मोदी की हार ही पाकिस्तान की जीत है ?
बिहार चुनावों से ठीक पहले पाकिस्तान सरीखी विदेशी ताकतों के इशारे पर जिस तरह से कुछ देशद्रोही ताकतें देश मे एक नकारात्मक माहौल बनाकर, भाजपा और मोदी की हार को सुनिश्चित करने मे लगी हुई थी, वे सभी अपने नापाक मनसूबों मे कामयाब होने पर काफी खुश और संतुष्ट नज़र आ रही हैं और चुनाव परिणाम आने के साथ ही इन सब देशद्रोहियों ने अपने-अपने दुष्प्रचार तंत्र को लगाम लगा दी है. बिहार चुनावों मे भाजपा और मोदी की षड्यंत्रकारी हार का जश्न जिस तरह से पाकिस्तान के मीडिया मे मनाया गया है, उससे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चेतावनी भी सच होती नज़र आ रही है जो उन्होने बिहार चुनावों से पहले बिहार के मतदाताओं को दी थी लेकिन देशद्रोहियों के दुष्प्रचार के आगे बिहार की जनता ने पूरी तरह विवश होकर अपने घुटने उन ताकतों के आगे टेक दिये जिन्होने बिहार को जंगल राज बनाने मे कोई कसर नही छोड़ी थी और जिनके ऊपर अदालत मे अपराधिक भ्रष्टाचार का मामला साबित हो चुका है.
बिहार चुनावों के परिणाम आते ही मानो दालों के दाम "चारा" मिल जाने की वजह से अपने आप ही कम हो गये है. आपसी प्रेम प्रसंग की एक घटना मे अख़लाक़ की दुखद हत्या को जिस तरह से कुछ देशद्रोहियों ने साम्प्रदायिक रंग देकर विदेशी ताकतों के इशारे पर दुष्प्रचार शुरु किया और जिस तरह से फ़रीदाबाद मे दो परिवारों के आपसी झगड़े को दलित उत्पीड़न का मामला बनाया गया, उससे यह बात साफ हो जाती है कि यह सब काम बहुत ही सुनुयोजित तरीके से विदेशों मे बैठी दुश्मन ताकतों के इशारे पर अंज़ाम दिया जा रहा था. जिस तरह एक के बाद एक लोग पुरस्कार वापस करके अपने आकाओं के प्रति अपनी "वफादारी" का प्रदर्शन कर रहे थे-उसके चलते इन पुरस्कार वापस करने वालों का दुष्कर्म भी सवालों के घेरे मे आ गया है क्योंकि पिछले दिनो इन पुरस्कार वापस करने वालों और उनके संगी साथियों को जिस तरह से याकूब मेमन मामले मे मुंह की खानी पड़ी थी और जिस तरह से विदेशी सहायता प्राप्त इन लोगों के अवैध रूप से चल रहे तथाकथित NGO पर सरकार ने लगाम लगाई थी, उससे यह लोग प्रतिशोध की आग मे लगातार जल रहे थे-सरकार इन लोगों को समय रहते पहचान नही सकी और इन लोगों से सख्ती से निपटने की बजाये, दुष्प्रचार करने के लिये खुला छोड़ दिया-सरकार के ढीलेपन का नतीज़ा बिहार चुनावों के परिणाम के रूप मे सबके सामने है.मीडिया इस सारे दुष्प्रचार मे मानो आग मे घी डालने का काम करता रहा क्योंकि उसे अपना प्रतिशोध मोदी सरकार से लेना था क्योंकि मोदी सरकार आने के बाद से ही मुफ्त विदेशी यात्राओं पर पूरी तरह रोक लग गयी है जो इन लोगों को बहुत अधिक नागवार गुज़री है.
पाकिस्तानी मीडिया मे जो जश्न बिहार चुनावों के बाद मनाया गया है, यह बिल्कुल उसी तर्ज़ पर है जो दिल्ली चुनावों के परिणाम आने के बाद मनाया गया था लेकिन देश की जनता और भाजपा सरकार दोनो ने ही, पाकिस्तान की उस चाल से कोई सबक नही लिया और नतीज़ा सबके सामने है. अब जब फ़्राँस मे तथाकथित"सेक्युलर" ताकतों ने हमला करके वहां भी आतंक का माहौल पैदा कर दिया है और अपनी "सहनशीलता" दिखाते हुये सैंकड़ों निर्दोषो की जान ले ली है, तब हमारे दुष्प्रचार तंत्र के सूत्रधार अपने बचे खुचे पुरस्कार वापस करने की बजाये लम्बी तानकर सो रहे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार मे शामिल एक तथाकथित वरिष्ठ मंत्री और कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता जिस तरह से ISIS के समर्थन मे खुलकर सामने आ गये हैं, उससे यह बात और भी अधिक पुख्ता हो जाती है कि "सेकुलरिज्म" की आड़ मे देशद्रोही गतिविधियाँ देश मे लगातार बढ़ती जा रही हैं और जब तक इन देशद्रोहियों को बिना किसी देरी के कड़ा दंड नही दिया जायेगा-दिल्ली और बिहार जैसे परिणाम भाजपा को लगातार झेलने पड सकते हैं. जैसी कि उम्मीद थी, देश मे मौजूद किसी भी स्व-घोषित सेक्युलर नेता, बुद्धिजीवी या मीडिया वाले ने अभी तक ISIS का समर्थन कर रहे इन "सेक्युलर" नेताओं के बयान की ना तो निन्दा की है और ना ही इसके ऊपर देशद्रोह का केस चलाने की मांग की है. जिस देश और समाज मे बहुसंख्यकों के घोर अपमान और देशद्रोहियों के महिमामंडन को ही "सहनशीलता" का पैमाना मान लिया जायेगा, उस देश को रसातल मे जाने मे कितना समय लगेगा इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है. सरकार समय रहते हरकत मे आये और बहुसंख्यकों का अपमान करने वाली इन देशद्रोही और भ्रष्ट ताकतों से निर्ममता से निपटे.
Published on 16/11/2015
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