आम जनता से वसूले गए टैक्स पर हो रही है नेताओं की मौज

समय समय पर सरकार, सरकार के मंत्री और सरकारी विज्ञापन जनता को यह नसीहत देते  नज़र आते हैं कि लोग अपने हिस्से का टैक्स जमा करते रहें. "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" की तर्ज़ पर दी गयी इस नसीहत के पीछे सरकार का तर्क यह होता है कि इस टैक्स के रूप में वसूली हुई रकम से ही सरकार और सरकार की योजनाएं चलती हैं. जहां  एक तरफ सरकार देश की आम जनता से टैक्स वसूली पर जरूरत से ज्यादा जोर देती दिख रही है, वहीं खुद राजनेता बिना कोई टैक्स दिए किस तरह से जनता से वसूले गए टैक्स पर मौज काट रहे हैं, उसे देख-सुनकर आप हैरान हो जाएंगे.

भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों ने देश के टैक्स कानून इस तरह से बनाये हुए हैं, कि मध्यम वर्ग जनता  और व्यापारी हमेशा टैक्स की मार झेलते रहें  और भ्रष्ट नेताओं और अफसरों की हमेशा ही मौज लगी रहे. आइए देखे नेताओं और अफसरों द्वारा रची गयी  इस साज़िश को कानूनी रूप देकर किस तरह से जनता को लगातार लूटा जा रहा है :

[] आयकर कानून की धारा १०() के तहत कृषि से होने वाली आमदनी को पूरी तरह से आयकर कानून के दायरे से बाहर रखा गया है. सरकार दिखावा यह करती है कि वह किसानों की हितैषी है और किसानों को आयकर के दायरे से बाहर रखना चाहती है. लेकिन हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है. देश की  ज्यादातर कृषि भूमि पर भ्रष्ट नेताओं और अफसरों ने कब्जा किया हुआ है और वे सब के सब "नकली किसान" बनकर अपने सारे काले धन को "कृषि से होने वाली आमदनी " दिखाकर उसे सफ़ेद धन बनाने में पिछले ७० सालों से लगे हुए हैं. कृषि से होने वाली आमदनी को आयकर के दायरे से बाहर रखने की सिर्फ यही वजह है, और कोई नहीं.

[] आयकर कानून की धारा 10(13A ) के तहत सभी राजनीतिक पार्टियों  को मिलने वाले  सभी तरह के चंदे और सभी तरह की आमदनी पूरी तरह से आयकर के दायरे से बाहर रखी गयी है.
[] आयकर कानून की धारा १०(१७) के तहत सभी विधायकों और संसद सदस्यों को मिलने वाले भत्तों को भी पूरी तरह आयकर के दायरे से बाहर रखा गया है.

गौर करने वाली बात यह है कि जिस आमदनी पर ऊंची दरों पर आयकर लगना चाहिए, उसे तो पूरी तरह से आयकर के दायरे से बाहर कर दिया गया है और जिस मध्यम वर्ग जनता को टैक्स में राहत मिलनी चाहिए, उसके  पीछे सरकार और सरकार के अधिकारी हाथ धोकर पीछे पड़े हुए हैं. सरकार आज की तारीख में जिस तरह से  इनकम टैक्स मध्यम वर्गीय जनता और व्यापारियों से वसूल रही है, अगर उसी तरह से  टैक्स की वसूली नेताओं और अफसरों से भी करनी शुरू कर दे तो टैक्स से होने वाली सरकारी आमदनी में लगभग दस गुना इज़ाफ़ा हो सकता है.

पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि भ्रष्ट नेताओं और अफसरों का यह जो गठजोड़ इस देश में पिछले ७० सालों से चल रहा है, क्या वह कभी ऐसा होने देगा ? सभी राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता इस लूट पर पिछले ७० सालों से पूरी तरह खामोश हैं और सब इस बात पर सहमत लगते हैं कि यह लूट आगे भी चलती रहनी चाहिए. काले धन को ख़त्म करने पर ज़ुबानी जमा खर्च करने वाली सरकारें ,आयकर कानून से क्या उन धाराओं को हटाने का साहस कभी कर पाएंगी, जिनकी वजह से देश में सबसे अधिक काला धन पैदा हो रहा है ? अभी तक तो मोदी सरकार ने भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है.


(लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मामलों के एक्सपर्ट हैं.)

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