Thursday, December 21, 2017

मोदी जी, भ्रष्टाचारियों से नहीं निपटे तो आपकी सरकार निपट जाएगी !

हाल ही मे 2जी घोटाले मे स्पेशल सी बी आई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी करते हुये यह कहा है कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई भी ठोस सुबूत पेश नही कर सका है, लिहाज़ा सभी आरोपियों को बरी किया जाता है. जयललिता और सलमान ख़ान के मामले मे जिस तरह से हमारे देश मे अदालती फैसले आते रहे हैं, उन्हे देखते हुये इस फैसले पर भी कोई बहुत ज्यादा हैरानी किसी को नही होनी चाहिये. समय समय पर मैं अपने लेखों मे यह लिखता रहा हूँ कि सरकार को न्यायालय की अवमानना से सम्बंधित कानून Contempt of Courts Act को या तो पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिये या फिर इसमे इस तरह से संशोधन करना चाहिये ताकि अदालतों द्वारा किये गये गलत फैसलों की समीक्षा और आलोचना का लोकतांत्रिक रास्ता खुला रहे. न्यायपालिका निष्पक्ष रूप से पूरी पारदर्शिता के साथ काम करे, इसकी जिम्मेदारी सरकार की है. सीधे और सरल शब्दों मे कहा जाये तो न्यायपालिका को बेलगाम नही छोड़ा जा सकता अन्यथा जयललिता, सलमान ख़ान और 2 जी जैसे फैसले आते रहेंगे और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी. रोज शाम को टी वी चेनल वाले जिस तरह से हर छोटे-बड़े मुद्दे पर बहस शुरु कर देते हैं, वे सब भी  इस तरह् के मामलों पर बहस करने की बजाय ,न्यायालय की अवमानना के डर से चुप्पी लगाकर बैठ जायेंगे. किसी भी लोकतंत्र मे इससे अधिक शर्मनाक बात और कोई नही हो सकती है.

यह तो हुई न्यायालय की निष्पक्षता और उसकी पारदर्शिता को सुनिश्चित करने की बात जिस पर हमारी मोदी सरकार भी कोई ठोस कदम उठाने मे अभी तक पूरी तरह से नाकाम रही है. पिछले 60 सालों के कुशासन मे जिस तरह से भ्रष्टाचार चल रहा था और जिस की दुहाई देकर मोदी सरकार को 2014 मे सत्ता मे आई थी, देखा जाये तो किसी भी भ्रष्टाचारी को मोदी सरकार आज तक सज़ा दिलवाने मे पूरी तरह नाकाम रही है. मोदी सरकार को सत्ता मे आये हुये साढ़े तीन साल से ऊपर का समय हो चुका है लेकिन ऐसा नही लगता कि बाकी के बचे हुये अपने शासन काल मे यह सरकार किसी भ्रष्टाचारी को ठिकाने लगा पायेगी. बिना किसी ठोस इच्छा शक्ति के ना तो भ्रष्टाचारियों का कुछ बिगड़ने वाला है और ना ही उन देशद्रोहियों का, जिन पर मोदी सरकार पूरी तरह से चुप्पी लगाये बैठी हुई है. शायद मोदी जी इस गलतफ़हमी मे हैं कि सिर्फ “सबका साथ-सबका विकास” उनकी 2019 मे भी नैया पार करा देगा लेकिन ऐसा होना संभव नही है. कोई भी सरकार जन-आकांक्षाओं के विरुद्ध काम करके बहुत समय तक सत्ता मे नही रह सकती. सिर्फ विकास के मुद्दे पर मोदी सरकार सत्ता मे नही आई थी. जनता ने मोदी सरकार को इस लिये चुना था कि मोदी सरकार भ्रष्टाचारियों, देशद्रोहियों और आतंकवादियों पर कडी कार्यवाही करेगी और उसके साथ देश मे इस तरह् का माहौल तैयार करेगी जिससे सबका विकास सुनिश्चित हो सके.


2 जी घोटाले मे जिस तरह् से सभी आरोपी बरी कर दिये हैं, उसे देखकर यही लगता है कि न्यायपालिका के साथ साथ यह सी बी आई और मोदी सरकार की भी बहुत बड़ी नाकामी है. सी बी आई की सीधी रिपोर्टिंग प्रधान मंत्री कार्यालय को है. लिहाज़ा सी बी आई के निकम्मेपन से पी एम मोदी अपना पल्ला नही झाड़ सकते हैं. इस 2 जी मामले को अगर एक बार छोड़ भी दें तो हम यही देखते हैं कि किसी और भ्रष्टाचारी या देशद्रोही को पिछले साढ़े तीन सालों मे सज़ा नही हुई है. कश्मीर मे हुरियत के आतंकवादी हों या फिर अब्दुल्ला बाप बेटे-यह सभी अपनी देश विरोधी गतिविधियों मे लगे हुये हैं और मोदी जी की उदारता का मजाक उड़ा रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के नेता पाकिस्तान मे जाकर खुले आम वहां की सरकार से कहते है कि मोदी को हटाने मे हमारी मदद करो, लेकिन ऐसी देशद्रोह की घटनाओं का मोदी जी अपनी चुनाव सभाओं मे तो जिक्र करते हैं, उस पर किसी भी तरह की ठोस कार्यवाही करके देशद्रोहियों को अपने अंज़ाम तक पहुंचाने का लेशमात्र भी प्रयास करते नही दिखते हैं. कभी कांग्रेस पार्टी के नेता चोरी छिपे चीन के नेताओं से मिलते हैं और कभी पाकिस्तान के नेताओं से, लेकिन किसी पर कोई कार्यवाही होती नही दिखती है. ऐसे ना जाने कितने भ्रष्टाचार और देशद्रोह के मामले हैं, जिन पर पिछले साढ़े तीन साल के शासन काल मे कडी कार्यवाही होनी चाहिये थी और दोषियों को जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिये था. लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ और इस बात की संभावना बहुत कम है कि बचे हुये डेढ़ साल मे भी कुछ खास हो पायेगा. अगर मोदी सरकार को 2019 मे सत्ता मे वापसी करनी है तो उसे सभी काम धंधे छोड़कर सभी भ्रष्टाचारियों और देशद्रोहियों के खिलाफ बड़े स्तर पर कार्यवाही करनी होगी. गुजरात चुनावों मे सिर्फ 99 सीटों पर भी भाजपा इसी लिये सिमटी है. लगभग 16 सीटों पर जहाँ पार्टी की हार हुई है, वहां हार के वोटों की संख्या नोटा के वोटों की संख्या से बहुत कम है. यह सभी निर्वाचन क्षेत्र वह हैं, जो भाजपा का गढ माने जाते रहे हैं. इसका सीधा सा मतलब यही है कि कट्टर भाजपा समर्थक जो कांग्रेस को किसी भी हालत मे वोट नही देना चाहते थे, उन्होने मोदी सरकार के निकम्मेपन से नाराज़ होकर नोटा का इस्तेमाल किया है.

Monday, December 18, 2017

“कांग्रेस मुक्त भारत” बनाने की तरफ मोदी का एक और कदम

आज से लगभग ९ महीने पहले मार्च २०१७ में मैंने इसी मंच पर एक लेख लिखा था -”दिल्ली ,हिमाचल और गुजरात में भाजपा की जीत लगभग तय”. दिल्ली में उस समय नगर निगम के चुनाव होने थे जिनमे  भाजपा को जीत मिली थी. हाल में ही  हुए चुनावों के बाद गुजरात और हिमाचल में भी भाजपा ने अभूतपूर्व जीत दर्ज़ करके देश को कांग्रेस मुक्त बनाने की तरफ दो और कदम आगे बढ़ा दिए हैं.

यहां देखने वाली बात यह है कि भाजपा ने गुजरात में लगातार २२ साल सरकार में रहते हुए लगातार  छठवीं बार यह जीत दर्ज़ की है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस और उसके समर्थक मीडिया ने मोदी और भाजपा को हराने के लिए अपने षड्यंत्रों को रचने  में कोई कसर उठा रखी थी. कांग्रेस ने जाति गत आरक्षण से लेकर साम्प्रदायिकता और देशद्रोह के जहर को भी इन चुनावों में बड़ी बेशर्मी के साथ घोलने की नाकाम कोशिश की थी जिसे गुजरात और हिमाचल की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है.

पहले तो कांग्रेस ने विकास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने की बजाये विकास को पागल घोषित कर दिया और  गुजरातियों को जात-पात के आधार पर बांटने के लिए कुछ ऐसे लोगों से  जाति गत आधार पर गठबंधन कर लिया जिन्हे राजनेता की बजाय “ठग”  कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. इससे भी जब कांग्रेस को जब बात बनती नहीं  दिखी तो राहुल गाँधी ने गुजरात में जितने भी हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर थे, उन सबके दर्शन करने का ढोंग किया. यह नाटकीयता इस हद तक बढ़ गयी कि उन्होंने एक तरफ तो अपने आप को “जनेऊ धारी हिन्दू”  घोषित कर दिया और वहीं दूसरी तरफ   सोमनाथ मंदिर में “गैर-हिन्दू” वाले रजिस्टर में भी अपना नाम लिखवा दिया. देश और गुजरात की जनता इस नौटंकी को बहुत ध्यान से देख रही थी .

इस नौटंकी के चलते चलते ही कांग्रेस के नेताओं को लगा कि अभी भी बात कुछ बन नहीं रही है. लिहाज़ा कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने कपिल सिब्बल और मणि शंकर अय्यर के कन्धों पर यह जिम्मेदारी डाल दी कि आगे का काम यह लोग करें. यह दोनों ही नेता अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझते हैं. लिहाज़ा कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर की सुनवाई को २०१९ के बाद किये जाने की मांग रख दी. मणि शंकर अय्यर जी भी कहाँ पीछे रहने वाले थे. उन्होंने अपनी पार्टी के “मन की बात” जनता के सामने रखते हुए पी एम् मोदी को ” नीच आदमी” की पदवी से नवाज़ दिया. वे यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपने घर पर एक डिनर मीटिंग रखी जिसमे पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी और पकिस्तान के कुछ नेता और पूर्व राजनयिक शामिल थे. इस मीटिंग पर शायद किसी को भी कोई ऐतराज़ नहीं होता. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह से इस मीटिंग को छुपाने का काम किया और बड़ी मुश्किल से यह कबूल किया कि हाँ यह मीटिंग हुयी थी,उसके चलते जनता ने   इस पार्टी का रहा सहा  बैंड भी  बजा दिया और नतीजा सबके सामने है.

अगर देखा जाए तो भाजपा जहां एक तरफ प्रदेश में पिछले २२ साल के अपने काम और विकास के मुद्दे पर फोकस करना चाह रही थी, कांग्रेस लगातार इन मुद्दों से हटकर अन्य मुद्दों की तरफ भटक रही थी. अगर भाजपा ने पिछले २२ सालों में काम या विकास नहीं किया था, तो कांग्रेस को यह चाहिए था कि वह भाजपा को उस मुद्दे पर घेरे. लेकिन अगर कांग्रेस ने भाजपा को घेरा भी तो  जी एस टी और नोट बंदी जैसे मुद्दों पर घेरा. इन मुद्दों पर पी एम् मोदी देश वासियों को पहले ही कई बार सफाई दे चुके हैं कि यह दोनों ही फैसले देश हित में लिए गए मुश्किल फैसले हैं जिनसे कुछ लोगों को शुरू शुरू में परेशानी भी हुयी लेकिन जिसे सरकार लगातार सुधारने का काम भी करती रही है. मोदी जी ने तो यहां तक बयान दिया है कि अगर  देश हित में लिए गए मुश्किल फैसलों की वजह से अगर उन्हें सत्ता भी छोड़नी पड़े तो उन्हें उसमे कोई परहेज़ नहीं है और वह देश हित में इस तरह के फैसले आगे भी लेते रहेंगे.

कांग्रेस और उसके सहयोगी जिस तरह से  अपनी संभावित हार से डर कर EVM   के ख़राब होने की बात कर रहे थे, उस मूर्खतापूर्ण दलील के चलते जनता के मन में यह सवाल भी घूम रहा था  था कि इस तरह की मूर्खतापूर्ण मानसिकता वाले लोगों के हाथ गुजरात की सत्ता कैसे सौंपी जा सकती है. आज की तारीख में अगर कोई भी नेता EVM   ख़राब होने की बात करता है तो उसे “मूर्खता” के अलावा और कुछ नहीं कहा जाएगा क्योंकि इन्ही EVM    मशीनों से कई गैर-भाजपाई सरकारें भी चुनी जा चुकी हैं जिन पर किसी ने सवाल नहीं उठाया है. उलटे चुनाव आयोग ने सभी नेताओं और पार्टियों को ओपन चेलेंज देकर EVM  में  किसी भी तरह की गड़बड़ी साबित करने का मौका दिया था लेकिन उस समय कोई भी नेता  या पार्टी अपने इस मूर्खतापूर्ण आरोप को साबित नहीं कर पाए थे.

आज देश के १९ राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं और कांग्रेस और उसके सहयोगी जिस तरह की नकारात्मक राजनीति जारी रखें हुए हैं. उसे देखकर सिर्फ यही कहा जा सकता है कि देश को कांग्रेस मुक्त बनाने की दिशा में भाजपा ने एक नहीं, दो और कदम आगे बढ़ा दिए है.

अपने पिछले सभी लेखों में मैं यह कई बार लिख चुका हूँ कि कांग्रेस और उसके सहयोगी जब तक देशद्रोह, साम्प्रदायिकता, जात-पात और नकारात्मकता की अपनी नीतियों का त्याग नहीं करेंगे, भाजपा का विजय रथ इसी तरह से निर्बाध रूप से चलता रहेगा और मोदी जी का “कांग्रेस मुक्त भारत” का सपना जल्द ही पूरा हो जाएगा.  अगर कांग्रेस या किसी और गैर भाजपाई राजनीतिक दल को आज के बाद कोई चुनाव जीतना है तो उन्हें सबसे पहले अपने पिछले ६० साल के कुशासन, भ्रष्टाचार, देशद्रोह और साम्प्रदायिकता के लिए देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए. जब तक ऐसा नहीं होगा, भाजपा का विजय रथ इसी तरह आगे बढ़ता रहेगा.

Monday, December 4, 2017

यही मोदी का “गुजरात मॉडल” है

२०१४ के पहले से ही नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल की चर्चाएं काफी गर्म रहती थीं. जहां मोदी के समर्थक गुजरात मॉडल का हवाला देकर वहां भ्रष्टाचार रहित एवं विकास शील व्यवस्था का गुणगान करते थे, वहीं देश की विपक्षी पार्टियों के नेता मोदी के गुजरात मॉडल पर तंज़ करते नज़र आते थे. उत्तर प्रदेश के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया था कि- “हम यू पी को गुजरात नहीं बनने देंगे”. कमोबेश यही बात हर विपक्षी नेता की जुबान पर भले ही न आयी हो, लेकिन सबके मन में यही डर कहीं न कहीं बैठा हुआ था कि अगर “गुजरात मॉडल” चल पड़ा तो मोदी और देश की जनता के अच्छे दिन आ जाएंगे और उनके लिए सत्ता का स्वाद चखना अगले कई दशकों तक एक दिवा स्वप्न बनकर रह जाएगा.
चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले यह समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर यह “गुजरात मॉडल” है किस चिड़िया का नाम:
[१] गुजरात में होने वाला विधान सभा का चुनाव स्वतंत्र भारत का पहला ऐसा चुनाव है जिसमे कोई भी नेता गोल जालीदार टोपी पहने दिखाई नहीं दे रहा है. यही गुजरात मॉडल है.
[२] भगवान् श्री राम को “काल्पनिक” बताने वाले राहुल गाँधी पिछले दो महीने में २२ बार मंदिरों में जाकर अपनी नाक रगड़ चुके हैं. निश्चित रूप से यही गुजरात मॉडल है.
[३] राहुल गाँधी, जिनका अभी तक यह मानना था कि मंदिरों में लोग लड़कियों को छेड़ने जाते हैं, वे खुद इतनी बार मंदिरों के चक्कर काट चुके हैं, जितने चक्कर किसी और कांग्रेसी नेता ने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं लगाए होंगे. यह भी गुजरात मॉडल है.
[४] राहुल गाँधी मंदिर जा रहे हैं लेकिन किसी “सेक्युलर” नेता की इतनी हिम्मत नहीं पड़ रही कि पलटकर उनसे पूछे कि क्या अब मस्जिद भी जाओगे? यही गुजरात मॉडल है.
[५] नेहरू ने जिस सोमनाथ मंदिर का विरोध किया और उसके लिए धन देने से भी मना कर दिया, आज उसी मंदिर में जाकर उनके वंशज अपनी चुनावी जीत की भीख मांगने के लिए विवश हैं. यही गुजरात मॉडल है.
वैसे तो धीरे धीरे सभी नकली “सेक्युलर” नेताओं को पिछले तीन सालों में गुजरात मॉडल की पूरी खबर लग चुकी है. जिन्हे अभी तक गुजरात मॉडल की समझ नहीं हुयी है, उन्हें भी २०१९ के चुनावों से पहले यह गुजरात मॉडल पूरी तरह समझ में आ जाएगा. घोर जातिवाद और साम्प्रदायिकता की राजनीती करने वाली मायावती का उत्तर प्रदेश के हालिया निकाय चुनावों में इस्तेमाल किये गए एक चुनावी नारे की झलक मात्र से ही यह बात साफ़ हो जाएगी कि अब “गुजरात मॉडल” सभी को समझ आने लगा है. बहुजन समाज पार्टी का नारा था- “न ज़ात को न धर्म को- वोट मिलेगा कर्म को.” यानि जिनकी पार्टी की बुनियाद ही ज़ात-पात, तुष्टिकरण और साम्प्रदायिकता पर टिकी हो, अब उन्हें भी “कर्म” यानि गुजरात मॉडल का सहारा लेना पड़ रहा है.

Wednesday, November 29, 2017

गुजरात चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होना लगभग तय

लोकतंत्र में हार और जीत तो लगी ही रहती है और जनता अपने विवेक और समझ का इस्तेमाल करते हुए किसी एक पार्टी को सत्ता के सिंहासन तक पहुँचाने का काम करती है. उस तरह से देखा जाए तो गुजरात चुनावों में कांग्रेस को मिलने वाली पराजय पर किसी को भी  हैरानी नहीं होनी चाहिए. कांग्रेस पार्टी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह पार्टी और इसके नेता अभी तक यह नहीं समझ सके हैं कि जनता ने जब इस पार्टी को २०१४ में सत्ता से बाहर किया था तो उसे पिछले ६० सालों के कुशासन , भ्रष्टाचार और देशद्रोह का दंड दिया था. २०१४ का सत्ता परिवर्तन कोई मामूली सत्ता परिवर्तन नहीं था. जो लोग पिछले कई दशकों से देशद्रोहियों के तलवे चाट चाट कर देश के बहुसंख्यकों का लगातार अपमान कर रहे थे और  जो लोग अपने कुशासन और भ्र्ष्टाचार से लगातार जनता और देश को लूटने का काम कर रहे थे, जनता ने २०१४ में उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था.
 
२०१४ में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी को ज्यादातर राज्यों में भी उसी तरह की शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा लेकिन इस पार्टी ने न तो अपनी हार से कोई सबक लेने की कोशिश की और न ही कभी अपनी  भ्रष्टाचार,कुशासन और देशद्रोही मानसिकता के लिए देश की जनता से माफी माँगी. चोरी और सीनाजोरी की तर्ज़ पर इस पार्टी के नेता लगातार अपनी इन नीतियों का समर्थन करते रहे और मोदी, भाजपा और संघ की नीतियों का पुरजोर विरोध करते रहे. अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए यह पार्टी इस हद तक नीचे गिर गयी कि इसने मुस्लिम  आतंकवादियों को खुश करने के लिए कुछ देशभक्त हिन्दुओं को फ़र्ज़ी मामलों में गिरफ्तार करके उन्हें "हिन्दू आतंकवादी" के नाम से पुकारना शुरू कर दिया. इन लोगों के खिलाफ दायर फ़र्ज़ी मामले अदालतों में नहीं टिक सके और उन्हें अदालतों को बाइज़्ज़त बरी करना पड़ा. लेकिन इस पार्टी ने बहुसंख्यक  समुदाय को जलील करने की अपनी नापाक कोशिश लगातार जारी रखी. जहां एक ओर कांग्रेसी पी एम् मनमोहन सिंह ने देश के सभी संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के पहला हक़ होने की बात कही, वहीं कांग्रेस पार्टी एक ऐसे  कानून को लागू करना चाहती थी जिसके तहत सांप्रदायिक हिंसा होने पर दोष चाहे किसी भी समुदाय का हो, उसके लिए बहुसंख्यक समुदाय को ही दोषी माने जाने की व्यवस्था थी. कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री तो पाकिस्तान में जाकर यह भी गिड़गिड़ाए कि मोदी को हारने में  हमारी पार्टी  की मदद करो. अगर यह देशद्रोह नहीं है तो फिर देशद्रोह किसे कहते हैं ?
 
पिछले ३ सालों में पी एम् मोदी ने जिस तरह से देश के सर्वांगीण विकास के लिए ठोस कदम उठाये हैं और जिस तरह से नोटबंदी और जी एस टी के जरिये काले धन पर लगाम लगाई है, उससे इस पार्टी के नेता पूरी तरह बौखलाए हुए हैं और उस बौखलाहट में न सिर्फ इस पार्टी के अपने नेता बल्कि इसकी सहयोगी पार्टियों के नेता भी अनाप शनाप बयानबाज़ी में जुटे हुए है. पिछले ६० सालों में जिस बड़े पैमाने पर गोलमाल और भ्रष्टाचार हुआ था , उसके चलते  सभी नेताओं ने मोटा माल बनाया था. नोटबंदी का असर यह हुआ कि पिछले ६० सालों में जोड़ा हुआ सारा "मोटा माल" या तो बेकार हो गया या फिर बैंकों में जमा करवाना पड गया. अब जब बैंकों में यह "मोटा माल" जमा हो गया तो उसका मतलब यह नहीं है कि उसका रंग "काले" से "सफ़ेद" हो गया. आयकर विभाग ने अब जब इस जमा किये गए "काले धन" का हिसाब माँगना शुरू किया तो इन सभी विपक्षी नेताओं की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी. जब नोटबंदी के समय यह विपक्षी नेता अपना मूर्खतापूर्ण विरोध कर रहे थे, तभी मैंने यह लिखा था कि विपक्षी नेताओं का इस तरह से छाती पीट पीट कर विधवा विलाप करना ही इस बात का सुबूत है कि इन लोगों ने इस देश को पिछले ६० सैलून में किस तरह से लूट लूट कर काला धन इकठ्ठा किया है. एक तरफ जहां नोटबंदी ने पिछले ६० सालों में कमाए गए काले धन का सफाया कर दिया, दूसरी तरफ जी एस टी ने यह भी सुनिश्चित कर दिया कि आज के बाद काले धन की उपज कम से कम हो या फिर न के बराबर हो. बेनामी संपत्ति के कानून को लागू करके मोदी जी ने इन लोगों के नीचे से रही सही जमीन भी खिसका दी है. नतीजा यह है कि न सिर्फ कांग्रेस पार्टी और उसके नेता बल्कि इसकी सभी सहयोगी पार्टियां और उसके नेता भी पी एम् मोदी का इस तरह से विरोध कर रहे हैं मानों मोदी ने इन लोगों के काले कारनामों पर लगाम लगाकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो.
 
कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने क्योंकि पिछले ६० सालों में सत्ता का सुख मिल बाँट कर भोगा है और अपने लिए चाटुकारों की एक बहुत बड़ी फौज भी तैयार की है जो समय समय पर इन तथाकथित विपक्षी राजनीतिक दलों और उनके तथाकथित नेताओं की हाँ में हाँ मिलाकर मोदी, भाजपा कर संघ को बदनाम करने का षड्यंत्र रचती रहती है. यह लोग कभी कलाकार और लेखक बनकर अपने अपने "अवार्ड" वापस करना शुरू कर देते हैं, कभी अर्थशास्त्री बनकर भारत की अर्थव्यवस्था पर गैर जरूरी टीका टिप्पणी करना शुरू कर देते हैं. उत्तर प्रदेश में एक "अख़लाक़" की मौत पर कई महीनों तक मातम मनाने वाले यह स्व-घोषित "सेक्युलर" नेता, केरल और पश्चिम बंगाल की हिंसा पर हमेशा ही चुप्पी साधे रहते हैं. इन लोगों को यह लगता है कि यह सारी बातें जो इस ब्लॉग में लिखी गयी हैं, वे इस देश की आम जनता तक नहीं पहुंचेगी और जनता को वही समाचार मालूम पड़ेंगे जो इनके नेता या इनके पाले हुए मीडिया के लोग जनता तक पहुंचाएंगे. लेकिन सोशल मीडिया  ने इन लोगों के मंसूबों पर अब पानी फेर दिया है. गुजरात की जनता हो या देश के किसी अन्य राज्य की जनता, कांग्रेस और इसकी सहयोगी पार्टियों के कारनामों से सभी पूरी तरह वाकिफ है और हर आने वाले चुनाव में जनता इस पार्टी को दण्डित करने के लिए पहले से भी  अधिक आतुर दिखाई देती है. गुजरात में हालांकि कांग्रेस पार्टी तरह तरह की "नौटंकियां " करके जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रही है लेकिन गुजरात जैसे राज्य की जनता "कांग्रेस की इस प्रायोजित नौटंकी" का शिकार होगी, इस पर कांग्रेस पार्टी को शायद खुद भी यकीन नहीं होगा.

Friday, November 10, 2017

गुजरात और हिमाचल में भाजपा की बम्पर जीत लगभग तय

गुजरात और हिमाचल में इसी साल विधान सभा चुनाव होने हैं. दोनों ही जगह मुख्य चुनावी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है. अपने राजनीतिक वजूद की आखिरी लड़ाई लड़ रही कांग्रेस पार्टी इन दोनों ही चुनावों में अपनी पूरी “ताकत” झोंकने का प्रयास कर रही है. क्योंकि कांग्रेस इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है, इसलिए यह समझना ज्यादा जरूरी हो जाता है कि आखिर कांग्रेस पार्टी की असली ताकत क्या है, जिसके बल बूते पर इस पार्टी ने इस देश को लगभग ६० सालों तक निर्ममता से लूटा है. दरअसल कांग्रेस पार्टी की असली ताकत है -दुष्प्रचार. अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ मनगढंत दुष्प्रचार करके सत्ता हथियाने में इस पार्टी को महारथ हासिल रही है.
लेकिन पिछले कुछ सालों में लोगों में बढ़ती जागरूकता और सोशल मीडिया के विस्तार के चलते कांग्रेस पार्टी  का यह दुष्प्रचार रूपी ब्रह्मास्त्र अब पूरी तरह बेकार हो गया है. अख़लाक़ और रोहित वेमुला जैसे फ़र्ज़ी मसलों पर कांग्रेस पार्टी और इसके चाटुकारों ने जमकर भाजपा पर हमला बोला. अपने “अवार्ड वापसी गैंग” से अवार्ड भी वापस करवाए, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. नतीजा नहीं निकला लेकिन कांग्रेस पार्टी ने  हार नहीं मानी. जब नोट बंदी का ऐतिहासिक फैसला लिया गया और इन लोगों का सारा काला धन डूब गया तो इन्होने उस फैसले को जन विरोधी बताकर एक बार फिर से दुष्प्रचार शुरू कर दिया. इनके रहमोकरम पर पलने वाले कुछ चाटुकारों और स्व-घोषित अर्थशास्त्रियों ने भी नोटबंदी के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया. इसका जबाब भी देश की जनता ने उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों के मार्फ़त दे दिया. अब इन्हे भी लगने लगा है कि दुष्प्रचार रूपी हथियार काम नहीं कर रहा है लेकिन इनके पास कोई और हथियार नहीं है और कोई और विकल्प न होने की वजह से यह लोग उसी बेजान हथियार का एक बार फिर से इस्तेमाल करना चाहते हैं. इस बार इनके दुष्प्रचार का शिकार जी एस टी है, जिसे देश की जनता देश की आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार बता रही है, उसी कर सुधार के खिलाफ कांग्रेस पार्टी दुष्प्रचार करके हिमाचल और गुजरात में अपनी नैया पार लगाना चाहती है.
कांग्रेस पार्टी की जो कमियां हैं, वे सब जग जाहिर है और उन पर जितना भी लिखा जाए कम ही होगा. अब इस बात पर आते है कि भाजपा इन दोनों राज्यों में किस तरह से बम्पर जीत हासिल करने जा रही है.
१. भाजपा के पक्ष में जो सबसे बड़ी बात कही जा सकती है (जिसका उसे पिछले चुनावों में भी फायदा मिला है और इन चुनावों में भी मिलेगा), वह यही है कि पार्टी अपने विकास के रास्ते पर मजबूती से चल रही है और सभी तरह के दुष्प्रचार के बाबजूद देशहित में लिए गए अपने कड़े फैसलों पर आज तक कायम है.
२. कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी  जिस तरह से अपनी पार्टी के लिए प्रचार करते हैं, उसका फायदा कांग्रेस पार्टी को कितना होता है, यह तो उसके अन्य नेता ही बता सकते हैं. लेकिन राहुल गाँधी जी के भाषणों और उनके चुनाव प्रचार का भाजपा  के शीर्ष नेता भी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं क्योंकि भाजपा की आधी जीत अगर अपने “विकास” के अजेंडे से तय होती है तो बाकी की आधी जीत का श्रेय राहुल गाँधी जी की अनूठी प्रचार शैली को दिया जाना चाहिए. राहुल गाँधी बार बार अपनी चुनाव रैलियों और भाषणों में कहते हैं कि हमारी पार्टी की लड़ाई भाजपा और आर एस एस  की विचारधारा से है और हम उससे बिना कोई समझौता किये लड़ते रहेंगे. भाजपा भी तो यही चाहती है कि राहुल गाँधी जी इस तरह की बातें बोलें. जब वह इस तरह के बयां देते हैं तो लोग यह समझ जाते हैं कि पिछले ६० सालों से वे लोग क्या गलती दोहराते आ रहे थे और लोग यह भी कसम खाते हैं कि अब वह गलती दुबारा नहीं दुहराई जाएगी. जब राहुल गाँधी यह बताते हैं कि उनकी लड़ाई भाजपा और संघ की विचारधारा से है तो अनायास ही लोगों का धयान कांग्रेस पार्टी की विचारधारा पर चला जाता है. राजनीति में पार्टियां और व्यक्ति नहीं जीतते है, सिर्फ विचारधाराएं ही जीता करती है. कांग्रेस पार्टी जिस विचारधारा की पक्षधर है, उसे इस देश की सवा सौ करोड़ जनता एकमत से कई बार नकार चुकी है, इस बात को समझने के लिए न तो राहुल गाँधी  तैयार हैं और न ही उनकी पार्टी का अन्य कोई नेता. जब कभी भी कांग्रेस पार्टी के महाविनाश का इतिहास लिखा जाएगा, राहुल गाँधी जी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं  है.
३. भाजपा को जिताने के लिए हालांकि ऊपर लिखे दो ही कारण पर्याप्त हैं लेकिन भाजपा के विरोधी अपनी बौखलाहट और छटपटाहट में कुछ ऐसे भी काम कर जाते हैं जिससे भाजपा को बोनस मिल जाता है और उसकी जीत “बम्पर” जीत में तब्दील हो जाती है. ऐसे मसले  लाखों की संख्या में है. लेकिन उनमे से कुछ मसलों का जिक्र करने भर से ही इस पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे की पहचान हो जाती है. जहां सारी दुनिया “इस्लामिक आतंकवाद” से बुरी तरह परेशान है, वहीं अपनी कांग्रेस पार्टी ने “हिन्दू आतंकवाद” नाम का एक शब्द अपने कांग्रेसी शब्दकोष में जोड़ा है और कई बेगुनाहों को “हिन्दू आतंकवादी” घोषित करके जेलों में डालने का काम अपने शासनकाल में किया है. कांग्रेस पार्टी के कई शीर्ष नेता पाकिस्तान में जाकर पाकिस्तान सरकार के आगे गिड़गिड़ाते हैं कि मोदी को हारने में हमारी मदद करो. देश की जनता को कांग्रेस पार्टी ने अगर आज भी बेबकूफ समझ रखा है तो जनता यह जबाब देने में भी सक्षम है कि दरअसल बेबकूफ कौन है?

Wednesday, October 11, 2017

पटाखे सिर्फ दिवाली पर ही प्रदूषण क्यों फैलाते हैं ?

"दिव्य देश" के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपना एक "ऐतिहासिक" फैसला सुनाते हुए "सिर्फ" दीपावली के अवसर पर पटाखे जलाने पर रोक लगा दी है. पटाखों पर लगी यह रोक सिर्फ नवम्बर तक के लिए ही है. इस तारीख के बाद पटाखे बेचे भी जा सकते हैं और जलाये भी जा सकते हैं. एक खोजी टी वी चैनल को यह बात कुछ हज़म नहीं हुयी सो उसने अपने एक होनहार रिपोर्टर को देश के पर्यावरण  मंत्री के पास  इंटरव्यू  लेने के लिए भेज दिया.

टी वी रिपोर्टर ने पर्यावरण मंत्री से मिलने का समय माँगा. मंत्री जी तो साक्षात्कार देने के लिए खुद ही उतावले हुए जा रहे थे. लिहाज़ा  तय समय पर रिपोर्टर मंत्री जी के निवास पर पहुँच गया.

बिना किसी औपचारिकता के रिपोर्टर ने मंत्री जी से अपना पहला सवाल दागा -" सर, अपने "दिव्य देश" में  पर्यावरण को लेकर लोग काफी जागरूक हो रहे हैं. अभी हाल ही में अपने सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मामले की गंभीरता समझते हुए दीपावली के मौके पर पटाखों की बिक्री और उन्हें जलाने पर रोक लगा दी हैअदालत के इस "ऐतिहासिक" फैसले पर आपका क्या कहना है ? "

मंत्री जी ने अपने गुस्से को किसी तरह दबाते हुए  जबाब दिया -" हमें क्या कहना है ? अरे हमारी सुन कौन रहा है ? पर्यावरण की चिंता हमसे ज्यादा अदालतों को हो रही है. अब इस देश को सरकारें और उनके मंत्री नहीं, अदालतें ही चला लेंगी. देखते हैं, यह सब कब तक चलता है."

रिपोर्टर : लेकिन मंत्री महोदय, जिस तरह से देश प्रदूषण की समस्या की चपेट में  चुका है, उसे देखते हुए अगर सरकार कोई कदम नहीं उठाएगी तो अदालतों को तो दखल देना ही पड़ेगा ना ? उस पर आप इतना आग बबूला क्यों हुए जा रहे हैं ?

मंत्री जी : पत्रकार महोदय, सिर्फ दीवाली के मौके पर पटाखों की बिक्री और जलाने पर रोक लगाने से इस देश से प्रदूषण की समस्या का समाधान हो जाता तो सरकार यह कदम कब का उठा चुकी होती और इस देश से प्रदूषण भी कब का खत्म हो गया होता.

रिपोर्टर : चलिए , अदालत ने तो सही गलत जो कुछ करना था सो कर दिया, अब आपकी सरकार और खुद आप इस मामले में क्या कार्यवाही करेंगे ?

मंत्री जी : हमारी कैबिनेट कमेटी की मीटिंग आज रात ही होने वाली है. उस मीटिंग में हम सबसे पहले तो इस रहस्य्मय गुत्थी को सुलझाने का प्रयास करेंगे कि आखिर यह पटाखे सिर्फ दीपावली जैसे त्योहारों पर ही प्रदूषण क्यों फैलाते हैंक्रिसमस या अंग्रेजी नए साल के मौके पर जो पटाखे बेचे जाते हैं और जलाये जाते हैं, अगर वे पटाखे किसी और तकनीक से बनाये जाते हैं तो बेहतर यही होगा कि उसी तकनीक से बनाये गए पटाखे दिवाली पर भी इस्तेमाल कर लिए जाएँ.

इस बार रिपोर्टर चकरा गया. मंत्री जी ने भी पहली बार एक समझदारी भरी बात कर डाली थी . खैर अपने को सँभालते हुए रिपोर्टर ने फिर सवाल कर दिया -" मंत्री महोदय आप यह कह रहे हैं कि दिवाली के अलावा अन्य सभी अवसरों और त्योहारों पर बेचे जाने वाले और जलाये जाने वाले पटाखों से प्रदूषण नहीं फैलता है- यह अनोखी बात आपको किसने बताई ?

मंत्री जी : बुरा मत मानना, आप पत्रकार हो या घसियारे हो ? अदालत के फैसले से तुम्हे यह बात समझ में नहीं आयी क्या ? अदालती फैसले के हिसाब से पटाखों की बिक्री और जलाये जाने पर सिर्फ नवम्बर तक की ही रोक है. कोई भी समझदार आदमी इसका जो मतलब निकलेगा, वही आप भी निकाल लो और अपने चैनल की टी आर पी बढ़ाने पर ध्यान दो.

रिपोर्टर अब मंत्री जी के बढ़ते गुस्से को भांप गया था और उसने अपना बोरिया बिस्तर वहां से समेटने में ही अपनी भलाई समझी. मंत्री जी को समय देने के लिए शुक्रिया करता हुआ वह फटाफट वहां से खिसक लिया

( इस व्यंग्य रचना के सभी पात्र एवं घटनाएं  काल्पनिक हैं )



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