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U.P.ELECTION RESULTS : BEGINNING OF THE END OF THE FAKE SECULARISM

With the announcement of the results of the recently concluded Uttar Pradesh Assembly election, all non-BJP parties, indulging in fake secularism for the last 70 years, are shocked and surprised. They are simply shocked that their age-old, tried and tested methods of dividing the voters, based on their caste, community and religion did not work this time. These parties are yet to reconcile with the very fact that people have not only defeated them, but have also defeated the unholy practice of "fake secularism", which had been rampant in the country for the last seven decades. Our mainstream media has been fan and great supporter of such fake secular practices adopted by the non-BJP parties. Before we proceed further, let us understand, what is meant by "fake secularism"? Fake secularism is the communalism of the worst kind which is a practice of taking the majority population of the country for granted and appeasement of minorities and certain sections of

दिल्ली,गुजरात और हिमाचल में भाजपा की जीत लगभग तय

दिल्ली नगर निगम  के चुनावों की तारीखों  का एलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. नगर निगम के चुनावों को "मिनी-विधान सभा चुनाव" भी माना जा सकता है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी विधान सभा चुनाव इसी साल होने हैं. हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में भाजपा ४ राज्यों में विजयी हुईं है . पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन को मिली हार की तुलना दिल्ली विधान सभा में भाजपा की हार से की जा सकती है, जहां कांग्रेस और केजरीवाल के “अघोषित गठबंधन” का फायदा केजरीवाल को मिला और उसी के बदले में पंजाब चुनावों में इसी “अघोषित गठबंधन” के तहत केजरीवाल ने पंजाब में कांग्रेस की सरकार  बनबाने में मदद की. यह सभी को मालूम है कि केजरीवाल ने पंजाब में अकाली-भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई है. अगर केजरीवाल के मिले वोट प्रतिशत और अकाली-भाजपा गठबंधन के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो वह इतना ज्यादा है कि अगर केजरीवाल पंजाब में नहीं लड़ रहे होते तो वहां अकाली भाजपा गठबंधन को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसी ही जीत मिलनी लगभग तय थी. यह बात भी सच है कि अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार वहां पिछले १० स

मोदी सरकार जीत गयी लेकिन हारा कौन ?

हाल ही में आये विधान सभा चुनाव के परिणामों में भाजपा को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मिले प्रचंड बहुमत ने सभी चुनावी पंडितों और विश्लेषकों के साथ साथ, उन सभी स्व-घोषित सेक्युलर पार्टियों और मीडिया में उनके पैसे पर पल रहे उन पत्रकारों को यकायक सकते में दाल दिया है, जिनका चुनावी आकलन हमेशा ही धर्म,जाति और संप्रदाय तक ही सीमित रहता था और जो पिछले ७० सालों से साम्प्रदायिकता और जाति-पाति पर आधारित राजनीति करते आये थे. ऐतिहासिक पराजय से बौखलाए यह लोग अब बिहार में किये गए ठगबंधन को मिली जीत को याद कर रहे हैं और उत्तर प्रदेश में उसी ठगबंधन की नाकामयाबी पर अपना सर पीट रहे हैं. यह लोग शायद यह भूल गए हैं कि " काठ की हांडी सिर्फ एक बार चढ़ती है" और जनता इन लोगों से ज्यादा समझदार है और   बिना किसी विचारधारा  के सिर्फ मोदी सरकार को हराने के उद्देश्य से बनाये गए इन ठगबंधनों को अब जिताने वाली नहीं है. पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में जिन ६९० सीटों पर चुनाव हुआ, उनमे से ४३४ सीटों पर अपनी निर्णायक जीत दर्ज कराकर भाजपा ने न सिर्फ इतिहास बनाया है, देश में मौजूद उन ताकतों के मुंह प

केजरीवाल के "कारनामे" बोल रहे हैं

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (JNUSU) का भूतपूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार , जिस पर देशद्रोह और आपराधिक षड्यंत्र जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज करके फरवरी २०१६ में   उसे हिरासत में ले लिया गया था , दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने २ / ३ / २०१६ के एक फैसले में उसे सशर्त जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था और वह आज तक जमानत पर रिहा है . काफी पाठकों के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि यह घटना तो लगभग एक साल पहले की   है , इसका जिक्र मैं आज एक साल बाद क्यों कर रहा हूँ . इस सवाल का जबाब पाठकों को यह पूरा लेख पढ़ने के बाद अपने आप ही मिल जाएगा . दिल्ली हाई कोर्ट का कन्हैया को जमानत पर रिहा करने वाला फैसला अपने आप में ऐतिहासिक था - यह २३ पेज का फैसला है और इसमें ५७ पैराग्राफ्स हैं . कोर्ट ने कन्हैया को जमानत पर रिहा करते समय कुछ सख्त टिप्पणियां JNU के छात्रों और वहां पढ़ा रहे अध्यापकों पर भी की थी , उन सभी का जिक्र यहाँ इस लेख में करना संभ