किसान गजेन्द्र की हत्या के लिए कौन जिम्मेदार ?
हम लोग हालांकि राजनीति मे नये नये आये हैं लेकिन हमारे इरादे, हौसले और कारनामे इस तरह के हैं कि बड़ी बड़ी पुरानी राजनीतिक पार्टियों के नेता भी हमारे आगे पानी भरते नजर आते हैं-अपनी चालबाज़ी से यह नरपिशाची कारनामा हमने एक बार नही, दो बार अंज़ाम दिया है-पहले 2013 के विधानसभा चुनावों मे और फिर दुबारा से 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों मे-यह ठीक है कि समय समय पर हमारे दुष्कर्मों की पोल भी खुलती रहती है लेकिन अपने जबरदस्त दुष्प्रचार के कौशल के बल पर हम लोग जनता को एन मौके पर बरगलाने मे कामयाब हो ही जाते हैं-हमारे इन नरपिशाची दुष्कर्मों मे हमारा सक्रिय सहयोग करने वालों की लम्बी फेहरिस्त है जिसमे देशद्रोहियों,मौलानाओं और सीमा पार बैठे आकाओं से लेकर अपने लल्लू,ममता,माया,मुलायम,नीतीश,वामपंथियों और कांग्रेसियों की लम्बी फ़ौज़ शामिल है ! इस सबके चलते ही 2015 की हमारी जीत पर कुछ ऐसा हुआ जो पहले देश के इतिहास मे कभी नही हुआ-हमारी जीत का जश्न हिन्दुस्तान मे कम, पाकिस्तान मे ज्यादा मनाया गया !
चलो वह तो कल की बात हो गयी और हम लोग पीछे मुड़कर देखने वालों मे से हर्गिज़ नही है-जिन लोगों के कन्धों पर सवार होकर हम सत्ता के इस मुकाम तक पहुंचे हैं, उन सभी को हमने लात मारकर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है और अब हम तन-मन-धन से अपनी पूरी जान लगाकर यही कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह से मोदी,भाजपा और संघ को बदनाम करके अपने लिये प्रधानमंत्री की कुर्सी को हथियाने की नापाक और नाकाम साज़िश को अंज़ाम दे सकें !
दिल्ली मे कितने किसान है और कितनी कृषि योग्य भूमि है-इसका कोई खास अंदाज़ा तो हमे भी नही है लेकिन अपने नापाक मनसूबों को अंज़ाम देने के लिये हमने मोदी सरकार के किसानों के हित मे लाये गये भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ उसी तरह दुष्प्रचार शुरु कर दिया जैसे की हमारे आका लोग कर रहे हैं-हम लोगों ने पूरी विनम्रता और जिम्मेदारी के साथ जन्तर मन्तर पर बाकायदा रैली का आयोजन भी किया और"मेहमान कलाकार" की भूमिका के लिये "गजेंद्र किसान" को राजस्थान से "इम्पोर्ट" भी कर लिया क्योंकि यह हमे भी मालूम है कि दिल्ली मे या तो किसान हैं ही नही और जो हैं भी वो हमारी नरपिशाची साज़िश का हिस्सा नही बनने वाले हैं ! हमारी रैली कोई साधारण रैली नही थी-हम कुछ भी काम साधारण तरीके से नही कर सकते है-इसे अगर हमारी कमजोरी समझा जाये तो भी हमे गर्व ही होगा क्योंकि "शर्म" जैसे शब्द हमारे शब्दकोश से हमेशा के लिये गायब हो चुके हैं !
अपनी पूर्व नियोजित योजना के तहत जब हम लोग गजेंद्र किसान को ठिकाने लगाने मे कामयाब हो गये तो हमारी खुशी का ठिकाना नही रहा क्योंकि अब हम बड़ी आसानी के साथ उस किसान की हत्या का दोष मोदी के ऊपर मढ सकते थे-हमारी चालबाज़ी पकड़ी ना जाये इसके लिये हमने मीडिया को आने पर रोक लगाने की बात भी कही थी लेकिन मीडिया के आगे हमारी एक ना चली और हमारे सारे के सारे दुष्कर्म ना सिर्फ कैमरों मे कैद हो गये-सोशल मीडिया पर वायरल भी हो गये !हमारी पूर्व नियोजित योजना के अनुसार हमारे परम सहयोगी असत्यव्रत चतुर्वेदी ने आनन फानन मे यह मांग भी कर डाली कि किसान की हत्या के लिये मोदी पर "एफ आई आर" दर्ज़ कर दी जाये लेकिन इस बार इस सारी फिल्म का "स्क्रीन प्ले" लिखने मे दरअसल हम लोगों से ही गड़बड़ी हो गयी थी और इसलिये हम क्या,हमारे सभी सहयोगी भी जल्द ही "बैकफुट" पर आ गये-असली पोल हमारी तब खुली जब सोशल मीडिया पर हमारी वह तस्वीरें वायरल हो गयी जिनमे हमारे गुंडे-बदमाश समर्थक किसान गजेंद्र की हत्या पर ताली बज़ा रहे थे और मंच पर बैठे हुये हम लोग अपने चिर परिचित नरपिशाची अंदाज़ मे ठहाके लगा रहे थे-इसके बाद जब गजेंद्र किसान के घर वालों ने हमे एक "घटिया कहानी" का नाट्य प्रस्तुतिकरण करने के लिये लताडना शुरु किया तो हम लोग रोने-धोने और माफी मांगने की मुद्रा मे आ गये-लेकिन यह हम भी जानते हैं कि यह कहानी यहाँ पर खत्म नही होती है-जिस राजनीतिक कहानी की शुरुआत हम लोगों ने बड़ी उम्मीद के साथ की थी, उसका समापन अगर दिल्ली पुलिस करे तो किसी को हैरानी नही होनी चाहिये !जन्तर मन्तर पर शुरु किये गये इस नाटक का पटाक्षेप अगर तिहाड़ जेल के अंदर हो तो भी किसी को हैरानी नही होनी चाहिये! हम लोग तो ना बदनाम होने से डरते है और ना जेल जाने से-बदनाम होकर ही तो हम यहाँ तक पहुंचे है-यह कहावत खास हमारे जैसे लोगों के लिये ही तो बनाई गयी होगी-"बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा ?"
(यह एक व्यंग्य लेख है और इससे किसी को भी खास विचलित होने की कतई आवश्यकता नही है)
Published on 27/4/2015
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