Monday, July 10, 2017

मोदी को हराने में हमारी मदद करो

कुछेक साल पहले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद और मणि शंकर अय्यर पाकिस्तान की यात्रा पर गए थे और अपनी यात्रा के दौरान वे दोनों पकिस्तान सरकार से यह गिड़गिड़ा रहे थे कि मोदी को हराने में पाकिस्तान उनकी पार्टी की मदद करे. भारत के किसी भी राज्य में चुनाव हो रहे हों, उस समय पकिस्तान किस तरह से सीमा पर सीज़फायर का उल्लंघन करके भारत  सरकार को परेशान करने की नाकाम कोशिश  करता है , वह एक तरह से कांग्रेस पार्टी की मदद ही समझी जानी चाहिए. दरअसल अपने इन्ही दुष्कर्मों के चलते कांग्रेस पार्टी  राजनीति में एकदम हाशिये पर आ चुकी है लेकिन कांग्रेस पार्टी और उसके नेता इस संकट से उबरने की बजाये और नए दुष्कर्म करके राजनीतिक दलदल में फंसते जा रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी और उसके नेता शायद यह समझते हैं कि वे किसी भी दुशमन देश की सरकार से मोदी को हराने के लिए मदद मांगेंगे तो देश की जनता बहुत खुश होगी और उन्हें वोटों से मालामाल कर देगी लेकिन अब देश की जनता पहले से बहुत ज्यादा समझदार हो चुकी है और कांग्रेस पार्टी  और उसके नेताओं की इन देशद्रोही हरकतों का गंभीरता से संज्ञान लेकर इस पार्टी को समुचित दंड देती रहती है. आज अगर भाजपा की केंद्र के अलावा ज्यादातर राज्यों में सरकारें बनी हुयी हैं, उसका मुख्य कारण यह भी है कि लोग देशद्रोह की राजनीति से अब ऊब चुके हैं और कांग्रेस पार्टी के साथ दुर्भाग्यवश ऐसी स्थिति बनी हुयी है कि उसे किसी और तरीके की राजनीति करना आता ही नहीं है. जनता के सामने और कोई राष्ट्रवादी विकल्प न होने की वजह से भाजपा को ही अधिकांश देशभक्त जनता का वोट जाना लगभग तय माना जाता है और उसी के चलते भाजपा की सरकारें लगभग सभी राज्यों में बनती जा रही हैं.
अब खबर यह आ रही है कि कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की चीनी राजदूत से गुपचुप मुलाक़ात की खबर पहले तो चीनी दूतावास  की वेबसाइट पर पोस्ट की गयी और फिर उसे आनन फानन में हटा भी लिया गया. राहुल गाँधी के चीनी राजदूत से मिलने में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन जिस तरह से राहुल गाँधी की चीनी राजदूत से मिलने की खबर पर संशय बना हुआ है और उसे शायद छिपाने का प्रयास भी किया जा रहा है, उससे देश की सवा सौ करोड़ जनता के मन में यह सवाल खड़ा हो गया है कि कहीं राहुल गाँधी भी तो सलमान खुर्शीद और मणि शंकर अय्यर के क़दमों पर तो नहीं चल रहे हैं ? दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस पार्टी ने इस विवादित मुलाक़ात पर सफाई देने की बजाये इस मुलाक़ात को ही सिरे से नकार दिया है. कांग्रेस पार्टी इस मुलाक़ात को छिपाने का जितना ज्यादा प्रयास कर रही है, उतने ही अधिक सवाल इस पार्टी और नेताओं पर उठ रहे हैं, जिनका आज नहीं तो कल जबाब तो देना ही पड़ेगा. जबाब कांग्रेस पार्टी की तरफ से नहीं आया तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में जनता ही इस पार्टी को अपना जबाब दे देगी. इस लेख के लिखते लिखते खबर यह भी आ रही है कि कांग्रेस पार्टी ने जबरदस्त यू-टर्न लेते हुए इस चोरी छिपे की गयी मुलाक़ात को कबूल कर लिया है लेकिन मुलाक़ात क्यों हुयी और किस उद्देश्य के लिए की गयी, उस पर अभी भी चुप्पी लगाई हुयी है.

Tuesday, July 4, 2017

ICAI फाउंडेशन डे पर मोदी जी का भाषण और मीडिया की गलत बयानी

हर साल १ जुलाई को इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया (ICAI) का स्थापना दिवस मनाया जाता है. १९४९ में इसी दिन ICAI की स्थापना हुई थी. यह फॉउंडेशन डे हर साल मनाया जाता है और सरकार के कोई न कोई वरिष्ठ मंत्री इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर आते रहे हैं. इस बार पी एम् मोदी खुद इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे, जिसके चलते इस कार्यक्रम में न सिर्फ मोदी जी खुद शरीक हुए, बल्कि वित्त मंत्री अरुण जेटली समेत मोदी सरकार के लगभग दर्ज़न भर मंत्री, कई राज्यों के मुख्य मंत्री और वित्त मंत्रालय के कई बड़े अधिकारी भी मौजूद थे. इत्तेफ़ाक़ से १ जुलाई के दिन ही GST लागू होने की वजह से मोदी सरकार ने इस मौके का पूरा फायदा उठाने की कोशिश भी की. अपने एक घंटे के भाषण में पी एम मोदी ने क्या कहा, वह अलग से बहस का मुद्दा हो सकता है और उस पर टिप्पणी करना इस लेख का उद्देश्य नहीं है.
मेन स्ट्रीम मीडिया की घटती विश्वसनीयता पर मैंने पहले भी कई बार सवाल उठाये हैं. इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग को लेकर एक बार फिर मीडिया की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में आ गयी है. दरअसल इस कार्यक्रम में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और स्टूडेंट्स को निमंत्रण पत्र भेजकर बुलाया गया था. इंदिरा गाँधी स्टेडियम में जितनी सीटें थीं, उतने ही निमंत्रण पत्र भेजे गए थे. स्टेडियम में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का प्रवेश गेट नंबर ४ से होना था और स्टूडेंट्स का प्रवेश गेट नंबर ७ और ८ से होना था. कार्यक्रम का आयोजन ICAI की सेन्ट्रल कौंसिल ने किया था. सभी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और स्टूडेंट्स को यह सलाह भी दी गयी थी कि वे लोग स्टेडियम में अपनी अपनी सीटें दोपहर ३ बजे तक जरूर ग्रहण कर लें. जब तय कार्यक्रम के मुताबिक़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और स्टूडेंट्स अपने हाथ में निमंत्रण पत्र लेकर स्टेडियम पहुंचे तो आयोजकों ने स्टूडेंट्स के लिए तो गेट नंबर ७ और ८ से प्रवेश करने दिया लेकिन किसी भी चार्टर्ड अकाउंटेंट को स्टेडियम के अंदर ही नहीं जाने दिया. चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ३ बजे से लेकर ५ बजे तक गेट नंबर ४ पर लाइन लगाकर गेट खुलने का इंतज़ार करते रहे लेकिन जब आखिर तक गेट नहीं खुला तो कुछ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने वहां पर शोर शराबा भी किया और गेट पर लगे बैनर को भी फाड़ डाला. कुछ नए और अति उत्साही चार्टर्ड अकाउंटेंट गेट के ऊपर से कूदकर स्टेडियम में चले गए जिसका अंदर पुलिस और सिक्योरिटी ने विरोध भी किया और इसके चलते झगडे – फसाद जैसा माहौल बन गया. यह सब ६८ साल के इतिहास में पहली बार हो रहा था. मैं खुद एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हूँ और वहां गेट संख्या ४ पर खड़ा कार्यक्रम के आयोजकों की इस “सोची समझी बदइंतज़ामी” को देखकर स्तब्ध था. आखिर में हुआ यही कि ICAI फॉउंडेशन डे बिना किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट के ही पी एम् मोदी, उनके मंत्रियों और अफसरों की मौजूदगी में मना लिया गया. गेट नंबर ४ पर अपने हाथों में निमंत्रण पत्र लिए खड़े लगभग ३००० चार्टर्ड एकाउंटेंट्स कार्यक्रम में शिरकत किये बिना ही अपने अपने घर वापस लौट आये. स्टेडियम के अंदर सिर्फ वे ही चार्टर्ड अकाउंटेंट “पिछले दरवाज़े” से पहुंचने में कामयाब हुए थे, जो कि ICAI सेंट्रल कौंसिल मेंबर्स के दोस्त, रिश्तेदार या जान पहचान वाले रहे होंगे. सेंट्रल कौंसिल के सदस्य खुद भी चार्टर्ड अकाउंटेंट होते हैं.
यहां जो कुछ भी मैंने लिखा है, मीडिया में वह सब कुछ तो नहीं बताया गया लेकिन इसी घटना की एक मनगढंत कहानी बनाकर उसे खबर के तौर पर पेश कर दिया गया. ख़बरों में यह बताया गया कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स GST के खिलाफ थे, उसका विरोध कर रहे थे, उसी विरोध के चलते उन्होंने शोर शराबा और झगड़ा फसाद किया और गेट नंबर ४ पर लगे बैनर को भी फाड़ डाला. देश में कोई भी टेक्स लगे, उससे तो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को फायदा ही होता है क्योंकि उनसे ज्यादा लोग सलाह लेने आते हैं, फिर वे लोग उसका विरोध क्यों करेंगे? इस बात को सरकार भी मानती है कि कोई भी कर प्रणाली चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकती है. इस मनगढंत खबर को मेन स्ट्रीम मीडिया किसके इशारे पर दिखा रहा था, यह एक बड़ा सवाल है.
इस घटना और कार्यक्रम मैं खुद एक प्रत्यक्षदर्शी के तौर पर मौजूद था, मुझे मीडिया में आयी इस गलत खबर पर हैरानी भी हुई और साथ ही साथ यह भी लगा कि मीडिया की विश्वसनीयता देश में पूरी तरह सवालों के घेरे में आ चुकी है जिसे अगर जल्द ही नही सुधारा गया तो उसका सबसे ज्यादा नुक्सान मेन स्ट्रीम मीडिया को ही होने वाला है. क्योंकि इसी गलत खबर को कई अलग अलग मीडिया वालों ने छापा और दिखाया, उससे यह भी बात साबित होती है कि यह गलत बयानी मीडिया ने किसी न किसी के इशारे पर ही की होगी.

Friday, June 23, 2017

कश्मीरी आतंकवादियों के आगे घुटने टेकती मोदी सरकार

कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने एक बार फिर अपनी दरिंदगी दिखाते हुए पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी को निर्ममता से पीट पीट कर मार डाला है. खबर यह है क़ि जब यह पाकिस्तानी दरिंदे पकिस्तान के समर्थन में नारे लगा रहे थे, तो पुलिस का वरिष्ठ अधिकारी उनकी वीडियो बना रहा था. बस इसी बात से बौखलाकर इन आतंकवादियों ने अपने वहशीपन की सभी सीमायें लांघते हुए इस पुलिस अधिकारी को पीट पीट कर मार डाला. कश्मीर के लिए यह कोई नयी घटना नहीं है- यहां अक्सर सुरक्षा बल के सैनिक और पुलिस अधिकारी पाकिस्तान समर्थक कश्मीरी आतंकवादियों के हाथों लगभग हर रोज ही मौत के घाट उतार दिए जाते हैं और जम्मू-कश्मीर की सत्ता लोलुप निकम्मी सरकार वहशी दरिंदों के हाथों पुलिस और सेना के जवानो की इस हत्या पर चुप्पी लगाए बैठी रहती है.

प्रदेश सरकार और केंद्र में बैठी मोदी सरकार ने पाकिस्तान समर्थक कश्मीरी आतंकवादियों के प्रति जो कायरता पूर्ण रवैया अख्तियार किया हुआ है, उसके चलते नेताओं के छोड़कर कश्मीर में कोई भी देशभक्त व्यक्ति सुरक्षित नहीं है. नेता भी इसलिए जिन्दा घूम रहे हैं क्योंकि उन्हें जनता के खर्चे पर सरकारी सुरक्षा मिली हुयी है. अगर इन नेताओं से यह सुरक्षा वापस ले ली जाए तो इन कश्मीरी आतंकवादियों का पहला शिकार यह लोग खुद होंगे.

२०१४ में मोदी जी ने केंद्र सरकार में जैसे ही सत्ता संभाली थी, प्रकृति के अपने इन्साफ को आगे बढ़ाते हुए कश्मीर घाटी को एक भयंकर जलजले के हवाले कर दिया था, जिसमे सभी पाकिस्तानी आतंकवादियों की मौत लगभग तय मानी जा रही थी. लेकिन मोदी सरकार ने नेशनल डिसास्टर रिस्पांस फोर्स(NDRF) की टीमें  कश्मीर भेजकर इन सभी पाकिस्तानी आतंकवादियों को बचा लिया. मोदी जी को यह लगा था क़ि जहरीले साँपों को मीठा दूध पिलाने से साँपों के जहर कम हो जाएगा और वे काटना बंद कर देंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और जिन पाकिस्तान समर्थक  कश्मीरी आतंकवादियों को NDRF, सेना और पुलिस बलों की टीमों ने अपनी जान पर खेलकर बचाया था, यह अहसानफरामोश  दरिंदे अपने बचाने वालों को ही पीट पीट कर मार रहे हैं. प्रदेश और केंद्र की सरकार अपनी पूरी बेशर्मी के साथ यह तमाशा देख रही है और हाथ पर हाथ धरे बैठी हुयी है. 

मोदी सरकार इन पाकिस्तान समर्थक कश्मीरी आतंकवादियों के नरसंहार के लिए सुरक्षा बालों को खुली छूट न देकर कब तक सैनिको और पुलिस वालों की हत्याओं का शर्मनाक तमाशा देखती रहेगी, देश की जनता यह सवाल पिछले तीन सालों से कर रही है, जिसका जबाब मोदी सरकार को अगले दो सालों में देना है. सरकार की इस घुटना टेको नीति और कायरता से इस देश की जनता अब ऊब चुकी है. कश्मीरी आतंकवादियों का तुरंत नरसंहार शुरू नहीं हुआ तो केंद्र में बैठी मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू करने में भी जनता देर नहीं लगाएगी.





Tuesday, June 20, 2017

आम जनता से वसूले गए टैक्स पर हो रही है नेताओं की मौज

समय समय पर सरकार, सरकार के मंत्री और सरकारी विज्ञापन जनता को यह नसीहत देते  नज़र आते हैं कि लोग अपने हिस्से का टैक्स जमा करते रहें. "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" की तर्ज़ पर दी गयी इस नसीहत के पीछे सरकार का तर्क यह होता है कि इस टैक्स के रूप में वसूली हुई रकम से ही सरकार और सरकार की योजनाएं चलती हैं. जहां  एक तरफ सरकार देश की आम जनता से टैक्स वसूली पर जरूरत से ज्यादा जोर देती दिख रही है, वहीं खुद राजनेता बिना कोई टैक्स दिए किस तरह से जनता से वसूले गए टैक्स पर मौज काट रहे हैं, उसे देख-सुनकर आप हैरान हो जाएंगे.

भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों ने देश के टैक्स कानून इस तरह से बनाये हुए हैं, कि मध्यम वर्ग जनता  और व्यापारी हमेशा टैक्स की मार झेलते रहें  और भ्रष्ट नेताओं और अफसरों की हमेशा ही मौज लगी रहे. आइए देखे नेताओं और अफसरों द्वारा रची गयी  इस साज़िश को कानूनी रूप देकर किस तरह से जनता को लगातार लूटा जा रहा है :

[] आयकर कानून की धारा १०() के तहत कृषि से होने वाली आमदनी को पूरी तरह से आयकर कानून के दायरे से बाहर रखा गया है. सरकार दिखावा यह करती है कि वह किसानों की हितैषी है और किसानों को आयकर के दायरे से बाहर रखना चाहती है. लेकिन हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है. देश की  ज्यादातर कृषि भूमि पर भ्रष्ट नेताओं और अफसरों ने कब्जा किया हुआ है और वे सब के सब "नकली किसान" बनकर अपने सारे काले धन को "कृषि से होने वाली आमदनी " दिखाकर उसे सफ़ेद धन बनाने में पिछले ७० सालों से लगे हुए हैं. कृषि से होने वाली आमदनी को आयकर के दायरे से बाहर रखने की सिर्फ यही वजह है, और कोई नहीं.

[] आयकर कानून की धारा 10(13A ) के तहत सभी राजनीतिक पार्टियों  को मिलने वाले  सभी तरह के चंदे और सभी तरह की आमदनी पूरी तरह से आयकर के दायरे से बाहर रखी गयी है.
[] आयकर कानून की धारा १०(१७) के तहत सभी विधायकों और संसद सदस्यों को मिलने वाले भत्तों को भी पूरी तरह आयकर के दायरे से बाहर रखा गया है.

गौर करने वाली बात यह है कि जिस आमदनी पर ऊंची दरों पर आयकर लगना चाहिए, उसे तो पूरी तरह से आयकर के दायरे से बाहर कर दिया गया है और जिस मध्यम वर्ग जनता को टैक्स में राहत मिलनी चाहिए, उसके  पीछे सरकार और सरकार के अधिकारी हाथ धोकर पीछे पड़े हुए हैं. सरकार आज की तारीख में जिस तरह से  इनकम टैक्स मध्यम वर्गीय जनता और व्यापारियों से वसूल रही है, अगर उसी तरह से  टैक्स की वसूली नेताओं और अफसरों से भी करनी शुरू कर दे तो टैक्स से होने वाली सरकारी आमदनी में लगभग दस गुना इज़ाफ़ा हो सकता है.

पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि भ्रष्ट नेताओं और अफसरों का यह जो गठजोड़ इस देश में पिछले ७० सालों से चल रहा है, क्या वह कभी ऐसा होने देगा ? सभी राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता इस लूट पर पिछले ७० सालों से पूरी तरह खामोश हैं और सब इस बात पर सहमत लगते हैं कि यह लूट आगे भी चलती रहनी चाहिए. काले धन को ख़त्म करने पर ज़ुबानी जमा खर्च करने वाली सरकारें ,आयकर कानून से क्या उन धाराओं को हटाने का साहस कभी कर पाएंगी, जिनकी वजह से देश में सबसे अधिक काला धन पैदा हो रहा है ? अभी तक तो मोदी सरकार ने भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है.


(लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मामलों के एक्सपर्ट हैं.)

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