बहाने
से
कुछ
समय
बाद
ही
जबरन
इस्तीफ़ा
लेकर
निकल
दिया
जाता
रहा
है.
कंपनी
(अथॉरिटी)
ने
सी
ए
जी
का
ऑडिटर
भी
2021 में
नियुक्त
करवाया
है,
जबकि
कंपनी
2016 से
चल
रही
है
-जिस
सी
एफ
ओ
ने
जोर
लगवाकर
सी
ए
जी
का
ऑडिटर
कंपनी
के
नियुक्त
करवाया
था,
उसे
भी
कंपनी
के
मैनजेमेंट
ने
जबरन
इस्तीफ़ा
लेकर
बाहर
का
रास्ता
दिखा
दिया
है
इस अथॉरिटी
के
कारनामे
यहीं
ख़त्म
नहीं
होते
हैं.
अथॉरिटी
का
मुख्य
काम
इंडस्ट्रियल
टाउनशिप
का
विकास
करना
है
और
उसके
लिए
इंडस्ट्री
के
लिए
जमीन
को
बेचना
है.
लेकिन
जिस
औद्योगिक
जमीन
की
लागत
ही
लगभग
20000
रुपये
प्रति
वर्गमीटर
आ
रही
थी
उस
जमीन
को
अथॉरिटी
ने
औने
पौने
दामों
पर
मात्र
5250 के
औसत
दाम
पर
बेंच
दिया
और
इस
तरह
अरबों
खरबों
का
चूना
सरकारी
राजस्व
को
लगा
दिया
गया.
ऐसा नहीं
है
कि
20000
रुपये
प्रति
वर्ग
मीटर वाली इंडस्ट्रियल
लैंड
अथॉरिटी
ने
अनजाने
ने
या
किसी
गलती
में
5250
रुपये
के
औसत
रेट
पर बेच दी
हो-
ऐसा
लगता
है
कि
यह
सब सरकारी ख़ज़ाने
को
चूना
लगाने
की
नीयत
से
जानबूझकर
किया
जा
रहा
था.
दरअसल अथॉरिटी
की
जमीन
किस
रेट
पर
बिकनी
चाहिए
यह
तय
करने
का
काम
अथॉरिटी
के
मुख्य
वित्तीय
अधिकारी
का
होता
है
लेकिन
अथॉरिटी
में
ज्यादातर
समय
मुख्य
वित्तीय
अधिकारी
की
नियुक्ति
ही
नहीं
की
गयी.
बड़ा
सवाल
यह
भी
है
कि
जब
ग्रेटर
नॉएडा
अथॉरिटी
खुद
अपनी
इंडस्ट्रियल
लैंड
लगभग
20000
रुपये
प्रति
वर्ग
मीटर
के
भाव
पर
बेच
रही
थी
तो
इस
अथॉरिटी
की
जमीन
जो
उससे
कहीं
अधिक
बेहतर
थी,
उसे
औने
पौने
दामों
में
क्यों
बेच
दिया
गया
?
2019 में
अथॉरिटी
ने
कॉन्ट्रैक्ट
पर
एक
मुख्य
वित्तीय
अधिकारी
की
नियुक्ति
की.
नए
मुख्य
वित्तीय
अधिकारी
( सी
एफ
ओ
) ने
सबसे
पहले
कंपनी
के
सी
ई
ओ
के
सामने
इसी
मुद्दे
को
जोर
शोर
से
उठाया
और
यह
बताया
कि
किस
तरह
से
कम्पनी
की
टाउनशिप
की
जमीन
लागत
से
भी
काम
दामों
में
कौड़ियों
के
भाव
औने
पौने
दामों
पर
बेची
जा
रही
है.
सी
एफ
ओ ने जमीन
के
दामों
को
बढाकर
लगभग
20000
रुपये
प्रति
वर्ग
मीटर
करने
का
प्रस्ताव
भी
दिया
लेकिन
किसी
न
किसी
बहाने
से
कम्पनी
का
बोर्ड
ऑफ़
डायरेक्टर्स
जमीन
के
रेट
बढ़ाने
में
आनाकानी
करता
रहा-2021
में
कम्पनी
में
जमीन
के
रेट
को
तय
करने
का
काम
सी
एफ
ओ
से
लेकर
एक
प्राइवेट
कंसल्टैंट
को
दे
दिया
और
मुख्य
वित्तीय
अधिकारी
(सी
एफ
ओ)
से
इस्तीफा
यह
कहकर
मांग
लिया
कि
कम्पनी
को
अब
उनकी
सेवाओं
की
जरूरत
नहीं
है
लिहाज़ा
उन्हें
अब
अपना
इस्तीफ़ा
दे
देना
चाहिए.
इस तरह
से
यह
देखा
जा
सकता
है
कि
पहले
तो
कम्पनी
मैनेजमेंट
कम्पनी
में
कोई
फुल
टाइम
सी
एफ
ओ
रखती
ही
नहीं
है
और
अगर
रख
भी
लेती
है
तो
उसे
जल्द
से
जल्द
बाहर
निकालने
का
बहाना
खोजती
रहती
है
क्योंकि
सी
एफ
ओ
जो
कि
एक
चार्टर्ड
अकाउंटेंट
भी
होता
है,
वह
कम्पनी
की
सभी
वित्तीय
अनियमितताओं
पर
अपनी
टीका
टिप्पणी
करता
रहता
है
जो
कम्पनी
मैनेजमेंट
को
पसंद
नहीं
आती
हैं.
कम्पनी ने
कुछ
औधोगिक
घरानों
को जमीन के
साथ
साथ
एफ ए
आर
(FAR) भी
मुफ्त
में
दे
दी
है
जबकि
इसके
लिए
पैसे
लिए
जाने
चाहिए
थे
सवाल यह
है
कि
यह
सब
वित्तीय
अनियमितताएं
और
घोटाले
इस
अथॉरिटी
में
हो
रहे
थे
लेकिन
प्रदेश
सरकार
को
उसकी
भनक
आज
तक
भी
क्यों
नहीं
है
? 2016 में अथॉरिटी बनने
के
साथ
ही
सरकार
को
यह खुद सुनिश्चित करना चाहिए था कि
अथॉरिटी
में
फुल
टाइम
सी
ई
ओ
की
नियुक्ति
हो
जो
अथॉरिटी
का
काम
काज
गंभीरता
से
देखे.
साथ
ही
सरकार
को
यह
भी
सुनिश्चित
करना
चाहिए
कि
वह
खुद
किसी
सीनियर
चार्टर्ड
अकाउंटेंट
को
अथॉरिटी
का
सी
एफ
ओ
भी
(CFO) नियुक्त करे जिसकी
रिपोर्टिंग
चाहे
मैनेजमेंट
को
ही
हो
लेकिन
मैनेजमेंट
के
पास
उसे
निकालने
का
अधिकार
ना
हो
ताकि
वह
स्वतंत्र
रूप
से
अपना
काम
कर
सके
और
कम्पनी
में
हो
रही
सभी
वित्तीय
अनियमितताओं
और
घोटालों
का
पर्दाफाश कर सके.
इन सभी घपलों और घोटालों का नतीजा यह निकला है कि इस इंडस्ट्रियल टाउनशिप डवलपमेंट का काम जो काफी समय पहले ही निपट जाना चाहिए था,अभी तक लटका पड़ा हुआ है.
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