अब क्या करेंगे केजरीवाल ?
चुनाव परिणाम हालांकि अभी आने बाकी है लेकिन यह बात तो निश्चित है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी का भविष्य पूरी तरह से खतरे मे पड गया लगता है ! जितने भी एग्ज़िट पोल अभी तक हुये है, किसी ने भी केजरीवाल पार्टी को प़ूरे देश मे 3 से लेकर 7 सीटों से ज्यादा का आकलन नही दिया है ! दिल्ली विधान सभा मे "भ्रष्टाचार" के मुद्दे पर चुनाव लडकर 28 सीटें जीतने वाली पार्टी और फिर बाद मे कांग्रेस पार्टी के सहयोग से दिल्ली मे सरकार बनाने वाली पार्टी की ऐसी दुर्दशा होगी, इसका अंदाज़ा जनता को तो था, इस पार्टी के नेताओं और उसके अंध समर्थकों को नही था-इनकी दुर्दशा ऐसी हुई है कि कांग्रेस पार्टी वाले अपनी दुर्दशा को भूलकर इनकी दुर्दशा और दुर्गति पर ज्यादा शोक मना रहे है और उसी से खुद को सांत्वना दे रहे हैं !
"धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का" , वाली कहावत अभी तक सिर्फ किताबों मे ही पढी सुनी थी, उसको पूरी तरह से हकीकत मे तब्दील करके दिखाने के लिये केजरीवाल एंड कॅंपनी ने जो अथक प्रयास किये हैं, उन्हे भुलाया नही जा सकता ! शीला दीक्षित को हराने का अहंकार केजरीवाल के ऐसे सर चढकर बोला कि उनकी आँखों पर ऐसा चश्मा लग गया जिसमे उन्हे मोदी मे भी शीला दीक्षित नज़र आने लगी और वह अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने बनारस की तरफ निकल पड़े और अपने "भ्रष्टाचार" के मुददे को भूलकर "मोदी हराओ" के मुददे पर काम करने लगे ! अब खबर यह आ रही है कि चुनाव नतीज़ों को भाँपते हुये एक एक करके आम आदमी पार्टी के नेताओं ने अपनी गलतिया खुद गिननी शुरु कर दी है और अप्रत्यक्ष रूप से ही सही केजरीवाल को जमकर लताडना शुरु कर दिया है ! पहले गलतियाँ मानने वाले कुमार विश्वास थे और दूसरे नेता योगेन्द्र यादव ! इन दोनो नेताओं ने अगर यही गलतियाँ केजरीवाल को पहले ही गिनवायी होती और उन्हे दुष्कर्म करने से रोका होता तो आज इस पार्टी की ऐसी दुर्दशा और दुर्गति नही हुई होती !
केजरीवाल भी जानते है और उनकी पार्टी के सभी तथाकथित नेता और अंध समर्थक भी अच्छी तरह जानते है कि केजरीवाल बनारस से नही जीतेंगे-लेकिन जिस तरह से सारी की सारी ताकत सिर्फ बनारस मे झोंक दी गयी और उस चक्कर मे पार्टी यह भूल गयी की उसने बाकी 400 से ऊपर सीटों पर भी अपने उम्मीदवार खड़े किये है और उन्हे भी केन्द्रिय नेत्रत्व की तरफ से मदद की जरूरत पड सकती है ! नतीज़ा यह हुआ कि पार्टी ने जहां जहां भी अपने उम्मीदवार खड़े किये उन्होने अपना भला करने के वजाये सिर्फ भाजपा के वोट काटने का काम किया और कांग्रेस उनके इस दुष्कर्म पर लगातार खुश होती रही क्योंकि इन लोगों की मदद से ही कांग्रेस दिल्ली मे भी 8 सीटें जीतने मे कामयाब हो गयी थी, जिसका कर्ज़ उन्होने इनकी बनने वाली सरकार को समर्थन देकर चुका भी दिया था ! सवाल यह है कि अब चुनाव नतीज़ों के बाद कांग्रेस का तो हो होगा सो होगा, यह तथाकथित राजनीतिक पार्टी जिसने अपनी शुरुआत "भ्रष्टाचार" के मुददे से की थी और फिर मौका देखकर " भ्रष्टाचार" के मुददे को छोड़कर अचानक ही "सेकुलरिज्म" के मुददे पर आ गयी, वह किस मुंह से दुबारा से जनता के बीच मे जायेगी ?
Published on 15/5/2014
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