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क्या 2018 के आम बजट में मध्यम वर्ग के लिए कुछ भी नहीं है ?

क्या 2018 के आम बजट में मध्यम वर्ग के लिए कुछ भी नहीं है ? जिस दिन से २०१८-१९ के आम बजट की घोषणा हुई है, देश की विपक्षी पार्टियां और उसके नेता सकते में हैं. २०१९ के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार का यह आखिरी बजट है और “मिडिल क्लास” यानि कि मध्यम वर्ग भाजपा का सबसे प्रिय वोट बैंक है. २०१४ से अब तक मध्यम वर्ग के लिए अलग अलग बजटों में सरकार रियायत दे भी चुकी है. लेकिन इस बार के बजट में ४०००० रुपये की मानक छूट देने के साथ साथ १९२०० रुपये का यातायात भत्ता और १५००० रुपये के मेडिकल खर्चों के भुगतान को ख़त्म कर दिए जाने की वजह से , मध्यम वर्ग के लोगों को यह लग रहा है मानो यह छूट सिर्फ ५८०० रुपये की ही है, जबकि ऐसा सोचना सही नहीं है. आयकर कानून में इस बार जो ४०००० रुपये की छूट दी गयी है, उसके साथ कोई शर्त नहीं लगी है और वह सभी वेतन भोगियों और पेंशन भोगियों को सामान रूप से मिलने वाली है. इसके विपरीत जो १९२०० रुपये का ट्रांसपोर्ट अलाउंस मिलता था, वह इस शर्त पर मिलता था कि उतनी रकम कर्मचारी ट्रांसपोर्ट पर खर्चा करता होगा. इसी तरह १५००० रुपये के मेडिकल बिल्स देने पर ही मेडिकल के खर्चे मिलते थे

7 reasons why Budget-2018 is a masterstroke by Narendra Modi

The Union Budget 2018 presented by the Finance Minister Arun Jaitley was the last budget of the Narendra Modi Government before the Country again goes to Loksabha Elections in 2019. As was expected, opposition political parties, however, do not endorse this general view and are criticising the budget on the pretext that the middle class taxpayers have been completely ignored in the budget. Before, we proceed further, let us first discuss the benefits given in the budget to the middle class population of the society. 1. Majority people in the middle class can be classified as salaried persons. Standard Deduction of Rs.40000 has been introduced in the budget, which will be available to all persons drawing salary and pension, irrespective of their salary amount. It may also be noted that there are no conditions attached for availing this deduction. Some people are spreading the misinformation that the benefit of Standard Deduction has been taken away by the Government by withdrawing

SALIENT FEATURES OF THE FINANCE BILL 2018

Salient Features of Finance Bill, 2018                        -CA RAJEEV GUPTA 👉1. No change in Tax Rate. All persons including individuals, HUF, Firms and Companies to pay same tax . However Education cess is being increased from 3 to 4 % to be knon as Education and Health cess. 👉2. However  for Domestic Companies having total turnover or  gross receipts  not exceeding  Rs 250 crores in Financial year 2016-17 shall be liable tp pay tax at 25% as against present ceiling of Rs 50 crore in Financial year 2015-16. 👉3. Long term Capital gain exemption under section 10(38) in respect of listed STT paid shares being withdrawn. 👉4. However capital gain up to 31.1.2018 shall not be taxed as cost of acquisition will be taken as Fair Market Value as on 31.1.2018. 👉5. Tax on STT paid long term capital Gain will be 10% under Section 112A. Further such tax will be liable for TDS. 👉6. Standard Deduction of Rs 40,000 for salaried employees. However benefit of transport allowance of

क्या विपक्षी राजनेता पाकिस्तान के इशारे पर देश में जातिवाद का जहर फैला रहे हैं ?

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अभी हाल ही में  महाराष्ट्र के कुछ भागों में विपक्षी राजनेताओं ने जाति वाद का जहर फैलाकर  मोदी सरकार को बदनाम करने की नाकाम कोशिश की. जैसे ही जातीय हिंसा शुरू हुयी, विपक्षी राजनीतिक दल कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक ट्वीट करके मोदी सरकार, भाजपा और आर एस एस को कोसना शुरू कर दिया. ऐसा लग रहा था जैसे यह सब पहले से लिखी गयी पटकथा का नाटकीय प्रस्तुतिकरण किया जा रहा हो. वामपंथियों और कांग्रेसियों के पाले हुए स्वघोषित वरिष्ठ पत्रकारों ने भी आग में घी डालकर जाति वाद के जहर को फैलाने में अपना पूरा योगदान दिया. देश के विपक्षी राजनेता यह सब पहली बार कर रहे हों, ऐसी बात नहीं है. जबसे केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, वे सभी राजनीतिक दल और उनके टुकड़ों पर पलने वाले मीडिया कर्मी इस बात को लेकर दिन रात इसी प्रयास में लगे हुए हैं कि किस तरीके से मोदी सरकार को हटाया जाए और अपनी मनपसंद पार्टी को सत्ता में लाया जाए ताकि जिस तरह पिछले ६० सालों से जिस तरह से देश की जनता को लूट लूट कर बंदरबांट का सिलसिला चल रहा था, उसे आगे भी चलते रहने दिया जाए. रोहित वेमुला के मामले में भी खूब दलित राज

मोदी जी, भ्रष्टाचारियों से नहीं निपटे तो आपकी सरकार निपट जाएगी !

हाल ही मे 2जी घोटाले मे स्पेशल सी बी आई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी करते हुये यह कहा है कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई भी ठोस सुबूत पेश नही कर सका है, लिहाज़ा सभी आरोपियों को बरी किया जाता है. जयललिता और सलमान ख़ान के मामले मे जिस तरह से हमारे देश मे अदालती फैसले आते रहे हैं, उन्हे देखते हुये इस फैसले पर भी कोई बहुत ज्यादा हैरानी किसी को नही होनी चाहिये. समय समय पर मैं अपने लेखों मे यह लिखता रहा हूँ कि सरकार को न्यायालय की अवमानना से सम्बंधित कानून Contempt of Courts Act को या तो पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिये या फिर इसमे इस तरह से संशोधन करना चाहिये ताकि अदालतों द्वारा किये गये गलत फैसलों की समीक्षा और आलोचना का लोकतांत्रिक रास्ता खुला रहे. न्यायपालिका निष्पक्ष रूप से पूरी पारदर्शिता के साथ काम करे, इसकी जिम्मेदारी सरकार की है. सीधे और सरल शब्दों मे कहा जाये तो न्यायपालिका को बेलगाम नही छोड़ा जा सकता अन्यथा जयललिता, सलमान ख़ान और 2 जी जैसे फैसले आते रहेंगे और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी. रोज शाम को टी वी चेनल वाले जिस तरह से हर छोटे-बड़े मुद्दे पर बहस शुरु कर देते हैं,

“कांग्रेस मुक्त भारत” बनाने की तरफ मोदी का एक और कदम

आज से लगभग ९ महीने पहले मार्च २०१७ में मैंने इसी मंच पर एक लेख लिखा था -”दिल्ली ,हिमाचल और गुजरात में भाजपा की जीत लगभग तय”. दिल्ली में उस समय नगर निगम के चुनाव होने थे जिनमे  भाजपा को जीत मिली थी. हाल में ही  हुए चुनावों के बाद गुजरात और हिमाचल में भी भाजपा ने अभूतपूर्व जीत दर्ज़ करके देश को कांग्रेस मुक्त बनाने की तरफ दो और कदम आगे बढ़ा दिए हैं. यहां देखने वाली बात यह है कि भाजपा ने गुजरात में लगातार २२ साल सरकार में रहते हुए लगातार  छठवीं बार यह जीत दर्ज़ की है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस और उसके समर्थक मीडिया ने मोदी और भाजपा को हराने के लिए अपने षड्यंत्रों को रचने  में कोई कसर उठा रखी थी. कांग्रेस ने जाति गत आरक्षण से लेकर साम्प्रदायिकता और देशद्रोह के जहर को भी इन चुनावों में बड़ी बेशर्मी के साथ घोलने की नाकाम कोशिश की थी जिसे गुजरात और हिमाचल की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है. पहले तो कांग्रेस ने विकास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने की बजाये विकास को पागल घोषित कर दिया और  गुजरातियों को जात-पात के आधार पर बांटने के लिए कुछ ऐसे लोगों से  जाति गत आधार पर गठबंधन कर लिया जिन

यही मोदी का “गुजरात मॉडल” है

२०१४ के पहले से ही नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल की चर्चाएं काफी गर्म रहती थीं. जहां मोदी के समर्थक गुजरात मॉडल का हवाला देकर वहां भ्रष्टाचार रहित एवं विकास शील व्यवस्था का गुणगान करते थे, वहीं देश की विपक्षी पार्टियों के नेता मोदी के गुजरात मॉडल पर तंज़ करते नज़र आते थे. उत्तर प्रदेश के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया था कि- “हम यू पी को गुजरात नहीं बनने देंगे”. कमोबेश यही बात हर विपक्षी नेता की जुबान पर भले ही न आयी हो, लेकिन सबके मन में यही डर कहीं न कहीं बैठा हुआ था कि अगर “गुजरात मॉडल” चल पड़ा तो मोदी और देश की जनता के अच्छे दिन आ जाएंगे और उनके लिए सत्ता का स्वाद चखना अगले कई दशकों तक एक दिवा स्वप्न बनकर रह जाएगा. चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले यह समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर यह “गुजरात मॉडल” है किस चिड़िया का नाम: [१] गुजरात में होने वाला विधान सभा का चुनाव स्वतंत्र भारत का पहला ऐसा चुनाव है जिसमे कोई भी नेता गोल जालीदार टोपी पहने दिखाई नहीं दे रहा है. यही गुजरात मॉडल है. [२] भगवान् श्री राम को “काल्पनिक” बताने वाले राहुल गाँधी पिछले दो महीने में २२ बार मंदिरों में जाकर अपनी नाक