बेशर्मी ही हमारी सबसे बड़ी जमा पूँजी है

संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन था. विपक्ष के नेता अपनी परंपरागत पोषाक पहने संसद जाने के लिये अपने सरकारी बंगले से निकले और अपनी चमचमाती हुई कार की तरफ बढे. इससे पहले कि वह कार के अंदर बैठ पाते, पत्रकार ने अपने कैमरामेन साथी के साथ नेताजी पर अपना जुबानी हमला बोल दिया-" संसद के इस सत्र के लिये आपकी क्या रणनीति है ?"

नेताजी : हमारी रणनीति एकदम साफ है-हमने पिछले 60 सालों मे ना खुद कोई काम किया था और ना ही इस सरकार को करने देंगे.

पत्रकार : लेकिन आप अगर संसद मे काम ही नही चलने देंगे तो देश कैसे चलेगा ?

नेताजी : देश चलाना विपक्ष का काम नही है-वह सरकार का काम है-हमारा काम सरकार के हर अच्छे जनहित और देशहित के काम का पुरजोर विरोध करना है.

पत्रकार : नेताजी, वह तो ठीक है. लेकिन जनहित और देश हित के कामों का विरोध करना तो बड़ा मुश्किल काम है-यह सब आप लोग कैसे कर लेते हैं ?


नेताजी : देखिये, आप शायद पत्रकारिता मे नये नये आये हैं- हम लोगों ने दरअसल पिछले 60 सालों से ही निर्लज्जता का लबादा ओढ़ा हुआ है और उसी के चलते चाहे हम सरकार मे हों या विपक्ष मे, काम करना या काम करने देना हमारी फितरत मे नही है.

पत्रकार : नेताजी, अगर ऐसा ही है तो आपको देशहित या फिर कहिये जनहित मे अपनी इस बेशर्मी का त्याग नही कर देना चाहिये ?


नेताजी : विपक्ष के नेता हम है या तुम ? तुम लोग अपने काम से काम रखो और हाँ- तुम हमसे अपनी बेशर्मी का त्याग करने के लिये कह रहे हो- सो ध्यान रखो कि यह बेशर्मी ही हम लोगों की सबसे बड़ी जमा पूँजी है-अगर इसी का हमने त्याग कर दिया तो हमारे पास आखिर क्या रह जायेगा ?

पत्रकार नेताजी की इस बात पर एकदम निरुत्तर हो गया और अपने कैमरामेन को उसने वहां से हटने का इशारा कर दिया.
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Published on 2/12/2015

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