केजरीवाल के "कारनामे" बोल रहे हैं
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (JNUSU) का भूतपूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, जिस पर देशद्रोह और आपराधिक षड्यंत्र जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज करके फरवरी २०१६ में उसे हिरासत में ले लिया गया था, दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने २/३/२०१६ के एक फैसले में उसे सशर्त जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था और वह आज तक जमानत पर रिहा है. काफी पाठकों के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि यह घटना तो लगभग एक साल पहले की है, इसका जिक्र मैं आज एक साल बाद क्यों कर रहा हूँ. इस सवाल का जबाब पाठकों को यह पूरा लेख पढ़ने के बाद अपने आप ही मिल जाएगा. दिल्ली हाई कोर्ट का कन्हैया को जमानत पर रिहा करने वाला फैसला अपने आप में ऐतिहासिक था -यह २३ पेज का फैसला है और इसमें ५७ पैराग्राफ्स हैं. कोर्ट ने कन्हैया को जमानत पर रिहा करते समय कुछ सख्त टिप्पणियां JNU के छात्रों और वहां पढ़ा रहे अध्यापकों पर भी की थी, उन सभी का जिक्र यहाँ इस लेख में करना संभव नहीं है. मीडिया को यह "सख्त टिप्पणियां " इतनी नागवार लगी थीं, कि काफी "वरिष्ठ पत्रकारों" ने उसके खिलाफ उस समय लेख भी लिखे थे और कुछेक अख़बारों ने तो हाई कोर्ट कि इन सख्त टिप्पणियों की आलोचना करते हुए संपादकीय ही लिख मारे थे.
JNU के साबरमती ढाबा पर ९ फरवरी २०१६ को एक कार्यक्रम आयोजित किये जाने की योजना थी. कार्यक्रम का नाम रखा गया था-“POETERY READING-A COUNTRY WITHOUT A POST OFFICE”. कार्यक्रम के नाम में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था और इसीलिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसकी इज़ाज़त दे दी थी. जब कार्यक्रम शुरू हुआ और वहां पर पोस्टर, फोटो और वीडियो सामग्री देखकर यूनिवर्सिटी प्रशासन को लगा कि यह देश द्रोह का मामला हो सकता है और उन्होंने आनन फानन में इस प्रोग्राम की परमिशन को वापस ले लिया. इसके बाद वहां जो कुछ भी हंगामा हुआ, उसमे हाई कोर्ट के आदेश के पैरा संख्या ३० के मुताबिक-"पुलिस ने मौका-ऐ-वारदात से जो पोस्टर,फोटो और विडियो सामग्री बरामद की, उनमे नीचे लिखे हुए नारों का जिक्र था :
१. अफ़ज़ल गुरु मकबूल भट्ट जिंदाबाद
२.भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी.
३. गो इंडिया गो बैक
४.इंडियन आर्मी मुर्दाबाद
५.भारत तेरे टुकड़े होंगे-इंशाअल्लाह इंशा अल्लाह
६.अफ़ज़ल की हत्या नहीं सहेंगे-नहीं सहेंगे
७- बन्दूक की दम पर लेंगे आज़ादी
हाई कोर्ट के आर्डर में बहुत सारी सख्त टिप्पणियों में से कुछ का यहां जिक्र करना जरूरी है :
* पैरा ३९ में कोर्ट लिखता है-" यह सभी को ध्यान रखना चाहिए कि जिस “अभिव्यक्ति की आज़ादी” की हम बात कर रहे हैं, वह हमें तभी तक मिली हुयी है, जब तक हमारी सेनाएं सियाचीन ग्लेशियर जैसे दुर्गम इलाकों में सीमा पर खड़े होकर हमारी रक्षा कर रही हैं. "
* पैरा ४१ में कोर्ट आगे लिखता है :" कुछ लोग यूनिवर्सिटी कैम्पस के सुरक्षित माहौल में बड़े आराम से देशद्रोही नारे इसलिए लगा पा रहे हैं , क्योंकि हमारी सेनाएं दुनिया की सबसे ऊंची जगह पर, जहां ऑक्सीजन भी मुश्किल से उपलब्ध हैं, खड़े होकर दिन रात हमारी रक्षा कर रही हैं. जो लोग देशद्रोही नारे लगा रहे हैं और जो अफ़ज़ल गुरु मकबूल भट्ट के पोस्टरों को अपने सीने से लगाकर इन लोगों को शहीद बताकर इनका सम्मान कर रहे हैं, यह सब लोग ऐसे दुर्गम इलाकों में एक घंटे भी खड़े नहीं हो सकते, जहां हमारी सेनाएं खड़ी होकर हमारी हिफाज़त कर रही हैं."
*पैरा ४७ में कोर्ट आगे लिखता है : " इस कार्यक्रम में जिस तरह के विचार व्यक्त किये गए और जिस तरह के पोस्टर बरामद हुए हैं, उन्हें "अभिव्यक्ति की आज़ादी" जैसे मूलभूत अधिकारों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है. यह एक तरह का संक्रामक रोग है, जिसको अगर तुरंत नहीं रोक गया तो यह एक महामारी का रूप धारण कर लेगा."
* पैरा ४८ में कोर्ट आगे लिखता है :" जब कोई रोग शरीर के किसी अंग में इस तरह से संक्रमित हो जाए, तो पहले उसे खिलाने वाली दवाओं से ठीक करने की कोशिश करनी पड़ेगी और अगर फिर भी इसका इलाज़ नहीं हुआ तो इसके लिए "सर्जरी" का ही उपाय अपनाना पड़ेगा."
ऐसी बहुत सारी टिप्पड़ियां इस आर्डर में हैं, सभी का उल्लेख कर पाना यहां संभव नहीं है. सभी को यह पूरा आर्डर एक बार पढ़ना जरूर चाहिए. मेरे पास इस आर्डर की पी डी ऍफ़ कॉपी उपलब्ध है और किसी पाठक को चाहिए तो उसे मैं ई-मेंल से भिजवा सकता हूँ. यह आर्डर सर्च करने पर गूगल पर भी मिल जाएगा.
अभी तक इस लेख में जो कुछ भी लिखा गया है, उसके बारे में पाठकों को कुछ न कुछ अंदाजा पहले से ही जरूर रहा होगा. लेकिन जो बात अब आगे लिखी जा रही है, वह काफी चौंकाने वाली है .
(१).कन्हैया की जमानत की पैरवी देश के १० बड़े जाने माने नामी और महंगे वकील जिनमे कपिल सिबल भी शामिल हैं, कर रहे थे. कोर्ट में कन्हैया ने खुद यह माना था कि उसकी कुल पारिवारिक आमदनी मात्र ३००० रूपये महीना थी. इस मामूली सी आमदनी में कन्हैया ने इन वकीलों का इंतज़ाम कैसे किया और हाथ में आई फ़ोन लेकर हवाई यात्रायें कैसे कीं, यह अपने आप में एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है.
(२).पैर संख्या ८ के मुताबिक कन्हैया ने अपनी जमानत के लिए यह दलील दी-" कि उसकी अब इस केस की छानबीन के लिए जरूरत नहीं है." पैरा संख्या १७ में कन्हैया के वकील कपिल सिबल भी यही बात दोहराते हुए कन्हैया को जमानत पर रिहा करने का निवेदन करते हैं. पैरा संख्या २४ में सरकार की तरफ से ASG तुषार मेहता ने कन्हैया को जमानत दिए जाने का जोर शोर से विरोध किया. लेकिन सभी को हैरानी में डालते हुए दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने आर्डर के पैरा संख्या २५ के मुताबिक , कन्हैया की जमानत का विरोध करने कि बजाये क्या कहा, उसे जरा देखिये :
" मामले के तथ्यों और हालात को देखते हुए कन्हैया कुमार को जमानत पर रिहा कर दिया जाए."
(३) दिल्ली सरकार एक जनता के द्वारा चुनी हुयी सरकार है और जनता के पैसों से चल रही हैं. क्या दिल्ली सरकार इस मामले में कन्हैया की पैरवी दिल्ली की जनता के खर्चे पर कर रही थी ? केजरीवाल सरकार के इस “अभूतपूर्व , अद्भुत और क्रांतिकारी कारनामे” पर किसी "वरिष्ठ पत्रकार" या अखबार ने कोई लेख या संपादकीय पूरे एक साल में एक बार भी न लिखकर क्या मीडिया की साख को दांव पर नहीं लगा दिया है ?
(४) केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली की जनता से टैक्स के रूप में वसूली हुयी रकम से कन्हैया जैसे लोगों की पैरवी किये जाने पर केंद्र सरकार मौन क्यों है ?
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