आर्टिकल 370 हट गया तो अब्दुल्ला का क्या होगा ?

आर्टिकल 370 जो कि एक अस्थायी प्रावधान था और जिसे कई दशकों पहले ही हट जाना चाहिये था-सिर्फ इसीलिये नही हट सका क्योंकि "सेकुलरिज्म" का पाखंड करने वाले लोग केन्द्र और जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर किसी ना किसी तरह क़ाबिज़ रहे और इस जन विरोधी और देश विरोधी आर्टिकल 370 को हटाने की बात पूरी तरह से नजरअंदाज़ करते रहे !

2014 के लोकसभा चुनावों ने देश की जनता ने ऐसी देश विरोधी ताकतों को पूरी तरह धिक्कार दिया है और उन्हे यह साफ संदेश देने की कोशिश की है कि अब बहुत टालमटोल हो चुकी है और इस देश विरोधी आर्टिकल 370 को तुरंत प्रभाव से हटाने का वक्त आ गया है ! देश के नये प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी हालांकि चुनावों से पहले ही इस बात के संकेत दे चुके है कि आर्टिकल 370 के ऊपर खुले दिमाग से चर्चा होनी चाहिये और उसके फायदे नुकसान की समीक्षा करने के बाद उस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिये !

चुनावों के बाद उसी बात को प्रधानमंत्री कार्यालय मे मंत्री जो खुद जम्मू-कश्मीर से सांसद भी है, उन्होने भी दोहरा दिया ! अब्दुल्ला हालांकि चुनावों मे करारी शिकस्त का सामना कर चुके है और मोदी समर्थकों को समुन्दर मे डूबकर मर जाने की सलाह भी दे चुके है-लेकिन लगता ऐसा है कि चुनावों मे मिली कडी फटकार के बाद उन्हे "समुन्दर" तो क्या चुल्लू भर पानी भी डूबने के लिये नसीब नही हुआ है-इसलिये वह खुद और उनके तथाकथित मुख्यमंत्री पुत्र उमर अब्दुल्ला आर्टिकल 370 पर चर्चा की बात से ही अपने आपे से बाहर हो गये है और अपनी बौखलाहट का वेवजह प्रदर्शन किये जा रहे है !

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि 1984 मे इंदिरा गाँधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर के चलते राजीव गाँधी सरकार तीन चौथाई बहुमत से सत्ता पर क़ाबिज़ हुई थी और उसके पास पूरा मौका था कि इस जन विरोधी और देश विरोधी आर्टिकल 370 को हटाया जाये लेकिन "सेकुलरिज्म का पाखंड" करनें वाली राजनीतिक पार्टियों को देश और देशवासियों की चिंता कब से होने लगी ? इन लोगों को तो हर हाल मे अपनी "सेकुलरिज्म" की दुकान खोलकर उस पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने से ही फुर्सत नही मिलती है ! परिणाम यही है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण आर्टिकल 370 आज भी मौजूद है और "सेकुलरिज्म का पाखंड" करने वाले लोग उसे हटाने की बात तो दूर-उस के ऊपर गुण दोष के आधार पर चर्चा करने को भी तैयार नही है ! सवाल यह है कि अगर किसी तरह से आर्टिकल 370 हट गया(जिसकी अब प्रबल संभावना है), तो जम्मू कश्मीर को अपनी जागीर समझने वाले अब्दुल्ला का क्या होगा ?

गौरतलब बात यह है कि आर्टिकल 370 को हटाने का जितना ज्यादा विरोध किया जायेगा, इसके हटाये जाने का रास्ता उतना ही साफ होता जायेगा-ठीक उसी तरह जैसे मोदी का जितना अधिक विरोध किया गया, वह उतनी ही ज्यादा मजबूती के साथ केन्द्र की सत्ता मे आने मे सफल हुये !मजे की बात यह है कि आर्टिकल 370 को हटाने के लिये कोई कानूनी अडचन नही है जैसा की मीडिया मे "सेक्युलर" लोग दुष्प्रचार करके फैला रहे है ! आर्टिकल 370(3) के प्रावधानो के अंतर्गत राष्ट्रपति राज्य की संविधान सभा के अनुमोदन के बाद एक अधिसूचना जारी करके आर्टिकल 370 को हमेशा के लिये अलविदा कह सकते है ! क्योंकि संविधान सभा 1957 मे ही खत्म हो चुकी है-लिहाज़ा राष्ट्रपति को उसके अनुमोदन की भी जरूरत नही है और वह जब चाहें इस "दुर्भाग्यपूर्ण" आर्टिकल 370 को खत्म कर सकते हैं !

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Published on 29/5/2014

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