मोदी सरकार जीत गयी लेकिन हारा कौन ?
हाल ही में आये विधान सभा चुनाव के परिणामों में भाजपा को उत्तर प्रदेश
और उत्तराखंड में मिले प्रचंड बहुमत ने सभी चुनावी पंडितों और विश्लेषकों के साथ साथ,
उन सभी स्व-घोषित सेक्युलर पार्टियों और मीडिया में उनके पैसे पर पल रहे उन पत्रकारों
को यकायक सकते में दाल दिया है, जिनका चुनावी आकलन हमेशा ही धर्म,जाति और संप्रदाय
तक ही सीमित रहता था और जो पिछले ७० सालों से साम्प्रदायिकता और जाति-पाति पर आधारित
राजनीति करते आये थे. ऐतिहासिक पराजय से बौखलाए यह लोग अब बिहार में किये गए ठगबंधन
को मिली जीत को याद कर रहे हैं और उत्तर प्रदेश में उसी ठगबंधन की नाकामयाबी पर अपना
सर पीट रहे हैं. यह लोग शायद यह भूल गए हैं कि " काठ की हांडी सिर्फ एक बार चढ़ती
है" और जनता इन लोगों से ज्यादा समझदार है और बिना किसी विचारधारा के सिर्फ मोदी सरकार को हराने के उद्देश्य से बनाये
गए इन ठगबंधनों को अब जिताने वाली नहीं है.
पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में जिन ६९० सीटों पर चुनाव
हुआ, उनमे से ४३४ सीटों पर अपनी निर्णायक जीत दर्ज कराकर भाजपा ने न सिर्फ इतिहास बनाया
है, देश में मौजूद उन ताकतों के मुंह पर भी करार तमाचा रसीद किया है, जो २०१४ के लोकसभा चुनावों में जनता के दिए हुए जनादेश
ला लगातार अपमान करने में जुटी हुयी थीं. देखा
जाए तो २०१४ में तथाकथित "सेक्युलर" पार्टियों को जनता ने जिस तरह से दण्डित
किया था, वह दंड इन लोगों से हजम नहीं हो रहा था और यह जनता के दिए हुए दंड का गुस्सा
मोदी सरकार पर लगातार निकाल रहे थे.
इन चुनावों में जहां एक तरफ मोदी का करिश्मा और अमित शाह की रणनीति की जीत हुयी है, वहीं उन सभी लोगों की हार हुयी है, जो किसी न किसी बहाने मोदी,भाजपा
और संघ को नीचा दिखाने के चक्कर में यह भी भूल गए थे, कि वे सभी देश हित , समाज हित
और जन हित के खिलाफ काम कर रहे हैं. आइये अब
देखते हैं कि मोदी की इस जीत में हार किसकी हुयी है :
* जो लोग मोदी सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक का सुबूत मांग रहे थे, उन
सभी को अब सुबूत मिल गया है और वे हार गए हैं.
* जो लोग नोटबंदी का सड़कों पर लोट लोट कर सिर्फ इसलिए विरोध कर रहे
थे, क्योंकि उनका जनता से पिछले ७० सालों में लूटा हुआ धन बर्बाद हो गया था, वे भी
इन चुनावों में हार गए हैं.
* जो लोग पिछले ७० सालों में किये गए दुष्कर्मों के बाबजूद अपने लिए
"अच्छे दिनों" की मांग मोदी सरकार
से कर रहे थे, वे भी इन चुनावों में हार गए हैं.
* जो लोग अपनी मेहनत से पैसा कमाने के बजाये मोदी से लगातार १५ लाख रुपये की भीख मांग रहे थे,
वे भी इन चुनावों में हार गए हैं.
* जो लोग रोहित वेमुला जैसे गैर दलितों को "दलित" बताकर अपनी राजनीतिक
रोटियां सेंक रहे थे, वे भी इन चुनावों में हार गए हैं.
* जो लोग देशद्रोही आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी के फंदे से न बचा
पाने के गम में अपने अपने "अवार्ड" वापस कर बैठे थे, वे सब भी इन चुनावों
में हार गए हैं.
* जो लोग जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी जैसे देशद्रोह के ठिकानो में
जाकर देशद्रोही नारे लगाते हैं और ऐसे नारे लगाने वालों का समर्थन करते हैं, उन्हें
भी देश की जनता ने इन चुनावों में करारी शिकस्त दी है.
* जो लोग मोदी सरकार के हर अच्छे काम का सिर्फ इसलिए विरोध करते हैं,
ताकि उन अच्छे कामों की वजह से जनता का भला न हो जाए, उन्हें भी जनता ने इन चुनावों
में हार का पुरूस्कार दिया है.
* जो लोग सन २०१४ से आज तक लगातार देश की संसद नहीं चलने दे रहे थे,
उन लोगों को भी जनता ने सबक सिखाने के लिए करारी शिकस्त दी है.
* जो लोग अपना काम करने की बजाये हर रोज मोदी सरकार पर कोई न कोई बेबुनियाद
आरोप लगाकर अपनी मूर्खता का परिचय दे रहे थे,
निश्चित रूप से वे लोग भी इन चुनावों में हार गए हैं.
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