अख़लाक़ पर छाती पीटने वाले मालदा पर खामोश

मोदी जी के नेत्रत्व मे भाजपा की सरकार बने लगभग डेढ़ साल का समय पूरा हो चुका है-लोगों ने जिन उम्मीदों के साथ भाजपा को सत्ता सौंपी थी, उन उम्मीदों पर मोदी 5 साल बाद खरे उतरेंगे या नही, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन जन आकांक्षाओं के विपरीत मोदी जी जिस उदारवाद की राजनीति पर चल पड़े हैं, उससे ना तो वाजपेयी जी को कोई लाभ हुआ था और ना ही देश को. वाजपेयी जी के पास तो फिर भी यह बहाना था कि उनकी अल्पमत की सरकार थी, जिसके चलते उन्हे उदारवाद अपनाने की मजबूरी थी, लेकिन मोदी जी की सरकार पूर्ण बहुमत से चुनी हुई सरकार है और अगर उसके बाबजूद वह वाजपेयी जी के रास्ते पर चलने की भूल करते हैं, तो उसका नतीज़ा वही होगा जो वाजपेयी सरकार के साथ हुआ था और वह दुबारा सत्ता मे वापस नही आ सकी थी.

वाजपेयी ने अब्दुल्ला को गले लगाकर उसे अपनी सरकार मे मंत्री बना दिया और मोदी जी ने उसी रास्ते पर चलते हुये मुफ़्ती को गले लगाकर जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बना दिया. वाजपेयी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और बदले मे "कारगिल" दिलाया -उसी तरह मोदी जी को पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ  बढाने के बदले मे "पठानकोट" मिल गया है. अपनी इसी गैरजरूरी उदारता के चलते ना तो वाजपेयी जी ने नीचे लिखी बातों पर ध्यान दिया और ना ही मोदी जी इस दिशा मे कोई ठोस कदम उठाने का प्रयास कर रहे हैं :

1. पूरी दुनिया जानती और मानती है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और पाकिस्तान की आर्मी दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है. पाकिस्तान मे चुनी हुई सरकार हमेशा वहा के सेनाध्यक्ष के दबाब मे काम करती है और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की हैसियत सेनाध्यक्ष के ग़ुलाम से ज्यादा और कुछ नही होती है-नवाज़ शरीफ की हैसियत,सेनाध्यक्ष राहील शरीफ के ग़ुलाम से ज्यादा नही है-यह जानते हुये भी मोदी जी का उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढाना ना सिर्फ अपने समय की बर्बादी है बल्कि जनता की आकांक्षाओं पर कुठाराघात भी है. दुर्भाग्य से नवाज़ शरीफ और राहील शरीफ, दोनो ने अपने नाम के आगे "शरीफ" लगा रखा है,जबकि वे दोनो यह भली-भांति जानते हैं कि दोनो ही अव्वल दर्जे के बदमाश हैं.

2. देशद्रोही आतंकवादी याकूब मेनन को फांसी से बचाने के लिये काफी देशद्रोहियों ने राष्ट्रपति से माफी की अर्ज़ी लगाई थी-उन सभी की पूरी लिस्ट सरकार के पास मौजूद है लेकिन आज तक किसी एक पर भी ना तो देशद्रोह का मामला दर्ज़ हुआ है और ना ही किसी सरकारी जांच एजेंसी ने इन लोगों को हिरासत मे लेकर इनकी मरम्मत करने का प्रयास किया है- सरकार की इस अकर्मण्यता से देश मे मौजूद बाकी देशद्रोहियों के हौसले काफी बुलंद हैं.

3. एक अख़लाक़ की मौत पर कुछ तथाकथित लेखकों-साहित्यकारों,फ़िल्मकारों,इतिहासकारों और समाज सेवियों ने "असहिष्णुता" की नौटंकी करते हुये, ना सिर्फ अपने पुरस्कार वापसी के षड्यंत्र को अंज़ाम दिया, अपने विरोध को तब तक जारी रखा, जब तक बिहार मे उनकी पसंदीदा "चारा-भाई" की सरकार नही बन गयी. यह सभी लोग अब मालदा मे हुये नरसंहार पर ना तो कोई पुरस्कार वापस कर रहे हैं और ना ही कोई विरोध दर्ज़ करा रहे है-मीडिया मे बैठे इनके दलाल जो एक अख़लाक़ की मौत पर 24 घंटे अपनी छाती पीट रहे थे, अब मालदा के दुष्कर्म को अपने अखबार मे छापने से भी कतरा रहे है- यह बात स्पष्ट है कि यह सब लोग किसी विदेशी ताकत के इशारे पर काम कर रहे है और जब तक पुलिस या कोई दूसरी सरकारी एजेंसी इन सबको हिरासत मे लेकर ,इनकी मरम्मत करते हुये पूछताछ नही करेगी, पूरा सच सामने नही आयेगा.अभी तक मोदी सरकार ने इन लोगों की मरम्मत के लिये किसी भी सरकारी एजेंसी को इन सबके पीछे नही लगाया है और मोदी सरकार की इस अकर्मण्यता से ना सिर्फ इन लोगों के, बल्कि इनके अन्य देशद्रोही साथियों के हौसले पूरी तरह बुलंद हैं.

4. विपक्ष के कई नेता अपना "हेल्‍थ चेक-अप" कराने के बहाने या फिर थाइलॅंड जैसे देशों मे मौज मस्ती के बहाने गुप्त विदेश यात्राओं पर जाकर पिछले 60 सालों मे इकट्ठा किया हुआ काला धन नियमित रूप से ठिकाने लगा रहे हैं-सारा देश उनकी इस बेशर्मी का गवाह है लेकिन मोदी जी की जांच एजेंसियाँ लगता है-इससे पूरी तरह बेखबर है और इन लोगों को पूरी तरह खुला छोड़ दिया है. यह लोग जब अपनी इस विदेश यात्रा से वापस आते है तो इनके हौसले और भी अधिक बुलंद होते हैं और सरकार के काम मे यह अपनी पूरी ताकत के साथ रोड़ा अटकाने का प्रयास करते हैं. 

दाल-चावल-चीनी-आलू-टमाटर-प्याज़ और तेल की कीमतों के उतार चढाव को तो जनता पिछली सरकारों के समय भी झेल रही थी, आज भी झेल रही है और शायद आगे भी झेलती रहेगी, लेकिन अगर वाजपेयी जी की तरह आप भी अपनी "उदारवादी" छवि बनाने के चक्कर मे देश के दुश्मनों पर कोई ठोस कार्यवाही नही कर सके, तो इस देश का दुर्भाग्य होगा और जनता ने ना वाजपेयी जी को दुबारा आने दिया था, ना आपको दुबारा आने देगी. देखा जाये तो इस बात का फैसला आपको करना है कि आप सत्ता मे दुबारा आना चाहते हैं या नही-जनता तो अपना फैसला कर चुकी है.
Published on 11/1/2016

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