बिहार मे भाजपा इसलिये हारी
बिहार विधानसभा चुनावों मे मिली धमाकेदार जीत से महागठबंधन के हौसले बुलंद हैं और इस महागठबंधन मे शामिल राजनीतिक दल वह सब करने के लिये अपनी अपनी कमर कसते नज़र आ रहे हैं, जिसका इन लोगों को पिछले 60 सालों का अनुभव है. चुनावों मे हाशिये पर आई भाजपा के लिये इन चुनावों मे मिली करारी हार का विश्लेषण करना मुश्किल नही है बशर्ते पार्टी ईमानदारी से अपनी हार के कारणों पर गौर करे और उन्हे सुधारने की कोशिश भी करे. लोकसभा चुनावों मे भाजपा को जो भारी बहुमत से जीत हासिल हुई थी, वह दरअसल जनता ने इस विश्वास के साथ सौंपी थी कि देश अब मोदी के नेत्रत्व मे ना सिर्फ विकास के पथ पर आगे बढेगा, बल्कि भ्रष्ट और देश विरोधी ताकतों पर सख्त कार्यवाही भी हो सकेगी.
जनता की उम्मीदों के विपरीत भाजपा ने सबसे पहले तो कश्मीर मे अलगाववादी नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद से गले मिलकर वहां अपनी सरकार बनाई-इस गलत कदम का परिणाम पार्टी को दिल्ली चुनावों मे अच्छी तरह भुगतना पड़ा जहाँ नाराज़ लोगों ने बुरी तरह से पार्टी को हराया. दिल्ली की हार के क्योंकि एक से अधिक कारण थे, इसलिये यह बात आई गयी हो गयी और राजनीतिक विश्लेषक दिल्ली की हार के कुछ और ही कारणों पर चर्चा करते रहे. लोकसभा चुनावों मे भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा था लेकिन सरकार बनने के डेढ़ साल बाद भी रॉबर्ट वाड्रा और नेशनल हेराल्ड जैसे गंभीर मुद्दे मानो लगता है ठंडे बस्ते मे बंद हैं और जो लोग इन दुष्कर्मों के लिये जिम्मेदार हैं, वे सब एकजुट होकर "उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे" की तर्ज़ पर मोदी और भाजपा सरकार पर लगातार निशाना साधे हुये हैं. इन दुष्कर्मियों को समय रहते जेल पहुंचाने मे जो नाकामी मोदी सरकार ने दिखाई है, वह भी बिहार चुनावों की हार का एक प्रमुख कारण है.
चारा घोटाले मे जेल मे चक्की पीस रहे लालू यादव को लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने अपने फायदे के लिये जमानत पर रिहा करने मे मदद की थी. देश और बिहार की जनता को यह उम्मीद थी कि केन्द्र मे मोदी सरकार आने के बाद यह जमानत रद्द होगी और लालूजी अपनी सही जगह जल्द से जल्द पहुंचेंगे लेकिन भाजपा अपनी "उदारवादी" नीति के चलते यहाँ भी पूरी तरह विफल रही और जनता को पूरी तरह विश्वास हो गया कि यह सरकार भ्रष्ट लोगों से निपटने मे पूरी तरह असफल रही है. यह बिडम्बना ही कही जायेगी कि भाजपा की इस नाकामी के चलते बिहार की बागडोर एक बार फिर उन्ही लोगों के हाथों मे पहुंच गयी है जो चारा घोटाले के लिये जिम्मेदार हैं. मोदी जी यह करने मे तो कामयाब हुये कि उनकी अपनी सरकार मे घोटाले और भ्रष्टाचार ना पनपे, लेकिन जिन लोगों ने पिछले 60 सालों मे घोटाले किये हैं, अगर उनसे मोदी जी डेढ़ साल के बाद भी जेल मे चक्की नही पिसवा सके, तो यह आम जनता के नजरिये से बहुत बड़ी नाकामी ही कही जायेगी.
देशद्रोही आतंकवादी याकूब मेमन को बचाने के लिये देश मे मौजूद उसके "दोस्तों" और "हमदर्दों" ने लिखित मे राष्ट्रपति से उसे बचाने की अपील की और उसे बचाने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा लिया-याकूब मेमन नही बचा और उसकी झल्लाहट इन "हमदर्दों" और उनके साथियों ने पुरस्कार और सम्मान वापस करने की नौटंकी करके निकाली-इस नौटंकी के जरिये इन लोगों ने जहां एक तरफ बिहार चुनाव के नतीज़ों को प्रभावित किया, जनता मे यहसंदेश भी गया कि इस तरह के देश द्रोही और देश विरोधी तत्व अब अपनी मनमानी करने के लिये पूरी तरह आज़ाद हो गये हैं और मोदी सरकार उन पर लगाम लगाने मे पूरी तरह नाकामयाब रही है. अगर इन सभी लोगों पर समय रहते देशद्रोह के मामले दर्ज़ करके सख्त कार्यवाही की गयी होती तो आज बिहार मे भाजपा को इस करारी हार से दो चार नही होना पड़ता क्योंकि विदेशी हाथों मे खेल रही इन देश विरोधी ताकतों का भी बिहार चुनावों के समय हरकत मे आना इन लोगों के नापाक इरादों की तरफ संकेत करता दिखाई दे रहा है.
इससे पहले कि और देर हो और दिल्ली-बिहार की तरह यू पी और पश्चिम बंगाल भी भाजपा के हाथ से निकल जाएं, पार्टी और सरकार यह सुनिश्चित करे कि देश मे मौजूद सभी भ्रष्ट और देशद्रोही ताकतों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की दिशा मे ठोस कदम उठाये जाएं, क्योंकि यही वे ताकतें हैं जो देश को अस्थिर करने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. "उदारवाद" के जिस रास्ते पर मोदी जी चलने की कोशिश कर रहे हैं, वह तभी असफल घोषित हो गया था, जब सर्वमान्य "उदारवादी" नेता अटल जी, सफल सरकार चलाने के बाबजूद, दुबारा सत्ता हासिल नही कर सके थे.
Published on 9/11/2015
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