पुरस्कार वापसी की नौटंकी किसके इशारे पर ?

यह तो सभी को मालूम है कि पिछले 60 सालों के कुशासन मे किस तरह से भ्रष्टतंत्र और लूटतंत्र की सफल स्थापना उस समय की सरकारों ने की थी. कुछ लोगों की तो रोजी रोटी ही इसी भ्रष्टतंत्र और लूटतंत्र पर टिकी हुई थी. उस समय की सरकारों ने भी मिल बांटकर खाने की नीति पर चलते हुये अपने चाटुकारों और तलवे चाटने वालों को खूब पुरस्कार भी बांटे और पुरस्कारों के साथ मोटी धनराशि भी देकर इन चाटुकारों को इनकी सेवाओं का पूरा मेहनताना भी दिया. "अंधा बांटे रेवड़ी" की तर्ज़ पर जितने भी लोगों को बिना किसी काबिलियत के ही पुरस्कार पकड़ा दिये गये थे, उन सब ने एक एक करके अपने अपने पुरस्कार वापस करने शुरु कर दिये हैं- इसलिये नही कि यह बात उन्हे अब जाकर मालूम पड़ी है कि वे लोग इस पुरस्कार के काबिल ही नही थे और उन्हे सिर्फ चाटुकारिता के इनाम के तौर पर थमा दिये गये थे, बल्कि इसलिये कि अब उन्हे नियमित रूप से मिलने वाली दूध मलाई यकायक बंद हो गयी है क्योंकि वर्तमान सरकार जिस रास्ते पर चल रही है, उसमे सिर्फ उन्ही लोगों को पुरस्कार और उससे जुड़ी धनराशि मिल सकती है जो वास्तव मे इसके लायक है. जाहिर सी बात है कि जब काबिलियत के आधार पर लोगों का आकलन शुरु हो जायेगा तो नाकाबिल लोग जल्द से जल्द अपने बाहर निकलने का रास्ता तलाश करेंगे.

हालांकि पहले की तरह ईमानदारी का इन चाटुकारों मे आज भी पूरी तरह अभाव है-यह लोग अपने पुरस्कार वापस तो उसी वजह से कर रहे हैं जिसका जिक्र मैने ऊपर किया है लेकिन मीडिया को बताने के लिये नौटंकी इस बात की कर रहे हैं कि एक अल्पसंख्यक की दुखद मृत्यु से यह लोग बहुत आहत हुये है और दरअसल उस तरह की एक दो घटनाओं से मानवाधिकारों का हनन भी हुआ है और देश मे साम्प्रदायिक माहौल भी खराब हुआ है. यह लोग अपने आकाओं के इशारे पर यह कहना भी नही भूल रहे हैं कि इन तथाकथित दुखद घटनाओं के लिये कौन जिम्मेदार है. इस तरह की दर्दनाक घटनाएं चाहें किसी ऐसे प्रदेश मे हो रही हों-जहाँ भाजपा की सरकारें नही हैं, लेकिन इन लोगों को फिर भी उस सबके अंदर  भाजपा, संघ और मोदी का हाथ ही नज़र आता है क्योंकि जिन लोगों के इशारे पर यह घिनौनी वारदातें अंज़ाम दी जा रही हैं, वे तो इनके अपने आकाओं के भेजे हुये लोग  ही हैं जिन्होने इन लोगों को पुरस्कार ही इसलिये थमाये थे कि समय आने पर यह लोग उनके दुष्कर्मों के लिये भाजपा,संघ और मोदी को ही निशाना बनाते रहें. बाकी का काम तो मीडिया मे बैठे ऐसे  चापलूस लोग बखूबी कर देंगे, जिनकी दुकानदारी ही पिछले 60 सालों के कुशासन के लिये जिम्मेदार लोगों के तलवे चाट चाट कर चल रही थी.

पुरस्कार वापस करने की नौटंकी करने वाले ये चाटुकार, ना तो पुरस्कार के साथ थमाई गयी मोटी रकम को ब्याज़ समेत लौटा रहे हैं और ना ही यह बता रहे हैं कि यह सारी नौटंकी ये लोग किसके इशारे पर कर रहे हैं. यह लोग यह भी नही बता पा रहे हैं कि सन 1975 मे जब इनके आकाओं ने देश मे आपातकाल लगाकार मानवाधिकार हनन का एक नया रेकार्ड बनाया था, तब ये लोग किस बिल मे जाकर छुप गये थे या फिर जब 1984 मे इनके आकाओं ने देशव्यापी साम्प्रदायिक दंगे प्रायोजित करवाये थे, तब इन लोगों को क्यों साँप सूंघ गया था ? जब कश्मीर घाटी से निर्दोष हिन्दुओं को बेरहमी के साथ मार-मारकर भगाया गया था, तब ये चाटुकार (जो अपने आप को लेखक कहते और समझते हैं) अपना लेखन छोड़कर कहाँ नौटंकी करने चले गये थे ? अगर इनकी तथाकथित इंसानियत अब जाकर जागी है तो क्या आज से पहले यह लोग "इंसान" भी नही थे ? क्या पिछली सरकारों ने ऐसे लोगों को पुरस्कार खैरात मे थमा दिये जो "इंसान" ही नही थे ? यह कुछ सवाल हैं जिनका जबाब इस देश की 125 करोड़ जनता जल्द से जल्द जानना चाहती है.





 Published on 16/10/2015

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