"छलीबाबा" और उनके 66 चोर !

अलीबाबा और उसके 40 चोरों की कहानी अब काफी पुरानी हो चुकी है-जनता को नये जमाने के हिसाब से हर रोज नयी नौटंकी चाहिये-नौटंकी भी ऐसी जिसमे छल,कपट,झूठ,मक्कारी और दुष्प्रचार का तड़का लगाया गया हो-इस सारी मक्कारी की आड़ मे भ्रष्टाचारियों को बचाने का खेल चलता रहे लेकिन मीडिया मे "सैट" किये हुये लोग और अंधभक्त इस बात की दिन रात कस्मे खाते रहें कि यह "छलीबाबा और उनके 66 चोर" सिर्फ इन्द्रप्रस्थ से ही नही, पूरे देश से भ्रष्टाचार मिटा देंगे ! आइए सुनते हैं छलीबाबा और उनके 66 चोरों की कहानी उन्ही की जुबानी :

अपनी इसी अभूतपूर्व छलकपट रूपी प्रतिभा का दुरुपयोग करते हुये हम लोगों ने इन्द्रप्रस्थ की सत्ता पर नाज़ायज़ तरीके से क़ब्ज़ा तो कर लिया लेकिन हम ठहरे खानदानी नरपिशाच-सो हमे इस बात की तो जरा भी तमीज़ नही थी कि गलत तरीके से हथियाई हुई सत्ता को पचाया कैसे जाता है और उसे चलाया कैसे जाता है-हमने अपने नरपिशाची अंदाज़ मे हर रोज नयी नयी नौटंकी अंज़ाम देनी शुरु कर दी-लेकिन जनता ने तो हम लोगों को काम करने के लिये चुना था और काम तो हमारे पूर्वजों ने भी कभी नही किया तो हम कैसे कर पायेंगे ? लिहाज़ा हम लोगों ने अपने जंगल राज और गुंडा राज से ध्यान हटाने के लिये देश के संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को अपने चिर परिचित नरपिशाची अंदाज़ मे गालियाँ देनी शुरु कर दी-गाली गलौज,गुंडागर्दी,छल-कपट,धोखाधडी और अराजकता फैलाने मे हमारे जैसे पैदायशी नरपिशाचों को वैसे भी कभी तकलीफ नही होती है-हमारे इस नापाक काम मे हमारे मुट्ठी भर समर्थक और अंध भक्त भी हमारा पूरा सहयोग करते है और जो भी शरीफ आदमी हमारी इन नरपिशाची हरकतों का विरोध करता है, उसे वे अपने अपने तरीके से गालियाँ देना शुरु कर देते हैं ! इन्द्रप्रस्थ की जो जनता हमारे छलावे मे आ चुकी है, वह अपने दुर्भाग्य को जितना अधिक कोस रही है-हम नरपिशाचों का खून उतना ही अधिक बढ रहा है !

हमारे लिये सबसे ज्यादा हर्ष का विषय यह है कि देश के कई राज्यों मे जंगल राज और गुन्डाराज पहले से ही सफलतापूर्वक स्थापित हो चुका है इसलिये हमे अगर अपने जंगल राज को अंज़ाम देने के लिये किसी मदद की जरूरत पड़ती है तो समय समय पर प्रशिक्षित नरपिशाचों को हम दूसरे राज्यों से भी उधार ले लेते हैं ताकि वे लोग अपनी प्रतिभा से हमारे प्रदेश की जनता को भी मंत्रमुग्ध कर सकें और जनता अपनी रोजमर्रा की बिजली-पानी आदि की समस्याओं को भूलकर हमारे सुर मे सुर मिलाकर हमारे जंगल राज का आनन्द ले सके ! देश की जिन अन्य राज्यों मे जंगल राज या गुंडा राज सफलतापूर्वक चल रहा है, वहा बैठे नरपिशाच भी हमारे दुष्कर्मों पर खुश होकर ताली बजा रहे हैं और हम लोगों को इस बात के लिये उकसा रहे हैं कि भले ही वे लोग नही बन सके, लेकिन कम से कम हम लोग तो अव्वल दर्ज़े के नरपिशाच जितनी जल्दी हो सके बन जाये ! हम भी अपने शुभचिंतकों को बिल्कुल निराश नही करेंगे और दुनिया का सबसे बढिया नरपिशाच बनकर दिखाएंगे !

यहाँ हम एक बात फिर से साफ कर देना चाहते हैं कि संविधान,अदालत,कानून,शराफत और शालीनता जैसे शब्द हमारे शब्दकोश मे नही है और हमारा ऐसा कोई इरादा भी नही है कि ऐसे भारी भरकम शब्दों को अपने शब्दकोश मे शामिल किया जाये ! हमारा यह भी मानना है कि हमारे जैसे नरपिशाचों का सिर्फ और सिर्फ एक ही इलाज़ है-वह यह कि हमारी सताई हुई जनता हम लोगों को सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर हमारी तबियत से कुछ इस तरह खबर ले कि आगे से किसी दूसरे नरपिशाच की इतनी हिम्मत नही पड़े कि वह जनता को सब्जबाग दिखाकर उन्हे मूर्ख समझने की कोशिश कर सके ! पूरी दुनिया का इतिहास उठाकर देख लें तो मालूम पड जायेगा कि आज तक कोई भी नरपिशाच बिना पिटाई के सुधरा नही है-लिहाज़ा हम लोगों से यह उम्मीद करना कि हम सिर्फ बातों से ही समझ जायेंगे-कोरी मूर्खता होगी ! दरअसल हमारे काम तो ऐसे हैं नही कि हमे जनता का समर्थन और प्रशंसा मिल सके, अपनी पिटाई करवाकर अगर हम जनता की सहानुभूति बटोरना  चाहते है तो उसमे किसी को भला क्यों ऐतराज़ होना चाहिये !

(इस काल्पनिक व्यंग्य रचना का किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नही है-अगर फिर भी कोई व्यक्ति इसे अपने आप से जोड़कर देखने की गलती करना चाहे तो वह अपनी जोखिम पर ऐसा करने के लिये स्वतंत्र है )


Published on 9/6/2015 

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