क्या विपक्षी राजनेता पाकिस्तान के इशारे पर देश में जातिवाद का जहर फैला रहे हैं ?
अभी हाल ही में महाराष्ट्र के कुछ भागों में विपक्षी राजनेताओं ने जाति वाद का जहर फैलाकर मोदी सरकार को बदनाम करने की नाकाम कोशिश की. जैसे ही जातीय हिंसा शुरू हुयी, विपक्षी राजनीतिक दल कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक ट्वीट करके मोदी सरकार, भाजपा और आर एस एस को कोसना शुरू कर दिया. ऐसा लग रहा था जैसे यह सब पहले से लिखी गयी पटकथा का नाटकीय प्रस्तुतिकरण किया जा रहा हो. वामपंथियों और कांग्रेसियों के पाले हुए स्वघोषित वरिष्ठ पत्रकारों ने भी आग में घी डालकर जाति वाद के जहर को फैलाने में अपना पूरा योगदान दिया. देश के विपक्षी राजनेता यह सब पहली बार कर रहे हों, ऐसी बात नहीं है. जबसे केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, वे सभी राजनीतिक दल और उनके टुकड़ों पर पलने वाले मीडिया कर्मी इस बात को लेकर दिन रात इसी प्रयास में लगे हुए हैं कि किस तरीके से मोदी सरकार को हटाया जाए और अपनी मनपसंद पार्टी को सत्ता में लाया जाए ताकि जिस तरह पिछले ६० सालों से जिस तरह से देश की जनता को लूट लूट कर बंदरबांट का सिलसिला चल रहा था, उसे आगे भी चलते रहने दिया जाए.
रोहित वेमुला के मामले में भी खूब दलित राजनीति की गयी और मोदी सरकार को खूब बदनाम किया गया. जब यह मालूम पड़ा कि रोहित वेमुला दलित था ही नहीं, तो सबके पैरों के नीचे से मानो जमीन खिसक गयी. सवाल यह है कि मीडिया ने किस आधार पर रोहित वेमुला को “दलित” घोषित कर दिया ? कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी तो सारी पोल खुलने के बाद आज भी रोहित वेमुला को दलित बताकर अपनी राजनीति चमकाने के चक्कर में हैं.
हाल ही में हुए गुजरात विधान सभा चुनावों में जाति वाद के जहर को फैलाकर कांग्रेस पार्टी को जो सफलता मिली है, उससे शायद वह और उनकी पार्टी बहुत अधिक जोश में है और उसी के चलते महाराष्ट्र में भी उसी तरह के जहर को फैलाने का प्रयास किया गया. मोदी सरकार अगर इन विपक्षी नेताओं का लिहाज़ करती रही तो २०१९ की गाड़ी अगर भाजपा के हाथ से निकल जाए तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. आज जरूरत इस बात की है कि इन सभी विपक्षी नेताओं को पिछले ६० सालों में किये गए दुष्कर्मों के लिए इस तरह से दण्डित किया जाए जिसे देखकर पाकिस्तान में बैठे इनके आकाओं के भी रोंगटे खड़े हो जाएँ. विपक्षी राजनीतिक दल किस तरह से पाकिस्तान की सलाह और शह पर जाति-वाद का जहर फैला रहे हैं, उसे समझने के लिए हमें कांग्रेसी नेता मणि शंकर अय्यर की पाकिस्तान यात्रा को याद करना चाहिए. मोदी सरकार बनने के कुछ समय बाद कांग्रेसी नेता अय्यर पकिस्तान गए और वहां जाकर गिड़गिड़ाने लगे-“मोदी सरकार को हटाने के लिए हमें आपकी मदद की जरूरत है.” मणि शंकर अय्यर के इस बयान का खुद पी एम् मोदी ने अपनी गुजरात की चुनाव सभाओं में भी जिक्र किया था. सवाल यह है कि एक दुश्मन देश में जाकर उससे एक निर्वाचित सरकार को हटाने की मदद माँगना क्या मोदी सरकार की नज़र में देशद्रोह नहीं है ? अगर देशद्रोह है तो इस तरह के देशद्रोहियों को अभी तक सजा क्यों नहीं दी जा रही है ? कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता चोरी छिपे पाकिस्तान के राजनेताओं और राजनयिकों से मिलते हैं और पकडे जाने पर यह बताते है कि यह एक डिनर मीटिंग थी. मोदी सरकार इस मामले का गंभीरता से संज्ञान लेने की बजाये उसे हल्के में लेकर छोड़ देती है. मोदी सरकार के इस ढुलमुल रवैये से विपक्षी नेताओं के हौसले दिन ब दिन बुलंद होते जा रहे हैं.
मणि शंकर अय्यर ने जब पाकिस्तान में जाकर मोदी सरकार को हटाने के लिए मदद माँगी थी, तो उस समय तो भले ही पाकिस्तान ने कोई ठोस जबाब नहीं दिया हो लेकिन कुछ समय बाद ही पकिस्तान के एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और रणनीतिक विशेषज्ञ सैय्यद तारिक पीरज़ादा ने २५ अगस्त २०१५ को अपने एक ट्वीट में यह सलाह दे डाली -” मोदी लहर को रोकने का सिर्फ एक ही उपाय है-वह यह कि हिन्दुओं को विभिन्न जातियों में बाँट दिया जाए. मुझे उम्मीद है कि अरविन्द केजरीवाल और राहुल गाँधी इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे होंगे.”
पकिस्तान की सलाह पर देश में जाति वाद का जहर फैलाकर अपनी राजनीति चमकाना, देशद्रोह की श्रेणी में आता है या नहीं, इसका फैसला खुद पी एम् मोदी को करना है
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