सिर्फ CA की नहीं, वकीलों की भी खबर ले मोदी सरकार

बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया का यह खुद मानना है कि लगभग ३० प्रतिशत से ऊपर वकील जाली डिग्री पर काम कर रहे हैं. बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया की इस टिप्पणी को इस सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए कि ज्यादातर राजनेताओं के पास वकालत की डिग्री ही होती है. आप नेता और आप सरकार में कानून मंत्री जितेंद्र तोमर की डिग्री भी फ़र्ज़ी पायी गयी थी. नोट बंदी के दौरान भी दिल्ली के एक पॉश इलाके में एक नामी वकील के यहां दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के छापे में १२५ करोड़ की अघोषित संपत्ति के खुलासे के साथ साथ १३.६५  करोड़ रुपये के पुराने नोट और २.६ करोड़ ने नए नोट बरामद हुए थे. समय समय पर वकील मोटी और भारी भरकम फीस लेकर देशद्रोहियों, आतंकवादियों और बलात्कारियों के मुक़दमे भी लड़ते रहे हैं. यह सब लिखने का मेरा उद्देश्य वकीलों की छवि खराब करने का नहीं है. यह सब मैंने इसलिए लिखा है कि वर्तमान सरकार हो या फिर पिछली सरकारें, सब की सब सरकारें, वकीलों की सभी हरकतों पर या तो मौन रहती हैं या फिर बेहद नरम रवैया अख्तियार करती हैं, जिसकी सीधी साधी वजह यही है कि ज्यादातर विधायक, संसद सदस्य और मंत्री इसी वकालत के प्रोफेशन से आते हैं और इसीलिए देश में जितने भी कानून बनाये जाते हैं, उनमे इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि किसी को भी कुछ हो जाए, वकीलों के ऊपर जरा से भी आंच न आने पाए.

अब जरा एक नज़र वकालत से काफी मिलते जुलते प्रोफेशन CA यानि चार्टर्ड अकाउंटेंट पर भी डाल लेते हैं. यह सभी को मालूम है कि CA की डिग्री लेना सबसे मुश्किल काम है और १९४९ से  लेकर आज तक एक भी CA की डिग्री फ़र्ज़ी नहीं पायी गयी है. वर्तमान सरकार में मंत्री  पीयूष गोयल और सुरेश प्रभु दोनों ही प्रोफेशन से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. CA  और वकील दोनों ही कंपनी कानून और कर कानून से सम्बंधित मामलों में अपनी सेवायें देते हैं. इन दोनों के काम में बस यही समानता है .  एक ऑडिट का काम ऐसा है जो CA  के अलावा और कोई नहीं कर सकता है. उसी तरह अदालतों में भी सिर्फ वकील ही पेश हो सकता है, CA नहीं.  ट्रिब्यूनल में  CA और वकील  दोनों लोग पेश हो सकते हैं. यह सब कुछ लिखने का उद्देश्य भी यही है ताकि यह मालूम हो सके कि सारे नियम, कायदे और कानून देश में राजनेताओं ने इस तरह से बनाये हैं कि वकीलों का हित हर जगह सर्वोपरि रहे. देश में जब  सर्विस टेक्स लगाया गया तो CA पर सबसे पहले लगा दिया गया और वकीलों पर आज भी सर्विस टेक्स नहीं है. CA  को नियंत्रित करने के लिए बहुत सख्त कोड ऑफ़ कंडक्ट है जिसे इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया की अनुशासन समिति बहुत सख्ती से लागू करती है. इस अनुशासन समिति के फैसले इतने सख्त होते हैं, जिन्हे जब हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो वहां से CA को आम तौर पर राहत मिल जाती है. वकीलों का अगर कोई कोड ऑफ़ कंडक्ट होता तो बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया को यह कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती कि लगभग ३० प्रतिशत से ऊपर वकीलों की डिग्रियां फ़र्ज़ी हैं.

अब आते हैं, मुद्दे की बात पर. खबर यह आ रही है कि सरकार प्रीवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्डरिंग एक्ट [PMLA] में संशोधन करके CA के लिए उसमे सजा का प्रावधान करने जा रही है. मनी लॉन्डरिंग को सीधी साधी भाषा में "दो नंबर के पैसे को एक नंबर में बदलने की प्रक्रिया" कहा जाता है. इस बात में कोई शक नहीं है कि हर प्रोफेशन में कुछ न कुछ लोग गलत काम करते हैं. CA प्रोफेशन के कुछ  लोग भी  यह काम जरूर करते होंगे लेकिन इन कारगुजारियों में जितने लोग CA प्रोफेशन से होंगे उससे ज्यादा नहीं तो कम से कम उतने ही लोग वकालत के प्रोफेशन से  भी होंगे.

ध्यान देने वाली बात यह है कि काले धन को सफ़ेद धन बनाने का काम (मनी लॉन्डरिंग का काम) कंपनी कानून और कर कानून की मदद से किया जाता है. इन दोनों कानूनों में अपनी सेवायें CA  भी  देते हैं और वकील भी देते हैं. मनी लॉन्डरिंग करते हुए अगर कोई CA पकड़ा गया है तो वकील भी पकड़ा गया है. एक उदहारण तो मैं इस लेख के आरम्भ में ही दे चुका हूँ. अगर सरकार की मंशा यह है कि मनी लॉन्डरिंग कानून में संसोधन करके सिर्फ CA के लिए सजा का प्रावधान कर दिया जाए, तो उसका सीधा सीधा मतलब यही होगा कि एक ही अपराध अगर CA  करेगा तो उसे सजा मिलेगी और उसी अपराध को अगर वकील करेगा तो उसे सजा नहीं मिलेगी. भेदभाव पर आधारित इस व्यवस्था को पिछली कांग्रेस सरकारों ने पल्ल्वित-पोषित किया था जिसकी वजह से कांग्रेस पार्टी का खुद अपना वजूद खतरे में पड़ा हुआ है. मोदी सरकार अगर कांग्रेस के जमाने में हुयी इन  गलतियों को सुधारने की बजाये,  खुद उसी की तरह काम करेगी तो इसमें कोई शक नहीं है कि आने वाले समय में  मोदी सरकार का हाल कांग्रेस पार्टी से भी बदतर होगा.

(लेखक एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ है)












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