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भ्रष्ट देशद्रोहियों से निपटने में मोदी सरकार नाकाम ?

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के सुपुत्र कार्ति  चिदंबरम लन्दन भाग गए हैं. लन्दन भागने के बाद कार्ति चिदंबरम पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार के मामले के आधार पर उनके खिलाफ मनी लांड्रिंग (धनशोधन) का एक मामला दर्ज किया है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब कोई व्यक्ति पहली बार देश छोड़कर भागा हो. इससे पहले ललित मोदी और विजय माल्या भी लन्दन भाग चुके हैं और इन दोनों को भी सरकार पकड़कर वापस लाने में पूरी तरह नाकाम रही है.  कार्ति चिदंबरम पर आपराधिक साजिश रचने, धोखाधड़ी, भ्रष्ट या अवैध तरीके से फायदा उठाने, सरकारी अधिकारी को प्रभावित करने तथा आपराधिक आचरण का आरोप लगाया गया है. सवाल यह उठ रहा है कि पी चिदंबरम, कार्ति  चिदंबरम और लल्लू यादव पर जो हालिया छापेमारी हुई है, क्या उसके मद्देनज़र सरकार और सरकारी एजेंसियों को पहले से ही इस बात का अंदेशा नहीं हो जाना चाहिए था कि यह सब लोग या इनमे से कोई भी व्यक्ति देश छोड़कर भाग सकता है. क्या सरकार ललित मोदी और विजय माल्या के भागने से कोई भी सबक लेने को तैयार नहीं है. जब इ

विरोधियों की चाल पर भारी पड़ते मोदी के 3 साल !

मोदी सरकार को बने हुये लगभग तीन साल पूरे हो चुके हैं. 2014 मे जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी तो विपक्ष को भाजपा की जीत और अपनी हार दोनो ही हज़म नही हुई थी. एक हारे हुये खिलाड़ी की बौखलाहट विपक्ष के हर नेता मे पिछले 3 सालों से साफ साफ देखी जा सकती है. ऐसा कोई षड्यंत्र नही था, जिसे विपक्षी दलों ने पिछले 3 सालों मे अंज़ाम ना दिया हो. यह ठीक है कि मोदी ने शालीनता के चलते इन षड्यंत्रकारियों पर अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नही की है, जिसकी देश की जनता को बेताबी से प्रतीक्षा है, लेकिन विपक्षी दलों के यह सभी षड्यंत्रकारी जनता की नजरों मे पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं और पिछले 3 सालों मे इन विपक्षी दलों की जनता ने इस तरह से ठुकाई की है कि संसद से लेकर विभिन्न राज्यों की सत्ता भी इन  षड्यंत्रकारियों   के हाथ से आहिस्ता आहिस्ता खिसकती जा रही है. बिहार और दिल्ली की जनता ने इन षड्यंत्रकारियों के हाथ मे सत्ता सौंपकर जो भयंकर भूल की थी, उसका भारी खामियाजा इन दोनो राज्यों की जनता आज तक चुका रही है.  मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही काले धन पर ठोस कार्यवाही करने के लिये एस आई टी गठित कर दी और इस क्रांति

मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है बढ़ती आबादी

जिस समय देश आज़ाद हुआ था, देश की आबादी लगभग ३३ करोड़ के आसपास थी, जो अब बढ़कर लगभग चार गुनी होकर सवा सौ करोड़ के आसपास पहुँच गयी है. आबादी किस रफ़्तार से बढी है, वह अपने आप में चिंता का एक विषय है. लेकिन उससे भी अधिक चिंता वर्तमान सरकार को इस बात की होनी चाहिए कि आज़ादी के बाद से ही लगातार बढ़ रही इस आबादी में विभिन्न समुदायों में आबादी किस अनुपात में बढी है. पिछली सरकारों की बेहद गलत और भेदभावपूर्ण जनसँख्या नीतियों का ही यह नतीजा है कि देश में जहां एक तरफ तो आबादी में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है,वहीं दूसरी तरफ बहुसंख्यकों की आबादी में कमी आयी है. २०११ की जनगणना के आंकड़े यह बताते हैं कि जहां १९५१ से लेकर २०११ तक बहुसंख्यकों की आबादी का प्रतिशत ८४.४८ से घटकर ८३.८० रह गया, वहीं मुस्लिम आबादी का अनुपात ९.८ प्रतिशत से बढ़कर १४.२३ प्रतिशत हो गया. मुसलमान शासकों   और अंग्रेजों   के काल में भारत में जनगणना का आधार बिल्कुल भिन्न था. वस्तुत : उस समय इसका आधार होता था   किसी भी प्रकार से अपने शासन को मजबूत बनाए रखना. मुसलमान आक्रमणकारियों , पठानों तथा मुगलों ने भारत का

देश को मोदी-योगी जैसे नेता चाहियें,केजरीवाल जैसे नहीं

केजरीवाल के चाल, चरित्र और चेहरे को बेनकाब करने वाले सबसे ज्यादा लेख शायद मैंने ही लिखे हैं. १८ मार्च २०१४ को भी केजरीवाल को बेनकाब करता हुआ मेरा लेख प्रकाशित हुआ था, जिसका शीर्षक था-” केजरीवाल: महानायक से खलनायक बनने तक का सफर”. मीडिया ने तो दिल्ली MCD चुनावों के बाद उन्हें खलनायक घोषित किया है लेकिन मेरे हिसाब से तो वह इस “सम्मान” के अधिकारी आज से लगभग तीन साल पहले ही हो चुके थे, उसी के चलते २०१४ के लोकसभा चुनावों में भी उनका सूपड़ा साफ़ हो गया था लेकिन, मोदी की २०१४ की जीत से बौखलाए अल्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण के चलते केजरीवाल ६७ सीटों के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए. केजरीवाल किसी भी कारण से मुख्यमंत्री बने हों, लेकिन उनके पास अपने आप को साबित करने का एक बेहतरीन मौका था -जिन मुद्दों को वह अन्ना आंदोलन के वक्त और उससे पहले जोर शोर से उठाने की नौटंकी कर रहे थे, उन्हें अमली जामा पहनाने का भरपूर मौका उनके पास था. जनता ने दिल खोलकर बहुमत दिया था. मेरे जैसे लोग तो खैर हैरान थे, क्योंकि मुझे यह मालूम था कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है- काम करना केजरीवाल की फितरत में नहीं है. अपनी पढाई