सांप्रदायिक कौन : मोदी या मनमोहन ?

रविवार १९ फरवरी २०१७ को उत्तर प्रदेश की एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुये प्रधान मंत्री मोदी ने यह वक्तव्य दिया कि-"धर्म के आधार पर भेदभाव नही होना चाहिये. अगर रमज़ान मे बिजली मिलती है तो दिवाली मे भी बिजली मिलनी चाहिये." देश के सारे के सारे विपक्षी दल पी एम मोदी के इस वक्तव्य को "साम्प्रदायिक" बता रहे हैं और इस हद तक आग बबूला हो गये हैं कि शिकायत लेकर चुनाव आयोग के पास भी पहुंच गये हैं.

पीं एम मोदी के इस वक्तव्य पर और चर्चा करने से पहले आइए हम सन २००६ मे दिये गये तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान पर भी नज़र डाल लेते हैं-" मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों का इस देश के संशाधनों पर पहला हक है."

कोई भी साधारण पढ़ा लिखा या समझदार व्यक्ति यह आसानी से बता सकता है कि ऊपर दिये गये दोनो बयानों मे से कौन सा बयान "साम्प्रदायिक" है और कौन सा बयान देश और समाज को भेदभाव से मुक्त रखने की सलाह दे रहा है.

 विपक्षी दलों के साथ दिक्कत यह है कि पिछले ७० सालों से वे लोग जिस तरह से देश और समाज मे भेदभाव, जातिवाद और साम्प्रदायिकता का जहर घोल घोल कर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे थे, मोदी उन सब को बेनकाब कर रहे हैं और क्योंकि इनकी "वोट बैंक" की राजनीतिक रोटियाँ अब बहुत जल्द ही बंद होने वाली हैं, इन सभी ने अपनी अपनी छाती पीटना और विधवा विलाप करना शुरु कर दिया है.
 यह विपक्षी दल शायद अभी भी देश की जनता को अनपढ, जाहिल और मूर्ख समझने की गलती कर रहे हैं कि यह लोग मोदी और भाजपा के खिलाफ जो कोई भी दुष्प्रचार करेंगे, उसे इस देश की जनता सच समझ कर इनके चंगुल मे एक बार फिर फंस जायेगी. २०१४ के लोकसभा चुनावों मे इस देश की जनता ने यह साबित कर दिया है कि जनता विपक्षी दलों की जाति-पाति और धर्म के आधार पर बांटने वाली ओछी राजनीति से अब ऊब चुकी है. देश के विपक्षी राजनीतिक दल जितनी जल्द यह बात समझ लेंगे, उनकी सेहत के लिये अच्छा होगा


Comments

Popular posts from this blog

ऑनलाइन पैसा कमाने के 5 बेहतरीन तरीके

क्या हो सकता है मोदी सरकार का अगला कदम ?

पी एम पद की दौड़ मे मोदी किस नंबर पर ?