देशद्रोहियों को बचाने मे जुटे अब्दुल्ला,अखिलेश और केजरीवाल !

बुधवार 5 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही आदर्श चुनाव संहिता जम्मू-कश्मीर समेत प़ूरे देश मे लागू हो गयी है, यह सभी को मालूम है ! सेकुलरिज्म का पाखंड कर के वोट बैंक की घटिया राजनीति करने वालों को लगता है, उन पर यह संहिता लागू नही होती है और वे देशद्रोहियों का समर्थन "सेकुलरिज्म" के नाम पर सिर्फ इसलिये किये जा रहे हैं, ताकि आने वाले लोकसभा चुनावों मे उनकी वोट बैंक की राजनीति चमकती रहे !

चुनाव आचार संहिता लागू होने के अगले ही दिन यानी 6 मार्च को जम्मू कश्मीर के माननीय मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जी का बयान आता है कि मेरठ की एक यूनिवर्सिटी मे 67 छात्रों पर देशद्रोह के लगाये गये आरोप दुर्भाग्यपूर्ण हैं और वापस लिये जाने चाहिये- वे इतने पर ही नही रुके-अपने नापाक इरादों को आगे अंज़ाम देने के लिये उन्होने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बात भी कर ली और उनसे उन्होने देशद्रोह के मामले वापस लेने के लिये औपचारिक रूप से अनुरोध भी कर डाला ! खास आदमियों के लिये बनी " आम आदमी पार्टी " भी भला कहा पीछे रहने वाली थी सो वह भी खुलकर इन देशद्रोहियों के समर्थन मे आ गयी और उनकी तरफ से भी इन लोगों को छोड़ने का दबाब बना दिया गया !

हाफ़िज़ सईद जो एक देशद्रोही है, उसका इस बात पर खुश होना क़ि 67 छात्रों ने "पाकिस्तान जिंदाबाद" के नारे लगाकर देशद्रोह का सबूत दिया, तो फिर भी समझ मे आता है क्योंकि पहली बात तो हमारे सेक्युलर लोगों के लिये वह " श्री हाफ़िज़ सईद" है, दूसरे वह देशद्रोही है तो देशद्रोहियों के समर्थन मे ही बात करेगा !


उमर अब्दुल्ला जो दुर्भाग्य से एक चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री है और उनकी पार्टी नैशनल कांफ़्रेस लोकसभा के चुनाव भी लड़ेगी-उनकी ये नाज़ायज़ हरकत किसी देशद्रोह से कम नही है ! मोदी के खिलाफ 24 घंटे बकबास करने वालों को उमर अब्दुल्ला की यह बेशर्मी भरा देशद्रोह या तो दीख नही रहा, या फिर वे भी अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने मे लगे हुये हैं.

यह समझ मे नही आता कि जिन "सेक्युलर" लोगों की जबान मोदी और भाजपा के खिलाफ 24 घंटे कैंची की तरह चलती रहती है,उनकी जुबान उमर अब्दुल्ला और हाफ़िज़ सईद जैसे लोगों के खिलाफ क्यों नही चलती ? राजनीतिक दल तो अपनी राजनीति करते रहेंगे- इस समय मामला सीधे सीधे आदर्श चुनाव संहिता के उल्लंघन का है और चुनाव आयोग को उमर अब्दुल्ला के खिलाफ ऐसी सख्त कार्यवाही करनी चाहिये जो देश के सभी  ऐसे लोगों के लिये एक मिसाल का काम कर सके जो "सेकुलरिज्म" का पाखंड करते रहते हैं.

ब्लॉग लिखते लिखते यह खबर भी आ गयी है कि "सेकुलरिज्म" के एक पाखंडी के निवेदन को "सेकुलरिज्म" के दूसरे पाखंडी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया है और देशद्रोहियों के ऊपर से देशद्रोह के आरोप वापस ले लिये गये है ! ठीक है-अखिलेश यादव को भी तो अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकनी है-यह काम सिर्फ अब्दुल्ला क्यों करे ? "सेकुलरिज्म" का सारा ठेका अब्दुल्ला ने ही थोड़े ले रखा है ! चुनाव आयोग का काम अब दुगुना हो गया है और उसे अब इन दोनो पर ही कोई सख्त कार्यवाही करनी होगी ! हैरानी की बात तो यह है कि देशद्रोह का मुकदमा वापस लेने से पहले ही इन 67 लोगों को गिरफ्तार करने की वजाये वहा से सुरक्षित जगह पर भगा दिया गया था !
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rajeevg@hotmail.com
Published on 6/3/2014

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