आडवाणी की "इमरजेंसी" पर केजरीवाल बेचैन !
भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने हाल ही मे दिये गये बयान से सबको यकायक हैरान कर दिया ! 1975 मे जब देश कांग्रेस की निकम्मी सरकार का जबरदस्त कुशासन झेल रहा था, उसी समय अपनी असफलताओं को छिपाने के लिये इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगाने का कुकर्म कर डाला ! इंदिरा गाँधी के आपातकाल लगाने का मतलब था कि उस समय देशभक्तों को चुन चुनकर प्रताडित किया गया-आडवाणी जी खुद भी उस कांग्रेसी जुल्म और उत्पीड़न के शिकार रहे हैं और उनके हालिया बयान को आगामी 25 जून को आने वाली उस शर्मनाक दिन की सालगिरह से जोड़कर देखा जाना चाहिये !
आडवाणी जी के बयान से देश मे मौजूद सभी कांग्रेसियों का सर शर्म से झुक जाना चाहिये लेकिन "शर्म" जैसी किसी भी चीज़ को यह लोग बहुत पहले ही बहुत पीछे छोड़ आये है और इसीलिये उस बयान पर शर्मिन्दा होने के बजाये उछलकूद करके अपनी बेशर्मी का प्रदर्शन कर रहे हैं ! 26 जून को देश की जनता को एक बार फिर से इस दुष्कर्म के लिये जबाब ना देना पड जाये, इसी भय के चलते गाँधी परिवार अचानक ही चुपचाप विदेश खिसक गया है !
ऐसा भी नही है कि 1975 के आपातकाल के बाद देश मे हमेशा हालात सामान्य ही रहे-देश के कुछ अलग अलग राज्यों मे समय समय पर जिस तरह से जंगल राज की स्थापना की गयी, वह स्थिति आपातकाल से भी भयंकर है-पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार के राज्यों मे पिछले कई दशकों से जंगल राज से जनता जिस तरह से त्रस्त है उसे किसी भी तरह से "आपातकाल" से कम नही समझना चाहिये ! दिल्ली मे अपार बहुमत के बाद भी जिस तरह से हालात दिन ब दिन बद से बदतर होते जा रहे हैं और जनता जिस तरह से अपने किये पर पछतावा कर रही है, उसे देश और दिल्ली की जनता भी देख रही है और आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेता भी देख रहे हैं ! दिल्ली सरकार जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं का निरंतर अपमान करती हुई तेजी के साथ जंगल राज की तरफ बढ रही है-उसे देखकर आडवाणी जैसे किसी भी समझदार व्यक्ति का विचलित होना स्वाभाविक ही है !
आपातकाल की तर्ज़ पर मीडिया की सेन्सरशिप का कानून तो दिल्ली सरकार ने लागू कर ही दिया था-वह तो भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसने "इमरजेंसी" की याद दिलाने वाले उस काले कानून को निरस्त करके प्रेस और जनता की आज़ादी को बहाल कर दिया ! सुप्रीम कोर्ट ने एक बार तो सेन्सरशिप के नापाक इरादों पर रोक लगाकर दिल्ली को एक अघोषित "आपातकाल" की स्थिति से बचा लिया लेकिन वह स्थिति फिर नही दुहरायी जायेगी इसकी कोई गारंटी नही है-आडवाणी जी ने भी यही चिंता व्यक्त की है कि जिस तरह के हालात वह इस समय देख रहे हैं उसे देखकर उन्हे यह नही लगता की "आपातकाल" जैसी स्थिति दुबारा नही दोहरायी जायेगी ! दिल्ली मे ना सिर्फ बिजली पानी को लेकर हाहाकर मचा हुआ है, रोज रोज होने वाली सफाई कर्मचारियों की हड़ताल के चलते देश की राजधानी को कूड़ाघर मे तब्दील करने की भी साज़िश गाहे बगाहे चलती रहती है- सभी मोर्चों पर नाकाम सरकार अपने झूठे महिमामंडन पर जिस तरह से जनता के पैसे को पानी की तरह बहा रही है-उसके चलते सफाई कर्मचारियों को समय पर वेतन मिलने का सवाल ही नही उठता ! एक तरफ तो जनता के पैसे को उल्टे सीधे कामों मे पानी की तरह बहाया जा रहा है और दूसरी तरफ पैसों की कमी के लिये नियमित रूप से केन्द्र सरकार के सर ठीकरा भी फोड़ा जा रहा है-जनता इन चालबाज़ियों को हालांकि समझ चुकी है लेकिन अपने आप को बुरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रही है !
हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल जी ने आडवाणी जी की चिंता पर संभवत् अपनी सफाई देने के लिये उनसे मिलने की कोशिश भी की लेकिन आडवाणी जी की कमान से तो तीर निकल चुका था और उन्होने निष्पक्ष रूप से अपना आकलन सार्वजनिक भी कर दिया और इसीलिये उन्होने केजरीवाल जी की इस मुलाकात की कोशिश को सिरे से नकार दिया ! ठीक भी है आडवाणी जी की शंकाओं का समाधान उनसे मिलकर अपनी मनगढ़ंत कहानिया सुनाने से होने वाला नही है-आडवाणी जी की शंकाओं का समाधान तभी हो सकता है जब दिल्ली की सरकार रोज रोज जनता को प्रताडित करना बंद करके जनहित और देशहित मे काम करने की तरफ बढ़ती दिखाई दे जो संभवत् आडवाणी जी जैसे नेताओं को नही लग रहा है और उनकी इस बेचैनी को इसी संदर्भ मे लिया जाना चाहिये ! जब तक दिल्ली की सरकार अपने दुष्कर्मों के लिये केन्द्र सरकार को दोषी ठहराती रहेगी-आडवाणी जी से जितनी मर्ज़ी मुलाकातें कर ली जाएं और जितनी मर्ज़ी सफाइयाँ दे दी जाएं, उसका कुछ भी नतीजा निकलने वाला नही है !
Published on 22/6/2015
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