तीसरे मोर्चे की अंतिम यात्रा निकलेगी इस बार ?

हिन्दी मे एक बड़ी ही मशहूर कहावत है-धोबी का कुत्ता, न घर का ना घाट का ! हमारे बड़े बुजुर्गों ने पता नही क्या सोचकर यह कहावत बनाई होगी लेकिन उन्हे क्या मालूम था कि उनकी बनाई हुई यह कहावत आज की तथाकथित राजनीति मे समय समय पर बनने वाले "थर्ड फ्रंट " यानि कि तीसरे मोर्चे पर बखूबी लागू हो जायेगी !

पहले तो यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह तीसरा मोर्चा है किस चिड़िया का नाम ? दरअसल कुछ ऐसे नेता और राजनीतिक दल हमारी व्यवस्था मे अपने आप पैदा हो गये हैं जिनका मुख्य कार्य ही देश, समाज और सरकार के अंदर "अव्यवस्था" पैदा करना है ! यह वे लोग हैं जो गलती से किसी तरह जीत कर विधान सभा या संसद मे पहुंच तो जाते हैं लेकिन उसके बाद क्या करें, उसका पता ना तो इन्हे होता है और ना ही उस जनता को जो इनको चुनकर भेजती है.

ये वह राजनीतिक दल या नेता होते हैं जो चुनावों से पहले तो जनता से यही कहते रहते हैं कि हम किसी भी दूसरे दल के साथ किसी भी तरह का कोई गठबंधन नही करेंगे और सभी 545 सीटों पर चुनाव लडकर किसी ना किसी तरह प्रधान मंत्री बन जायेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनावों का समय नज़दीक आता है और इन्हे कोई राष्‍ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी अपने मुंह नही लगाती है तो यह अपनी ही खिचडी पकानी शुरु कर देते है और उस खिचडी को यह लोग कभी कभी खुद और कभी कभी मीडिया वाले बड़े चाव से " तीसरा मोर्चा " या फिर अंग्रेज़ी मे थर्ड फ्रंट कहकर संबोधित करते हैं.

चुनाव जीतने के शुरु के चार सालों मे तो यह लोग किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते है जिसके पास सरकार बनाने के लिये कुछ सदस्यों की सँख्या कम पड रही होती है और अपना "समर्थन" देकर उस पार्टी की सरकार बनबा कर यह अपने आपको धन्य महसूस करते हैं-बदले मे इन्हे क्या मिलता है ? इन्हे एक तो "कांग्रेस बचाओ इन्वेस्टिगेशन" यानि की सी बी आई की तरफ से अभयदान की प्राप्ति हो जाती है और इनके एक आध नेता को भ्रष्टाचार करने के लाइसेंस के साथ मंत्री बना दिया जाता है-इस तरीके से इन लोगों की दुकानदारी बिना किसी खास परेशानी के पिछले कई दशकों से चल रही है

पाँचवे साल मे यह लोग अगले लोकसभा चुनावो की रणनीति बनाने मे लग जाते है और जिस सरकार के साथ चार साल गुजार दिये उसे भी मौका देखकर कोसना शुरु कर देते है.

तीसरे मोर्चे के नाम पर जो नरपिशाची ताकतें समय समय पर इकट्ठा होने की नौटंकी करती हैं, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वे उत्तर प्रदेश,बिहार और पश्चिम बंगाल सहित देश के कई राज्यों मे गुन्डाराज और जंगल राज्य की स्थापना करने मे कामयाब रही हैं.

सवाल यह है कि इस बार यानि कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले ये लोग काफी घबराये और बौखलाये हुये क्यों हैं ? उसका प्रमुख कारण यही समझ मे आ रहा है कि इस बार इनको लग रहा है कि मोदी के नेत्रत्व मे भाजपा की सरकार बननी लगभग तय है और क्योंकि वह सरकार पूर्ण बहुमत के साथ बनेगी तो इन लोगों का कोई "नामलेवा" और "पानीदेवा" नही होगा. साथ ही इन लोगों ने जो दुष्कर्म आज तक किये है उनके चलते पहले तो जनता इनकी जमानत जब्त कराकर दंडित करेगी- इस दंड को तो ये बेचारे किसी तरह झेल भी जाते लेकिन दुष्कर्मों का कानूनी दंड जो मोदी के द्वारा इन लोगों को दिया जायेगा, बह इन लोगों को दिन रात आतंकित किये जा रहा है !

इस तीसरे मोर्चे के नेताओं की बौखलाहट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले तो यह लोग अपने राज्य मे साम्प्रदायिक दंगों का आयोजन करते है और जब लगता है कि पोल खुल खुलकर जनता के सामने आ रही है तो अपना गम गलत करने के लिये नाच गाने का रंगरेलियों युक्त कार्यक्रम का भी फटाफट आयोजित कर डालते हैं.
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rajeevg@hotmail.com
 Published on 14/2/2014

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