इसलिये मच रहा है संसद मे हंगामा !!!

मोदी सरकार जब पूर्ण बहुमत से इस साल सत्ता मे आई तो सबसे ज्यादा हैरानी और परेशानी "सेकुलरिज्म" के नाम पर ढोंग रचने वाले पाखंडियों को हुई ! इन लोगों को हैरानी इस बात की नही थी कि मोदी की सरकार कैसे सत्ता मे आ गयी-इन लोगों की हैरानी इस बात को लेकर थी कि इतने जबरदस्त कुशासन और जनता को परेशान करने के बाबजूद इन लोगों के काफी नेता जनता ने चुनकर संसद मे कैसे भेज दिये ! एक पार्टी जिसे 2 या 4 सीटों की उम्मीद थी, उसके 1-2 नही पूरे 44 नेता सांसद बनने मे कामयाब रहे-इसी तरह जिन लोगों को अपना खाता खुलने की भी उम्मीद नही थी-उनकी पार्टी के भी दो-चार नेताओं को सांसद बनने की फजीहत से दो चार होना पड़ा !

इन लोगों की परेशानी जायज भी है-इन्हे आदत पड़ी हुई है किसी ना किसी तरह सत्ता मे बने रहने की और सत्ता मे रहकर जनता को लूटने की-विपक्ष मे रहते हुये यह सब काम तो यह कर नही सकते-सो इन्होने खिसिया खिसियाकर बात बेबात संसद मे हंगामा मचाना शुरु कर दिया !  हंगामा मचाने के मुख्य रूप से दो फायदे हैं-पहला तो यह कि हंगामे के चलते संसद की कार्यवाही नही चलेगी और देशहित मे जो काम होने हैं-उन पर रोक लग जायेगी-ऐसा हो जाये तो इन लोगों के कलेजे को जबरदस्त ठंडक पहुंचती है -नरपिशाची हंगामा मचाने का दूसरा फायदा यह होगा कि जनता ने गलती से इन ढोंगी पार्टियों के जितने नेताओं को सांसद बनाकर संसद मे भेजा है-जनता अगली बार यह गलती नही करेगी और यह लोग अपनी बाकी की जिंदगी बिना संसद जाये आराम से गुजार सकेंगे-आखिर पिछले 67 सालों मे देश की जनता से लूटे हुये पैसे का इस्तेमाल भी तो करना है ! 

कुछ पार्टियों और उनके तथाकथित नेताओं को जनता ने हालांकि जबरदस्त तरीके से धिक्कारा और दुत्कारा भी है और उन्हे संसद मे नही पहुंचने दिया लेकिन ऐसी पार्टियों का दुर्भाग्य यह है कि उनके कुछ नेता अभी भी गलती से राज्यसभा मे सांसद बने हुये है और अपनी हाज़िरी दर्ज कराने के चक्कर मे मुफ्त मे हंगामा मचाकर अपना तमाशा बनाने पर मजबूर हैं ! एक वामपंथी सांसद जिनकी आवाज़ संसद के हंगामे मे खुद उन्हे भी सुनाई नही देती,उन्हे अपनी बेसुरी बीन बज़ाने के लिये संसद से बाहर निकालकर अपने द्वारा पोषित "सेक्युलर" मीडिया की मदद लेनी पड़ती है-इनका काम यही है कि यह अपने मन मे उपज रही सारी बकबास को अंग्रेज़ी मे लिखकर एक अखबार को नियमित रूप से पकडाते रहें और वह "सेक्युलर" अखबार अपने सम्पादकीय पेज पर ना सिर्फ इन वामपंथी सांसद के बेहूदा लेख छापने के लिये अभिशप्त है, वरन इन्ही की बिरादरी के कुछ और नमूनों के लेख भी नियमित रूप से छापने के लिये मजबूर है ! इन बेहूदा लेखों को कोई समझदार पाठक पूरे पैसे देकर तो पढेगा नही -लिहाज़ा इस अखबार ने अपने छपे हुये मूल्य पर भारी भरकम छूट के साथ बेचना शुरु कर दिया है और जिस अंग्रेज़ी के राष्ट्रीय दैनिक अखबार को पढने के लिये आपको पूरे साल मे लगभग 1700 रुपये खर्च करने पड़ते, वही अखबार सिर्फ 699 रुपये मे पढने के लिये उपलब्ध है ! अब कोई अखबार तो घाटे मे नही चल सकता इसलिये पाठकों को दी गयी इस जबरदस्त डिसकाउंट की भरपाई कैसे होती होगी-इसका अंदाज़ा पाठकगण खुद ही लगा सकते हैं !
Published on 19/12/2014

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