मफलर वाला देशद्रोही :बेशर्मीलाल

अपने मैले कुचैले मफलर को लपेटने की नौटंकी करते हुये बेशर्म पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष बेशर्मी लाल जैसे ही जनता के पैसे से हथियाई हुई चमचमाती कार की तरफ बढे, पत्रकार ने अपने कैमरामैन साथी के साथ नेता बेशर्मी लाल पर अपना जुबानी हमला बोल दिया-" बेशर्मी लाल जी, आजकल क्या चल रहा है ?"


बेशर्मी लाल : अब ऑड-ईवन की नौटंकी तो बंद हो गयी है, लिहाज़ा खबरों मे रहने का बहाना ढूंढ रहा था-अच्छा है आप आ गये और अब मैं आश्‍वस्‍त हूँ कि कल के अखबार मे मेरा फोटो और खबर छप जायेगी.


बेशर्मी लाल की इच्छा का सम्मान करते हुये मैने अपने कैमरामैन साथी की तरफ देखते हुये कहा-" भाई, बेशर्मी लाल जी सिर्फ नगरपालिका के अध्यक्ष ही नही, बहुत पहुंचे हुये बेशर्म हैं-इनकी फोटो ठीक से ले लो ताकि उसे हम लोग अपने अखबार मे आने वाले कई दिनो तक छाप सकें."

पत्रकार : बेशर्मी लाल जी, खबरों मे कैसे बने रहना है, यह तो कोई आपसे सीखे. आप तो अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहकर कभी अपना मुंह काला करवा लेते हैं और कभी अपनी पार्टी के अन्य साथियों का मुंह काला कर देते हैं. जब कादरी मे अवैध प्रेम प्रसंग मे फंसकर एक अल्पसंख्यक की मौत हो जाती है तो आप अपना विधवा विलाप करने वहा पहुंच जाते हैं- जब एक देशद्रोही छात्र कैदराबाद मे आत्महत्या कर लेता है, तो भी आप पूरी बेशर्मी के साथ उस देशद्रोही का साथ देने वहा जा कूदते है लेकिन आलदा मे लाखों हिन्दुओं के कत्ले आम पर ना तो आप कुछ बोलते है और ना ही वहा जाने की बात करते हैं-आखिर इतनी बेशर्मी आप और आपके साथी कहा से लाते हैं ?

बेशर्मी लाल : देखिये आपको पत्रकारिता वगैरा शायद आती ही नही है वर्ना आप ऐसे बचकाना सवाल हमसे नही करते. दरअसल देश के बाहर जो देश के दुशमन बैठे हुये है, हम लोग पूरी बेशर्मी के साथ, उन्ही के हाथों की कठपुतली बने हुये हैं और जहां जाने के लिये हमे देश के दुश्मन हुक्म देते हैं, हम फटाफट वहीं पहुंच कर अपनी छाती पीटनी शुरु कर देते हैं- क्योंकि बेशर्मी हमारा खानदानी पेशा है, इसलिये हमे इस तरह के दुष्कर्मों को अंज़ाम देने मे किसी तरह की झिझक या शर्म महसूस नही होती है.

पत्रकार (थोड़ा तिलमिलाते हुये) : माफ कीजिये, बेशर्मी लाल जी, जितने पत्रकारों को ठीक से पत्रकारिता आती है, उन्हे तो आपने अपनी पार्टी मे शामिल कर लिया है-जो गलती से शामिल नही हो पाये है, वे सब भी अपने अखबार के पहले पन्ने पर आपकी बेहूदा फोटो और गैर जरूरी खबर रोजाना इस तरह छाप रहे हैं, मानो उसके बिना उनके अखबार का बिकना मुश्किल हो जायेगा.

बेशर्मी लाल : आप भी होनहार पत्रकार प्रतीत होते हैं-आपका भी हमारी पार्टी मे तहे दिल से स्वागत है और आपके इस कैमरामैन साथी का भी.

पत्रकार ( विषय को बदलते हुये): अच्छा बेशर्मी लाल जी, यह बताइए कि देश के प्रधान मंत्री को आप दिन भर मे दस-बारह बार गालियाँ देते हैं और यहाँ तक कि उन्हे एक बार आपने "कायर" तक कह डाला. इतनी बेशर्मी का आखिर राज क्या है ?

बेशर्मी लाल : हमने अगर पी एम साहब को "कायर" कह दिया तो इसमे गलत क्या कह दिया ? आप एक पत्रकार की हैसियत से ही सही, मुझे यह बताओ कि क्या किसी और देश के पी एम को गाली गलौज़ करने वाला आदमी अब तक जिंदा बच सकता था ? नही ना ? लेकिन में सही सलामत जिंदा आपके सामने खड़ा हुआ हूँ और जब- जब मुझे देश के दुश्मनों का आदेश मिलेगा, में पी एम साहब को फिर गालियाँ दूंगा. मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नही है- सब पैसे का मामला है-जब भी में पी एम साहब को गाली देता हू- मेरे स्विस बैंक खाते मे विदेशों मे बैठे मेरे आका मोटी रकम जमा करा देते हैं.

पत्रकार : यह ठीक है कि आप देशद्रोहियों के हाथ की कठपुतली बने हुये है और एक तरह से खुद भी देशद्रोही ही हैं लेकिन जब पी एम साहब आपकी किसी बात पर गौर ही नही कर रहे हैं तो बार बार उन्हे गालियाँ देने की क्या जरूरत है ?


बेशर्मी लाल : हमारी समस्या को आपने ठीक से पकड लिया है पत्रकार महोदय और आप हमारी पार्टी की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी मे सदस्य बनने के अधिकारी भी हो गये हैं-हमारी शिकायत पी एम साहब से इसी बात को लेकर है कि वह हमारी मरम्मत का कोई पुख्ता इंतज़ाम नही करवा रहे हैं, जबकि हम अपने कार्य-कलापों से उन्हे इसके लिये नियमित रूप से उकसा रहे हैं. अब जनता के पास तो 5 साल मे एक बार वोट डालने का भी वक्त नही होता-सो वह तो हम और हमारे साथियों की मरम्मत करने से रही.


पत्रकार: फिर बेशर्मी लाल जी, आप क्या चाहते हैं-पी एम साहब खुद आकर आपकी मरम्मत करें ?

बेशर्मी लाल : नही पत्रकार महोदय, पी एम साहब को तकलीफ करने के लिये हम कहा कह रहे हैं-हम तो यही कह रहे हैं कि पुलिस को हमारे आधीन कर दिया जाये-पुलिस को तो वेतन ही अपराधियों और देशद्रोहियों की मरम्मत करने का मिलता है-हम वह काम पुलिस से खुद ही करवा लेंगे-बस एक बार पुलिस हमारे आधीन आये तो.

पत्रकार : बेशर्मी लाल जी, चलते चलते एक आखिरी सवाल......यह बताइए कि आप और कितना नीचे गिरोगे ?

बेशर्मी लाल : हम अपनी नज़रों मे तो काफी पहले ही काफी नीचे गिर चुके है, लेकिन क्योंकि आपने सवाल कर ही दिया है और सवाल भी आपका जायज़ लग रहा है तो हम इसका तुरंत जबाब देने की बजाये इस विषय पर अपनी राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की अगली बैठक मे विस्तार से चर्चा करेंगे और फिर यह तय करेंगे कि हमे बेशर्मी और देशद्रोह मे और कितना नीचे गिरना है.

(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना का किसी जीवित या मृत व्यक्ति,संस्था या संगठन से कोई लेना देना नही है. अगर फिर भी किसी व्यक्ति को लगता है कि इस काल्पनिक व्यंग्य रचना मे वर्णित घटनाये उसके जीवन से मेल खाती हैं तो वह निटकतम पागलखाने मे जाने के लिये स्वतंत्र है)
Published on 22/1/2016

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