दिल्ली का ठग कौन है ?
आखिर वही हुआ जिसका जिक्र मैं पिछले एक साल से अपने ब्लॉग पर लगातार कर रहा था ! दिल्ली की जनता मुफ्तखोरी और साम्प्रदायिकता के वशीभूत होकर एक अवसरवादी गठजोड़ के बहुरूपियों और नौटंकी करने वालों के हाथों इतनी बुरी तरह ठगी जायेगी इसका गुमान तो शायद चाणक्य को भी नही रहा होगा -फिर दिल्ली की जनता की तो भला बिसात ही क्या है ! दिल्ली की जनता के एक वर्ग पर जहां मुफ्तखोरी सवार थी, वहीं दूसरे वर्ग पर "बुखारी का साम्प्रदायिक फ़तवा" सर चढकर बोल रहा था ! किसी को "AK- 49" का जनलोकपाल के लिये किया गया बलिदान याद या गया और कोई मफलर और टोपी मे लिपटी नकली ईमानदारी पर मर मिटा ! कुल मिलाकर अंध भक्ति इस सीमा तक बढ गयी कि इस "ठग राजनीतिक गठजोड़" के करोड़ों के फर्ज़ी चंदे भी लोगों ने नज़रअंदाज़ कर दिये और यह भी भूल गये कि चुनावों मे शराब,साड़ियाँ और लंच का मुफ्त वितरण आखिर किस तरह की राजनीति का संकेत दे रहा है !
अंध-भक्तों ने अपनी सारी ताकत यह सुनिश्चित करने मे लगा दी कि दिल्ली का जो हो सो हो, अपने "AK- 49" का प्रोमोशन होना चाहिये और अंध-भक्तों ने अपने मुख्य कलाकार को सीधा "AK- 49" से काफी ऊपर उठाते हुये " AK-67" बनाकर ही चैन की सांस ली ! लेकिन यह क्या हुआ ? जैसे ही "AK- 67" हाथ मे आई, वैसे ही सारे के सारे बहुरूपिए और नौटंकी करने वाले यकायक गुंडे-बदमाश और लफंगों की तरह घिनौनी गाली गलौज़ और मारपीट पर उतर आये और आपस मे ही एक दूसरे की ठुकाई करके अपने अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ने लगे !
अब आलम यह है कि यह बहुरूपिए और नौटंकी करने वाले रातों रात गुंडे-बदमाश बनकर लोगों को मारने-पीटने और धमकाने मे लगे हुये है क्योंकि इन्हे अब किसी तरह का डर नही है और "AK- 67" ने इन्हे अगले 5 साल तक का अभयदान दिया हुआ है ! इसी हेकड़ी,मक्कारी और भयंकर अहंकार के चलते इन्होने अपने अंध-भक्तों को भी धता बताते हुये उन्हे उनके हाल पर छोड़ दिया है और दिल्ली के हर गली,मुहल्ले और नुक्कड पर लगे "मल-मूत्र मिश्रित गंदगी के ढेर" सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लोगों का हार्दिक स्वागत करते नज़र आ रहे हैं ! वह तो गनीमत है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा नही मिला है और जरूरत पड़ने पर केन्द्र सरकार भी दखल दे सकती है- वर्ना ये लोग दिल्ली मे ऐसा जंगल राज स्थापित करने मे सक्षम प्रतीत हो रहे हैं कि अपने लल्लू,मुलायम,नीतीश,मायावती और ममता सभी इन लोगों से प्रशिक्षण लेने के लिये बेकरार नज़र आ रहे हैं !
स्वच्छ और ईमानदार राजनीति के नाम पर जो नौटंकी आज से दो साल पहले शुरु हुई थी, उसका पटाक्षेप किसी मारधाड वाली हिंसक और वाहियात फिल्म के रूप मे होगा-इसकी कल्पना ना तो अंध-भक्तों ने की होगी और ना ही उस "आम आदमी" ने जिसके नाम का दुरुपयोग करके यह सारी नौटंकी अंज़ाम दी गयी है !
Published on 30/3/2015
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