क्या NDTV की दुकान अब बंद होने वाली है ?
विवादों में रहने वाले न्यूज़ चैनल NDTV के मालिक और चेयरपर्सन प्रणय रॉय और राधिका रॉय के
दिल्ली और देहरादून स्थित ठिकानों पर सी बी
आई ने एक बैंक धोखाधड़ी के मामले में छापेमारी की है. NDTV द्वारा कानून के साथ खिलवाड़
करने का यह पहला मामला नहीं है. FEMA कानून के उल्लंघन के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय
की २०१५ से ही इस चैनल की कारगुजारियों पर कड़ी नज़र थी. २०१६ में SEBI ने भी टेकओवर
नियमों के उल्लंघन के सिलसिले में चैनल को एक नोटिस जारी किया था.
बैंक धोखाधड़ी की जांच सी बी आई ने शुरू कर दी है और यह धोखाधड़ी कितनी
बड़ी है, इसका पूरा खुलासा भी जांच पूरी होने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन धोखाधड़ी की
जांच के नतीजे सिर्फ यह तय कर सकते हैं कि
कुल मिलाकर कितनी बड़ी वित्तीय धोखाधड़ी इस चैनल के मालिकों ने अंजाम दी हैं, यह बात
तो पहले ही तय हो चुकी है कि वित्तीय गड़बड़ियां हुईं हैं. किसी और देश में अगर इस तरह
का वाकया हुआ होता तो अब तक इस चैनल का लाइसेंस वहां की सरकार ने रद्द कर दिया होता.
लेकिन हमारे देश में न्याय की प्रक्रिया इतनी सुस्त, ढीली और लचीली है कि सभी अपराधियों को इससे बच
निकलने का इतना ज्यादा यकीन रहता है,
कि वे रात के दो बजे भी सुप्रीम
कोर्ट के बाहर जाकर खड़े हो जाते हैं. सलमान खान और जयललिता के मामले में किस तरह के
अदालती फैसले आये थे, उसे देश क़ी जनता देख ही चुकी है.
अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि पिछली सरकारों के समय में इस चैनल पर
कार्यवाही क्यों नहीं हुईं और किसी आर्थिक घोटाले और गड़बड़ी के चलते यह चैनल अब तक कैसे
चल रहा है ? यह सभी जानते हैं कि इस चैनल पर
किस तरह की ख़बरें परोसी जाती रही हैं. संघ, भाजपा और राष्ट्रवादी विचारधारा का जमकर
विरोध करना ही इस चैनल का मुख्य उद्देश्य रहा है. इस देश में हर किसी को मानों इस बात का लाइसेंस मिला हुआ था कि अगर वह
संघ,भाजपा,मोदी और राष्ट्रवाद का जमकर विरोध करेगा तो उसके सात क्या सौ खून भी माफ़ कर दिए जाएंगे और अगर उसके खिलाफ कानून कोई
कार्यवाही करेगा तो उसके समर्थक उसे "बदले क़ी कार्यवाही" या फिर "मीडिया
की आज़ादी" पर हमला बताकर उसके द्वारा अंजाम दिए गए वित्तीय घोटाले की गंभीरता को कम करने का भरसक प्रयास
करेंगे.
पत्रकारिता क़ी आड़ में चल रहे NDTV जैसे गोरखधंधों पर अब मोदी सरकार ने नकेल कसनी शुरू
क़ी है तो "अभिव्यक्ति क़ी आज़ादी" और "मीडिया क़ी आज़ादी" का शोर मचाने
वालों ने अपना झुनझुना बजाना शुरू कर दिया है. इन लोगों क़ी माने तो "पत्रकारिता
और मीडिया क़ी आज़ादी": क़ी आड़ में सभी तरह क़ी गड़बड़ियां और घोटाले भी जायज हैं. लेकिन इन लोगों का दुर्भाग्य है कि समय इनके साथ
नहीं है. जैसी मस्ती और आज़ादी इन्होने पिछली सरकारों के दौर में भोगी थी, वह इनसे छिन
चुकी है, इनके चैनल का लाइसेंस कब छिनेगा और कब यह "ख़बरों की दुकान" यकायक
बंद हो जाएगी, यह आने वाला समय ही बताएगा.
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